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    UP: लखनऊ के संदोहन देवी मंदिर में मां के चरणों का है विशेष महत्व, दर्शन से हर मनोकामनाएं होती हैं पूरी

    By JagranEdited By: Vikas Mishra
    Updated: Sun, 25 Sep 2022 05:57 PM (IST)

    Navratri 2022 लखनऊ के संदोहन देवी मंदिर में मां के चरणों का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की हर मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यहां हर दिन मां के स्वरूप के अनुसार मां का विशेष शृंगार किया जाता है।

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    संदोहन देवी मंदिर 300 साल से अधिक समय से स्थापित है।

    लखनऊ, जागरण संवाददाता। मां का हर स्वरूप श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। सुख व समृद्धि की कामना लेकर मंदिरों में उमड़ी भीड़ मां की शक्ति की दुहाई देती है। चौपटिया के संदोहन देवी के चरणों के दर्शन के लिए श्रद्धालु छह महीने इंतजार करते हैं। दर्शन की अभिलाषा भक्तों में कभी कम नहीं होती। इस बार प्रतिबंधों से दूर श्रद्धालुओें को दर्शन का अवसर मिलेगा।

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    मंदिर का इतिहासः मंदिर की स्थापना कब हुई थी इस बारे में तो किसी को जानकारी नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि यह मंदिर 300 साल से अधिक समय से स्थापित है। आपसी सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया गया।

    वास्तुकलाः मंदिर के निर्माण में नवाबी कला का उत्कृष्ट उदाहरण मिलता है। यहां बने ऐतिहासिक कुंड में पानी भरा रहता है। मंदिर के जीर्णोद्धार में आधुनिकता की झलक नजर आती है।

    विशेषताः हर दिन मां के स्वरूप के अनुसार मां का विशेष शृंगार किया जाता है। छह महीने में एक बार एकादशी के दिन मां के चरण पादुका के दर्शन होते हैं जिसके लिए राजधानी ही नहीं आसपास के जिलों से भी लोग आते हैं।

    तैयारियांः नवरात्र के पहले दिन से ही मां का विशेष शृंगार किया जाता है। मां के दरबार को रंगीन लाइटों से प्रकाशमय बनाया गया है। मंदिर के पास लगने वाले मेले में सुरक्षा के साथ ही अन्य सभी जरूरी इंतजाम किए गए हैं।

    ऐसे जाएं मंदिरः चौक से विक्टोरिया स्ट्रीट से अकबरी गेट पर पहुचें। वहां से करीब 300 मीटर की दूरी पर चौपटिया चौराहा है। इसी पास सिद्धपीठ स्थापित है। मां संदोहन देवी के दर्शन मात्र से ही सभी दु:ख दूर हो जाते हैं। नवरात्र में आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो, इसका पूरा इंतजाम किया जाता है। मंदिर के आसपास मेला भी लगता है। कमल मेहरात्रा-अध्यक्षमां संतोषी देवी का सुबह शाम श्रृंगार किया जाता है। रंगीन फूलों के साथ ही केले के तने से सजाया जाता है। मंदिर के कपाट भोर में ही खोल दिए जाते हैं। महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग लाइनें होती हैं।

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