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    लखनऊ में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने चार साहिबजादे पार्क का किया शिलान्यास, कहा-सिख समाज के लिए यह गौरव की बात

    By Vrinda SrivastavaEdited By:
    Updated: Tue, 08 Nov 2022 02:32 PM (IST)

    चारों साहिबजादों का बलिदान सिख समाज व देश के लिए खास है। गुरु गोविंद के चार साहिबजादों के बलिदान को नमन करते हुए उनकी शहादत को अगली पीढ़ी तक स्मरण कराने के उद्देश्य से साहिबजादा पार्क बनाने की घोषणा की गई थी।

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    लख्चनऊ में चार साहिबजादे पार्क का शिलान्यास।

    लखनऊ, जागरण संवाददाता। सिख समाज के 10वें व अंतिम गुरु गोविंद साहिब के चार साहिबजादों को समर्पित देश का पहला ऐतिहासिक चार साहिबजादे पार्क का गुरु नानक के प्रकाशोत्सव पर मंगलवार को शिलान्यास किया गया। उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, कृषि राज्यमंत्री बलदेव सिंह औलख व महापौर संयुक्ता भाटिया ने पार्क का शिलान्यास किया।

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    आलमबाग के रामनगर स्थित गुरुद्वारा आलमबाग के पास रेलवे की करीब 35 हजार वर्ग फीट जमीन पर पार्क को लेकर अब तैयारियां शुरू हो गई हैं। इसे लेकर बीते दिनों नगर निगम और रेलवे के मध्य एमओयू (समझौता पत्र ) पर हस्ताक्षर किए गए।

    महापौर संयुक्ता भाटिया ने कहा कि नगर निगम ने गुरु गोविंद के चार साहिबजादों के बलिदान को नमन करते हुए उनकी शहादत को अगली पीढ़ी तक स्मरण कराने के उद्देश्य से साहिबजादा पार्क बनाने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से इस ऐतिहासिक साहिबजादा पार्क के निर्माण का रास्ता साफ हो गया। गुरुद्वारे के अध्यक्ष निर्मल सिंह ने बताया कि सिख समाज के लिए यह गौरव की बात है।

    कौन हैं चार साहिबजादे : आनन्दपुर साहिब में 1708 में गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। एक वर्ष बीतते बीतते मुगलों ने आनंदपुर साहिब पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। करीब चार साल युद्ध चला लेकिन गुरु गोविंद साहिब ने हार नहीं मानी। हताशा में मुगलों ने युद्ध बंद कर आनंदपुर साहिब को चारों ओर से घेर लिया। गुरु गाेविंद सिंह ने परिवार व सिखों सहित 20 दिसंबर 1704 को आनंदपुर साहिब छोड़ दिया।

    सरसा नदी के पास अचानक मुगलों की फौज ने युद्ध शुरू कर दिया। नदी पार करते गुरु साहिब का परिवार बिछड़ गया । गुरु गोविंद सिंह साथ बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह व बाबा जुझार सिंह 40 सिखों के साथ चमकौर गढ़ी में पहुंच गये जहां 22 दिसंबर को मुगलों के साथ भारी युद्ध में सिखों के साथ ही दोनों साहिबजादे शहीद हो गए।

    नौ वर्ष के छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व सात वर्ष के बाबा फतेह सिंह अपनी दादी माता गुजरी के साथ रह गये थे। दोनों साहिबजादों की 24 दिसंबर को सूबेदार वजीर खां की कचहरी में पहली पेशी हुई। दोनों ने धर्म परिवर्तन से मना कर दिया। खीझ कर वजीर खां ने दोनों साहिबजादों को 27 दिसंबर को दीवार में जीवित चुनवा दिया। चारों साहिबजादों का बलिदान सिख समाज व देश के लिए खास है।