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    दिमाग का केमिकल लोचा है डिप्रेशन, हिम्मत से हो सकता है मुकबला-ध्यान रखें ये बातें

    By Divyansh RastogiEdited By:
    Updated: Tue, 16 Jun 2020 12:28 PM (IST)

    ब्रेन के न्यूरो ट्रांसमीटर में होता है बदलाव। हर वें में संभव है अवसाद लेकिन कर सकते है मुकाबला। ...और पढ़ें

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    दिमाग का केमिकल लोचा है डिप्रेशन, हिम्मत से हो सकता है मुकबला-ध्यान रखें ये बातें

    लखनऊ [कुमार संजय]। हर व्यक्ति कभी ना कभी मानसिक रूप से बीमार महसूस करता है।लगभग हर छठे व्यक्ति को गंभीर प्रकार का डिप्रेशन जीवन में कभी ना कभी होता है। हर 20 में से एक डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है और इनमे से अधिकांश ने अपने किसी करीबी से या डॉक्टर से एक महीने के अंदर अपने अवसाद के बारे में बात भी की होती है। इसको समझ नही पाते या हलके में लेते हैं। 

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    संजय गांधी पीजीआइ के अंतः स्रावी ग्रंथि विभाग (इंडोक्राइनोलाजी ) के डॉ. अजय शुक्ला के मुताबिक, अवसाद का सबसे बडा कारण केमिकल लोचा है। मस्तिष्क के तनाव को नियंत्रित करने की प्रक्रिया गड़बड़ हो जाती है, जिसका कारण अवसाद के मरीजों के मस्तिष्क के तंत्रिका तन्तुओं (न्यूरॉन ) के कनेक्शन और ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर में हुए कई बदलाव होते हैं। शरीर के अंदर के विघटनकारी तंत्र ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं कोशिका के लेवल तक तनाव बढ़ता जाता है और शरीर की ताकतें अपने ही खिलाफ काम करने लगती हैं हार्मोन जैसे की कार्टिसोला , टीएसएच आदि के लेवल भी प्रभावित होते हैं। डिप्रेशन की दवाएं ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर आदि में नियंत्रण करती हैं। इन बदलावों को पुनः परिवर्तन करने में समय लगता है इसीलिए ज़्यादातर दवाइयों का असर कुछ महीनों के बाद ही आता है। इन दवाओं के साथ योग ध्यान काफी मददगार होता है

    जरूरी है भरोसा

    किंग जार्ज मेडिकल विवि के डा.एसके कार कहते है कि अवसाद में सबसे ज़रूरी है साथ का भरोसा , हमें सामने वाले व्यक्ति को बिना जज किए पूरी तरह से सुनना चाहिए और उसे हर हाल में साथ देने का भरोसा दिलाना चाहिए , चाहे वो कितनी भी बड़ी गलती या समस्या क्यों ना हो।इसके साथ जल्द से जल्द मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए और उसका उपचार करना चाहिए जैसे डाइअबीटीज या ब्लड प्रेशर की बीमारी में हम करते हैं वैसे ही। आत्म हत्या के विचार अगर किसी व्यक्ति को आ रहें हो तो उसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।

    यह है लक्षण

    अच्छी खबर से मन कुछ दिनो के लिए अत्यधिक खुश हो जाता है खबर मिलते ही हम राजाओं की तरह अपने गले की स्वर्ण माला आदि बाँटना चाहते हैं सबको मिठाई खिलाते हैं सबसे मिलते हैं पर इस प्रकार का मूड अगर एक हफ्ते से ज्यादा रहे तो इस अति राग(अत्यधिक ख़ुशी का विचार और अत्यधिक ऊर्जा) को उन्माद (मेनिआ ) कहते हैं। अधिकांश लोगों में यह बिना किसी बाहरी कारण के होता है।इसी प्रकार बुरी खबर सून कर दुखी होना स्वाभाविक है पर अगर दो हफ्ते से ज़्यादा के अति-द्वेष(बुरा दुखी होने का विचार) का विचार हमें ज़्यादातर समय आए तो यह अवसाद (डिप्रेशन) हो सकता है ।

    ऐसे अवसाद से पा सकते है छुटकारा

    डॉ.  अजय शुक्ला के मुताबिक, हम नकारात्मक को सकारात्मक बदलावों में बदल सकते हैं ..

    ध्यान भटकाना - अगर मन दुखी हो या गुस्से में तो उल्टी गिनती गिने , या कुछ खेलने जाएँ , कुछ दोस्तों से फ़ोन में बाद करें आदि।

    प्राणायाम - नियमित प्राणायाम के द्वारा ब्रेन में हुए बदलाव , उन्माद अवसाद क्रोध आदि को बहुत कम कर देते हैं। (यह एक बड़ा विषय है इस पर फिर कभी)

    नियमित व्यायाम , आचार आहार विचार विहार का संतुलन

    आता माझी सटकली- “ मेरा दिमाग खराब हो रहा है या मैं आपे से बाहर हो रहा हूं। ऐसी परिस्थितियों को पहचाने और अपना व्यवहार बदले।जब भी ऐसा ख़्याल आए रुकें जो आप करना चाह रहें हैं उसे दो दिन के लिए पोस्ट्पोन करें।दो दिन बाद पुनः सोचें क्या आज आप वही करना चाह रहें हैं।ऐसा करके आप आवेश में आकर की गई ज़्यादातर दुर्घटनाओं को रोक पाएंगे।

    हमसफर – बच्चे को पोरा भरोसा होता है की उसके माता पिता सर्व शक्तिमान है और उसकी सारी समस्याओं का उत्तर उनके पास है पर जैसे जैसे वो बड़ा होता है वैसे वैसे उसका ये भ्रम टूटता जाता है।सत्य यह की हमें शक्तिमान नही पूरे भरोशे वाला इंसान चाहिए जो हमें जज ना करे सिर्फ़ समझे सुने। हम सब को कोई ना कोई हमसफ़र , साथी , चाहिए होता है। इसलिए परिवार और मित्रों के साथ समय बिताए और अपने दुःख-सुख बांटें। अकेलापन अधिकांश लोगों(अगर आप योगी नही है तो) को अवसाद की तरफ़ ले जाता है , इससे बचना चाहिए।

    सही मनोदृष्टि- दुनिया को अपने दुखों का कारण मानना बंद करें।जीवन का सत्य समझे की दुःख और सुख संसार का नियम है और आनंद चित्त का स्वाभाविक निरंतर स्वभाव है जिसे सतचितानंद कहते हैं , जिसकी प्राप्ति योगमार्ग से होती है

    गंभीर होने की बीमारी – ज्यादा गंभीर होना अपने आप में बीमारी है रोज़ सामान्य बातों में हंसे लोगों से मजाक करें सुने , ये सब हमारे मन को हल्का करता है