राष्ट्र को सशक्त, समृद्ध बनाने के लिए सभी परिश्रम करना न छोड़ें: दत्तात्रेय होसबाले
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि संघ का एकमेव विचार व्यक्ति व समाज का निर्माण करना है। राष्ट्र को सशक्त व समृद्ध बनाकर स्वर्णिम दिन लाने के लिए परिश्रम करना न छोड़ें। राष्ट्रधर्म पत्रिका के विशेषांक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विचार यात्रा के सौ वर्ष के विमोचन समारोह में उन्होंने कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाने की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है।

जागरण संवाददाता, लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि महाराष्ट्रीय अभियान की 100 वर्ष की यात्रा पूरी होकर गुरुवार को 101वें वर्ष में प्रवेश करेगी।
देश में आनंद का वातावरण है, सरकार ने इस अवसर पर डाक टिकट व सिक्का जारी किया है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि संघ का स्टांप समाज के लिए कितने महत्व का है? संघ का सिक्का क्या समाज पर भी चला? यह अनुभव इसलिए करना जरूरी है क्योंकि संघ का एकमेव विचार व्यक्ति व समाज का निर्माण करना है। राष्ट्र को सशक्त व समृद्ध बनाकर स्वर्णिम दिन लाने के लिए परिश्रम करना न छोड़ें।
बुधवार को भागीदारी भवन में राष्ट्रधर्म पत्रिका के विशेषांक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ : विचार यात्रा के सौ वर्ष के विमोचन समारोह में सरकार्यवाह ने कहा, संघ की साधना की एक शताब्दी में लखनऊ से प्रकाशित मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म एक दीपशिखा के समान है, यह मासिक पत्रिका प्रचार पाने, धन कमाने या किसी को आगे बढ़ाने के लिए नहीं शुरू हुई थी।
एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय, नाना जी देशमुख व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जैसे अनेकों मनीषियों ने समाज में वैचारिक जागृति व संक्रांति लाने और व्यक्ति निर्माण के लिए पूरी पवित्रता, समर्पण व लगन से कार्य किया।
तन-मन-विचार सब समर्पित कर स्वयंसेवकों ने समाज को संगठित किया। यही संघ की असली पूंजी है। राष्ट्रधर्म एक शाश्वत धर्म भी है। भारत में जन्मे हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह सोचे राष्ट्र के लिए जीवन में किस क्षेत्र में वह क्या कर सकते हैं।
होसबाले ने कहा, आज जब दुनिया भारत को विश्वगुरु कह रही है, तब जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है कि वह अपने अध्यात्म, संस्कृति और मूल्यों के बल पर विश्व को सही दिशा दिखाएं।
उन्होंने ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस मेडिसन का उल्लेख करते हुए कहा कि 2000 वर्षों तक भारत दुनिया का आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा। यही परंपरा हमें फिर से जीवित करनी है।
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