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    गर्भवतियों में बच्‍चों व वयस्‍क से अलग है सीपीआर का तरीका, केजीएमयू में लाइव डेमो से बताई गई कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन की तकनीक

    By Rafiya NazEdited By:
    Updated: Mon, 16 Aug 2021 03:40 PM (IST)

    गर्भवतियों बच्चों महिलाओं और वयस्कों को सीपीआर देने के तरीके अलग-अलग हैं। इसे लेकर शनिवार को केजीएमयू में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के सहयोग से एक लाइव ड ...और पढ़ें

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    केजीएमयू में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की ओर से हुआ सीपीआर का लाइव डेमो।

    लखनऊ, जागरण संवाददाता। काडिर्येक अरेस्ट आने पर शुरुआत के तीन मिनट सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। अगर इस दौरान मरीज को कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) दे दिया जाए तो अधिकांश मरीजों की जिंदगी बचाई जा सकती है। मगर बच्चों, महिलाओं और वयस्कों को सीपीआर देने के तरीके अलग-अलग हैं। इसे लेकर शनिवार को केजीएमयू में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के सहयोग से एक लाइव डेमो के माध्यम से डाक्टरों, नर्सों और टेक्नीशियन को प्रशिक्षित किया गया।

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    केजीएमयू में एनेस्थीसिया की प्रो. डा. रजनीगुप्ता ने बताया कि अगर किसी गर्भवती महिला को काडिर्येक अरेस्ट हो जाए तो उसे हल्का सा बांये करवट कर देना चाहिए या फिर उसके कंधे और कूल्हे के नीचे तकिया लगा देना चाहिए। इससे उसका गर्भाशय बांयी ओर लटक जाता है। तब दोनों छाती के बीच वाले हिस्से में दोनों हाथों से प्रतिमिनट 100 पंप करके पांच सेंटीमीटर गहराई तक सीपीआर देने पर रक्त व आक्सीजन का प्रवाह सीधे हार्ट व ब्रेन तक पहुंच पाता है। इस दौरान यदि तीन मिनट में गर्भवती रेस्पांस नहीं कर रही तो गायन्कोलॉजिस्ट से आपातकालीन डिलीवरी (सीजेरियन) को कहा जाता है। ताकि कम से कम बच्चे की जान बचाई जा सके। क्योंकि एक साथ हम दो जिंदगियां नहीं खोने दे सकते। मगर इस दौरान महिला को सीपीआर देना जारी रखा जाता है।

    यह सिखाया गया: डा. रजनी ने बताया कि लाइव डेमो के जरिये यह सिखाया गया कि किसी को काडिर्येक अरेस्ट होने पर बेसिक लाइफ और एडवांस लाइफ सपोर्ट कैसे देना है। मेडिकल टीम को बताया गया कि मरीज को कार्डियेक अरेस्ट होने पर सीपीआर किसे देना है, ड्रग किसे देना है, ईसीजी किसे करना है, शॉट किसे व कैसे देना है व अन्य टेक्निकल सपोर्ट किसे करना है। यदि लगातार तीन मिनट तक दिमाग व हार्ट में आक्सीजन और ब्लड की सप्लाई नहीं पहुंचती तो मरीज का बचना असंभव हो जाता है। इसलिए टाइम मैनेजमेंट पर विशेष फोकस किया गया। कोड ब्ल्यू, रैपिड रेस्पांस टीम और इमरजेंसी टीम के कार्यों को अलग-अलग समझाया गया।

    लक्षण: यदि मरीज अचानक गिरकर बेहोश हो जाए तो यह कार्डियेक अरेस्ट है। वहीं छाती में तेज दर्द हो और वह बांयी ओर उठकर बांये कंधे व पीठ तक पहुंचे, पसीना, घबराहट, बेचैनी हो तो यह हार्ट अटैक के लक्षण हैं। इस दौरान मरीज को 75 एमजी ईकोस्प्रिन की तीन-चार गोलियां एक साथ खा लेनी चाहिए। इससे रक्त का थक्का नहीं बनने पाता। वहीं यदि मुंह टेंढ़ा हो जाए, जुबान लडख़ड़ाने लगे, एक हाथ उठाने पर दूसरा गिर जाए तो यह स्ट्रोक हो सकता है। इसलिए तीनों में फर्क जरूरी है। ताकि मरीज को न्यूरो या कार्डियो में कहां ले जाना है यह सुनिश्चित किया जा सके। इस दौरान लोगों को इससे बचने के उपाय भी बताये गए।

    प्रशिक्षण टीम में यह रहे शामिल: कुलपति डा. बिपिन पुरी, डा. प्रेमराज, डा. तन्मय तिवारी, एसजीपीजीआइ के डा. संदीप साहू, डा. रामनरेश व डा. रजनी गुप्ता।