World Diabetes Day: मुलेठी की जड़ों में मधुमेह का इलाज, सीमैप ने अंतरराष्ट्रीय मानकों पर तैयार की दवा
World Diabetes Day मधुमेह यानी डायबिटीज इस वक्त किसी महामारी से कम नहीं है। खासतौर से भारत में जिस रफ्तार से इसके मामले बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए भारत को दुनिया की डायबिटिक कैपिटल कहा जाने लगा है।

लखनऊ, [रामांशी मिश्रा]। भले ही इस बीमारी का नाम मधु से आरंभ होता है, लेकिन यह जिंदगी भर के लिए जीवन में कड़वाहट घोल देती है। जी हां, मधुमेह यानी डायबिटीज इस वक्त किसी महामारी से कम नहीं है। खासतौर से भारत में जिस रफ्तार से इसके मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए भारत को दुनिया का डायबिटिक कैपिटल कहा जाने लगा है। अब मीठी मुलेठी ही मधुमेह का इलाज करेगी। जी हां, केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) ने मुलेठी की जड़ों में मिलने वाले एक तत्व से इसकी असरकारक दवा बनाई है। यह दवा मुलेठी की जड़ों में मिलने वाले 'आइसोलिक्विरिटिजेनिन' से बनाई गई है। खास बात यह है कि इसे फाइटो फार्मास्यूटिकल्स ड्रग की श्रेणी में बनाया गया है, जिसे वैश्विक स्तर के मानकों पर जांच कर मान्यता मिलती है।
केस एक : लखनऊ के इंदिरा नगर निवासी 53 वर्षीय संतोष कुमारी सिंह को 10 सालों से डायबिटीज है शुरुआती दौर में उनके मधुमेह का स्तर 200 से 250 तक चला जाता था। इसके चलते उनका वजन भी बढ़ गया था। वजन जब 65 किलो तक आ गया तो उन्होंने अपनी दिनचर्या पर काम करना शुरू किया। संतोष की मानें तो उनकी दिनचर्या का सबसे महत्वपूर्ण तत्व उबले करेले से जुड़ा है। अपने हर खाने के बाद नमक के साथ वह उबले करेले खाती हैं जो उनके मधुमेह के स्तर को नियंत्रित रखता है। संतोष अपने खाने की मात्रा पर भी ध्यान देती हैं। एक बार में अधिक खाने के बजाय कई किस्तों में भोजन करती हैं। इसके अलावा नियमित तौर पर टहलना और व्यायाम करना भी उनके मधुमेह के नियंत्रण का राज है। उन्होंने अपने मधुमेह को इतना नियंत्रित कर लिया है कि पिछले 2 सालों से उन्हें मधुमेह नियंत्रण के लिए दवाओं की जरूरत नहीं रही है।
केस दो : सीतापुर निवासी सुरेश चंद्र मिश्रा 22 वर्षों से मधुमेह के लिए दवा ले रहे थे। उन्हें हाई शुगर के साथ उच्च रक्तचाप की भी परेशानी हो गई थी। इससे निपटने के लिए वह तीन से चार दवाइयां खाते थे, लेकिन पिछले चार वर्षों से अपनी दिनचर्या में बदलाव लाकर उन्होंने मधुमेह पर नियंत्रण पा लिया है। उनकी दिनचर्या में सुबह 4:30 बजे उठकर प्राणायाम से लेकर खानपान में बदलाव और समय की प्रतिबद्धता शामिल हैं। वह रोजाना दो से तीन किलोमीटर तक शाम को टहलते हैं। उनके खानपान में रोटियां कम हो गई हैं और फल और हरी सब्जियों के साथ विभिन्न दालें शामिल हो गई हैं। इसके अलावा रात के खाने का निश्चित समय भी है शाम 7:30 बजे तक वह रात का खाना खा लेते हैं। वह कहते हैं कि समय की प्रतिबद्धता मधुमेह नियंत्रण की कुंजी है।
केस तीन : गोंडा के साकेत स्वरूप रस्तोगी को चार साल पहले हाई शुगर की परेशानी सामने आई थी। इसके बाद से ही उन्होंने दिनचर्या में बदलाव शुरू किया। अपनी दिनचर्या में उन्होंने योग, प्राणायाम, साइक्लिंग और हरी सब्जियों को शामिल किया। इसके फलस्वरूप 90 किलोग्राम के वजन के बाद अब उनका वजन 72 किलोग्राम पर आ गया है। वह कहते हैं कि पहले उन्हें तीन से चार दवाइयां खानी पड़ती थी लेकिन दिनचर्या में बदलाव की वजह से अब यह घटकर एक दवाई पर आ गया है।
यह कुछ ऐसे मामले थे जिन्होंने अपने खान-पान पर नियंत्रण और अपनी दिनचर्या में बदलाव लाकर मधुमेह पर नियंत्रण पाया है, लेकिन अब भी एक बड़ा तबका मधुमेह से ग्रसित है और दवाओं पर निर्भर है। अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन द्वारा की गई गणना में 2019 तक लगभग 47 करोड़ व्यक्तियों को डायबिटीज से पीड़ित पाया गया। उनके अनुसार यह आंकड़ा वर्ष 2045 तक 70 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की प्रयोगशाला सीमैप के प्रधान विज्ञानी डा. ए पी यादव ने बताया कि आइसोलिक्विरिटिजेनिन पर शोध में हमने मधुमेह विरोधी (एंटी डायबिटिक) गुण पाए थे। इस शोध को संस्थान ने कुछ समय पहले अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र 'फाइटोमेडिसिनÓ में प्रकाशित किया था। जिसके बाद फाइटो फार्मास्युटिकल मिशन के तहत उन्हें यह दवा बनाने की अनुमति मिली। डा. यादव ने बताया कि इसका पहला ट्रायल ट्रांसजेनिक चूहों पर किया गया है। इसमें 90 दिनों तक उन्हें यह दवा खिलाई गई है। 14 से 28 दिनों में इस दवा के बेहतरीन परिणाम नजर आए हैं। इस दवा की सबसे अच्छी बात यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। उन्होंने बताया कि 'आइसोलिक्विरिटिजेनिन' के अब तक मुलेठी की जड़ों मेें ही पाए जाने की पुष्टि हुई है। अन्य पौधों में इसको ढूंढऩे की प्रक्रिया जारी है।
सीएसआइआर की प्रयोगशाला जब भी किसी नई तकनीक या दवा इजाद करती है तो उसे फार्मा उद्योग को सौंपा जाता है। जिससे उसका उत्पादन वृहद स्तर पर हो सके और यह ज्यादा से ज्याद लोगों तक पहुंच सके। शोध के प्रथम चरण में चूहों पर किए गए रिसर्च में संस्थान ने पहले ही प्रयास में सफलता पाई है। अब इसके क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी शुरू हो गई है, जिसके लिए आवश्यक अनुमति और कार्यवाही जारी है। डॉ त्रिवेदी ने बताया कि ड्रग के पेटेंट की प्रक्रिया जारी है। उन्हें आशा है कि इस ड्रग के बाजार में उतरने के बाद मधुमेह रोगियों को राहत मिलेगी।
सीमैप की पहली दवा : मधुमेह के लिए सीमैप की खुद के प्रयास से बनी पहली दवा होगी। इससे पहले सीमैप ने एबीआरआइ के साथ मिलकर शुगर की आयुर्वेदिक दवा बीजीआर-34 बनाई थी। यह दवा काफी सफल है। यह दवा पूरी तरह से सीमैप के शोध और प्रयास का सुफल है।
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