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    थाई मांगुर खाने के शौकीन तो नहीं है आप, जान‍िए क्‍यों जानलेवा है यह मछली; भारत में है प्रत‍िबंध‍ित

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Thu, 17 Dec 2020 09:31 AM (IST)

    चंद्र भानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि थाई मांगुर मछली 2000 में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी क्योंकि यह मछली पानी के अंदर पाये जाने वाले लाभदायक शैवालो तथा छोटी मछलियों को खा जाती थी।

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    यह मछलियां पशुओं के मांस के साथ-साथ मनुष्यों के मांस को भी खाती हैं ।

    लखनऊ, जेएनएन। प्रदेश सरकार द्वारा एक तरफ मछली पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है वहीं पर जिन मछलियों को सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया उन्हें मत्स्य पालक पाल रहे हैं। जिससे कई गंभीर बीमारी फैलाने का खतरा है। मछली पालन किसानों की आय बढ़ाने का एक अच्छा साधन है वहीं पर जब किसानों द्वारा प्रतिबंधित मछलियां पाली जाएंगी तो बीमारी का स्तर बढ़ता जाएगा।

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    बख्शी का तालाब स्थित चंद्र भानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि थाई मांगुर मछली 2000 में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी क्योंकि यह मछली पानी के अंदर पाये जाने वाले लाभदायक शैवालो तथा लाभदायक प्रजातियों की छोटी मछलियों को खा जाती थी। थाई मांगुर मछली मांसाहारी मछली है और यह मांस को बड़े चाव से खाती है जिसकी वजह से सड़े हुए मांस खाने से मछलियों के शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है यह मछलियां तीन माह में दो से 10 किलोग्राम वजन की हो जाती हैं। इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जिसमें आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है।

    यह मछलियां पशुओं के मांस के साथ-साथ मनुष्यों के मांस को भी खाती हैं मांस में पूर्व में अवशोषित जहरीले कीटनाशक इस मछली के मांस में काफी समय तक उपस्थित रहते हैं। इन्हीं सब कारणों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2000 में इस मछली के पालन तथा प्रजनन केंद्रों पर रोक लगा दी थी और आज भी यह रोक लगी हुई है। इस मछली की वृद्धि एवं विकास तेज रफ्तार में होने के कारण कम समय में यह बाजार में पहुंच जाती है और सस्ती होने के कारण इसे लोग अधिक क्रय करते हैं, इस मछली के द्वारा प्रमुख रूप से गंभीर बीमारियां जिसमें हृदय संबंधी बीमारी के साथ न्यूरोलॉजिकल, यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियां तथा कैंसर जैसी घातक बीमारी अधिक हो रही है।

    डॉ सिंह ने मत्स्य पालकों को सलाह दी कि इस मछली की जगह और भी अन्य प्रजातियां हैं जिसमें ग्रास कटर, रोहू, चाइना, सिल्वर, ब्रिगेड एवं नैनी को पाल सकते हैं इसके लिए चार से पांच फीट गहरे तालाब की आवश्यकता होती है। इसमें मत्स्य पालको को 50 लाइन का बच्चा पालना चाहिए जिसमें मृत्यु दर बहुत कम होती है यह प्रजातियां लगभग छह माह में तैयार हो जाती हैं। एक एकड़ में लगभग 3 क्विंटल का उत्पादन होता है, इसके लिए 50 लाइनें बच्चे की आवश्यकता होती है। अच्छी प्रकार से फीडिंग कराने से लगभग एक से डेढ़ किलोग्राम की मछली तैयार हो जाती है। जो मत्स्य पालक पहली बार मछली पालन का काम करने जा रहे हैं उनको सलाह दी जाती है कि तालाब की अच्छी तरीके से सफाई करने के बाद चूने के घोल का छिड़काव कर ले जिससे बीमारियों का कम खतरा रहेगा।

    तालाबों की चारों तरफ सहजन यहां के पौधों की रोपाई कर दें जिससे अतिरिक्त आय के भी कमाई जा सकती है और तालाबों में पानी का तापक्रम भी नियंत्रित रहेगा। समय-समय पर तालाबों के पानी को बदलते रहना चाहिए। तालाबों में जब बरसात का गंदा पानी एकत्रित होता है तभी मछलियों में अधिक बीमारियां होती हैं इसलिए गंदे पानी को तालाब में नहीं आने देना चाहिए। कीटों के प्रबंधन के लिए क्लोरीन, फास्फोरस युक्त रसायनों का अधिक प्रयोग हो रहा है जिससे तालाबों का पानी दूषित हो रहा है मत्स्य पालकों को ध्यान रखना चाहिए की मछली पालन से पहले तालाबों के पानी मे कीटनाशक की जांच कराना अति आवश्यक है।