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विकास के नक्शे से बरसों तक नदारद रहे बुंदेलखंड ताजा हवा का झोंका महसूस करता हुआ

अमृत है ऊर्जा है जल ही जीवन है। जल में ही देवता है जल ही जीवन का सार है। मेड़बंदी से भूजल स्तर बढ़ता है खेतों में नमी रहती है। यदि पानी के लिए तीसरे विश्व युद्ध से बचना है तो जल संरक्षण करना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 25 Jan 2021 12:51 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jan 2021 12:51 PM (IST)
विकास के नक्शे से बरसों तक नदारद रहे बुंदेलखंड ताजा हवा का झोंका महसूस करता हुआ
देश के पहले जलग्राम जखनी में पानी से लबालब तालाब दिखाते जल योद्धा उमा शंकर पांडेय। फाइल

लखनऊ, राजू मिश्र। विकास के नक्शे से बरसों तक नदारद रहे बुंदेलखंड में मौजूदा दौर में ताजा हवा का झोंका महसूस किया जा रहा है। इसकी बानगी खैरार जंक्शन और भीमसेन जंक्शन के बीच चल रहे रेलवे ट्रैक दोहरीकरण के काम की तेजी के रूप में देखी जा सकती है। माना जा रहा है कि इससे लखनऊ-जबलपुर के बीच ट्रेनें शुरू की जा सकती हैं। चित्रकूट व बांदा से दिल्ली, कानपुर, हरिद्वार, सतना, प्रयागराज आदि जगहों पर जाने वालों को सुविधा होगी।

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बुंदेलखंड में रेल लाइन की शुरुआत बांदा-कानपुर रेलखंड के निर्माण के साथ 1885 में ब्रिटिश शासन में हुई थी। तब रेल लाइन बिछाने की मुख्य वजह इस रूट पर सामान पहुंचाने के लिए मालगाड़ी दौड़ाना था। कुछ साल बाद इसी रेल लाइन पर पैसेंजर ट्रेन भी दौड़ाई गई। यह वर्षो तक चलता रहा। बाद में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों ने रेलवे लाइन को उखाड़ दिया। हालांकि आजादी के बाद इसे फिर से ठीक कर शुरू कराया गया। कुछ पुराने स्टेशन खत्म हुए और नए बनाए गए। इस रेल लाइन पर मालगाड़ियों के साथ यात्री ट्रेनें बढ़ाई गईं। लेकिन क्षमता विस्तार नहीं किया गया। रेलवे लाइन सिंगल होने से यातायात प्रभावित हो रहा था। बांदा-कानपुर रेल खंड के दोहरीकरण की मांग होती रही। अब यह काम जमीन पर दिखाई दे रहा है।

बुंदेलखंड की सूरत बदलने में प्रदेश सरकार के साथ ही रेलवे, रक्षा मंत्रलय, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अपनी भूमिका निभा रहे हैं। झांसी-मानिकपुर और झांसी-खजुराहो रेल लाइन के दोहरीकरण की भी अनुमति दी गई है। एक्सप्रेस-वे के जरिये भी चित्रकूट-बांदा के साथ हमीरपुर, महोबा, जालोन, औरैया और इटावा को जोड़ा जा रहा है। इससे विकास और रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।

जल ग्राम बनाने की योजना : समुदाय के आधार पर बगैर किसी सरकारी सहायता के परंपरागत तरीके से अगले पांच वर्षो में देश के 100 गांवों को जलग्राम बनाने की योजना है, जिसमें उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में 60 गांवों को चिन्हित किया जा रहा है। जल योद्धा उमा शंकर पांडेय के नेतृत्व में जल ग्राम बनाए जाएंगे। भारत सरकार के जल मंत्रलय ने जल क्रांति अभियान के अंतर्गत बुंदेलखंड के 15 जिलों के 30 गांवों को पहले ही जल ग्राम की सूची में शामिल किया है। 30 गांवों का चयन स्थानीय समुदाय से परामर्श के बाद समाज तय करेगा। इसकी सूचना सरकार को दी जाएगी।

जल संरक्षण की दिशा में समुदाय के आधार पर जल ग्राम की शुरुआत मोदी सरकार के प्रयास से 2015 में की गई थी। जलक्रांति की गाइड लाइन के अनुसार जल ग्राम उन गांवों को कहते हैं जिन गांव में पानी न हो, लेकिन पुराने तालाब हों, नाले हों, परंपरागत जल स्नोत रहे हों। लेकिन किसी कारणवश उनमें वर्षा का पानी नहीं जा रहा है, वर्षा बूंदें नहीं पहुंच पा रही हैं। मेड़बंदी के माध्यम से खेतों में जल रोककर खेतों को पानीदार बनाएं, भूजल स्तर ऊपर आए, इस दिशा में सर्वप्रथम जल योद्धा उमा शंकर पांडेय के नेतृत्व में जखनी के किसानों ने पहल की। खेत पर मेड़-मेड़ पर पेड़, का नारा देकर वर्षा भू-जल संरक्षण की शुरुआत की। बगैर किसी सरकारी सहायता के वर्ष 2000 में इसे मेड़बंदी सामूहिक भू-जल संरक्षण यज्ञ का नाम दिया। एक दशक के निरंतर प्रयास के बाद मोदी सरकार ने ऐसे समुदाय प्रयासों के गांव को जल ग्राम के रूप में चुना।

विश्व जल दिवस 22 मार्च को बुंदेलखंड के 30 गांवों को जल ग्राम बनाने के लिए समुदाय को काम करना है। मौजूदा समय में इन गांवों का भू-जल स्तर क्या है, जल स्नोत तालाबों-सार्वजनिक जल स्नोतों की क्या स्थिति है, पांच वर्ष में कितनी प्रगति होती है, किसानों का बोने का एरिया कितना बढ़ता है, नई फसलें क्या-क्या पैदा होंगी, यह सब होगा। वस्तुत: प्रयोग सदैव छोटे होते हैं, परिणाम बड़े होते हैं। बांदा जिले के जखनी गांव में अंधेरा-अंधेरा कहने के बजाय एक छोटे से दीपक से उजाला करने की कोशिश की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परंपरागत तरीके से समुदाय जल संरक्षण के लिए सभी प्रधानों को पत्र लिखा है। जल संरक्षण सरकार का नहीं समाज का विषय है। जल में ही सिद्धि, प्रसिद्धि, समृद्धि है। 

[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]


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