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UP Assembly Election 2022: बसपा से फिर मिले ब्राह्मण तो बदल जाएंगे सियासी समीकरण, जानें- क्या है मायावती की रणनीति

UP Assembly Election 2022 दलित मुस्लिम और ब्राह्मण गठजोड़ से 2007 में सत्ता हासिल कर चुकीं बसपा सुप्रीमो मायावती खास तौर पर सोशल इंजीनियरिंग का दांव पूरी ताकत से उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में भी चलना चाहती हैं।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 08 Sep 2021 07:00 AM (IST)Updated: Wed, 08 Sep 2021 03:53 PM (IST)
UP Assembly Election 2022: बसपा से फिर मिले ब्राह्मण तो बदल जाएंगे सियासी समीकरण, जानें- क्या है मायावती की रणनीति
बसपा से फिर मिले ब्राह्मण तो बदल जाएंगे यूपी सियासी समीकरण।

लखनऊ [अजय जायसवाल]। पिछले चुनावी दृश्य लहर से बदलते रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में जातीय दांव से बाजी जीतते रहे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का भरोसा इसी सूत्र पर अब भी टिका है। निस्संदेह जाति की गोटें बिठाने में भारतीय जनता पार्टी के भी रणनीतिकार पीछे नहीं रहे, लेकिन बसपा व सपा का बहुत सधा गणित है। अपने-अपने जातिगत वोट बैंक के साथ मुस्लिम मत में हिस्सेदारी बराबरी के लिए है तो ब्राह्मणों के बोनस वोट से यह समीकरण बदल देना चाहते हैं। दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण गठजोड़ से 2007 में सत्ता हासिल कर चुकीं बसपा सुप्रीमो मायावती खास तौर पर सोशल इंजीनियरिंग का दांव पूरी ताकत से 2022 के विधानसभा चुनाव में भी चलना चाहती हैं।

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दरअसल, वर्ष 2012 में सत्ता गंवाने के बाद से अब तक हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बसपा का जनाधार खिसकता ही रहा। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी शून्य पर सिमट गई थी। भाजपा के बढ़ते प्रभाव से पार्टी की घटती ताकत का ही नतीजा रहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती ने अपनी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी तक से गठबंधन करने में गुरेज नहीं किया। गठबंधन से पार्टी को दस लोकसभा सीटें तो मिल गईं, लेकिन पार्टी की स्थिति सुधरती नहीं दिखी। ऐसे में मायावती ने गठबंधन तोड़ अकेले ही विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया।

चूंकि वर्ष 2007 में दलितों के साथ ही बड़े पैमाने पर मुस्लिम और ब्राह्मण समाज को जोड़ने से पार्टी बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही थी, इसलिए बसपा प्रमुख एक बार फिर उसी सोशल इंजीनियरिंग से सत्ता हासिल करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं। हालांकि, डेढ़ दशक में सूबे की राजनीति में बड़े बदलाव हो गए हैं। पहले हासिये पर रही भाजपा वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण सहित पिछड़े व दलितों के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही जिससे भाजपा का ग्राफ लगातार बढ़ता ही रहा। पिछले विधानसभा चुनाव में तो भाजपा अपने सहयोगियों के साथ रिकार्ड 325 सीटें जीतने में कामयाब रही।

पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज के भाजपा से नाराज होने की चर्चा से समाज के वोट बैंक पर सपा के साथ ही बसपा की फिर से नजर है। वैसे तो भाजपा, ब्राह्मण समाज की नाराजगी दूर करने के लिए तमाम जतन कर रही है लेकिन फिलहाल उसे पहले जैसा ब्राह्मणों का साथ मिलता नहीं दिख रहा है। ऐसे में सपा व बसपा ब्राह्मण समाज में अपनी पैठ बनाने के लिए सम्मेलनों के साथ ही परशुराम की मूर्ति भी लगवा रही है।

मायावती और पार्टी महासचिव सतीश मिश्र को लगता है ब्राह्मण तो बसपा के साथ ही आएगा। वैसे तो अभी यही लगता है मुस्लिम समाज सपा के साथ रहेगा, लेकिन बसपा, मुस्लिम समाज को अबकी बार कहीं ज्यादा टिकट देने की तैयारी में हैं। ऐसे में मुस्लिम समाज भी अगर बसपा से जुड़ता है तो उसके लिए सत्ता की राह आसान हो सकती है। हालांकि, जिस तरह से मुस्लिम वोटबैंक को लेकर छोटे दल भी सक्रिय होते दिख रहे हैं, उससे मुस्लिम मत बंट सकते हैं जिसका सीधा फायदा पूर्व की भांति भाजपा को मिलना तय है।

14 फीसद ब्राह्मणों का 103 सीटों पर प्रभाव : उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण समाज का सदैव वर्चस्व रहा है। राज्य की कुल आबादी में लगभग 14 फीसद हिस्सेदारी ब्राह्मण समाज की मानी जाती है। 403 विधानसभा सीटों में से 103 पर ब्राह्मण समाज का प्रभाव कहा जाता है। इनमें भी 47 सीटें तो ऐसी हैं, जिन पर 25 फीसद से भी ज्यादा ब्राह्मण समाज का वोट है। लखनऊ, वाराणसी, चंदौली, बहराइच, रायबरेली, अमेठी, उन्नाव, शाहजहांपुर, सीतापुर, कानपुर, सुलतानपुर, भदोही, जौनपुर, मीरजापुर, प्रयागराज, अंबेडकरनगर, गोंडा, बलरामपुर, संत कबीरनगर, महराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, श्रावस्ती आदि जिलों की ज्यादातर सीटें ब्राह्मण बहुल हैं।


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