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उत्तर प्रदेश में पिछड़ों के बाद अब भाजपा का ब्राह्मण कार्ड

महेन्द्र नाथ पाण्डेय की इस तैनाती की डोर 2019 के लोकसभा चुनाव से जुड़ी है। वैसे सूबे में आने वाले निकाय चुनाव में पाण्डेय की परीक्षा होनी है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 01 Sep 2017 01:58 PM (IST)Updated: Fri, 01 Sep 2017 03:07 PM (IST)
उत्तर प्रदेश में पिछड़ों के बाद अब भाजपा का ब्राह्मण कार्ड
उत्तर प्रदेश में पिछड़ों के बाद अब भाजपा का ब्राह्मण कार्ड

लखनऊ [आनन्द राय]। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री महेन्द्र नाथ पाण्डेय को प्रदेश की कमान सौंपकर भले ही अटकलों को विराम दे दिया लेकिन, अब पार्टी के भीतर तथा बाहर समीकरणों को लेकर बहस चल पड़ी है। दरअसल, भाजपा ने पिछड़ों के बाद अब ब्राह्मण कार्ड खेला है। इसकी वजहें तो कई हैं लेकिन, रायबरेली के ऊंचाहार कांड से ब्राह्मणों की नाराजगी ने नेतृत्व को यह फैसला करने के लिए प्रेरित किया। 

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महेन्द्र नाथ पाण्डेय की इस तैनाती की डोर 2019 के लोकसभा चुनाव से जुड़ी है। वैसे सूबे में आने वाले निकाय चुनाव में पाण्डेय की परीक्षा होनी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी प्रदेश की भाजपा ब्राह्मण नेतृत्व के हाथों में थी। तब डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेई कमान संभाल रहे थे। 2014 का चुनाव पिछड़ा, दलित और ब्राह्मण समीकरण के साथ भाजपा लड़ी।

पिछड़े चेहरे के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही बोलबाला था। नतीजा भाजपा और सहयोगी दलों ने 80 में से 73 सीटें जीत ली। प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नया प्रयोग किया और आठ अप्रैल, 2016 को फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। शुरू में केशव के नेतृत्व पर संशय था लेकिन, उन्होंने रफ्तार पकड़ी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ों के नेतृत्व के रूप में उभरे तो उनकी अगुआई में भाजपा और सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश में 325 सीटें जीतीं। इसके बाद से नए अध्यक्ष के रूप में दलित, पिछड़ा और ब्राह्मण को लेकर खूब अटकलें लगाई जा रही थीं। 

परंपरागत मतों को सहेजने की कोशिश 

ब्राह्मण भाजपा के परंपरागत वोट माने जाते हैं लेकिन, हाल के कुछ वर्षों से वह उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। खासतौर से लक्ष्मीकांत बाजपेई को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद एक धड़ा इस बात को प्रचारित करने में लगा था। इधर, सरकार बनने के बाद रायबरेली के ऊंचाहार में पांच ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या ने भाजपा की पेशानी पर बल ला दिया। 

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शुरू में तो यह मामला दबा रहा लेकिन, घटना के तीन-चार दिन बाद विपक्ष के ब्राह्मण नेताओं की अगुआई में जिलों-जिलों में धरना-प्रदर्शन शुरू हुए तो फिर ब्राह्मण वर्ग को संभालने की चुनौती आ गई। भाजपा ने इसके लिए उपक्रम किए। 

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा ने रायबरेली के अभियुक्तों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए। नेतृत्व ने यह महसूस किया कि कहीं न कहीं गैप है, लिहाजा इस गैप को भरने के लिए ब्राह्मण नेतृत्व पर ही दारोमदार सौंप दिया। 

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पूर्वी उप्र का भी समीकरण 

महेन्द्रनाथ पाण्डेय की ताजपोशी से पूर्वी उत्तर प्रदेश का भी समीकरण जुड़ा है। पूर्वांचल के एक छोर गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ प्रदेश सरकार के मुखिया हैं तो दूसरे छोर चंदौली के सांसद महेन्द्र नाथ पाण्डेय को प्रदेश की कमान दी गई हैं।

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देखा जाए तो भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण पदों पर सांसदों पर ही भरोसा जताया है। पाण्डेय सूर्यप्रताप शाही के कार्यकाल में प्रदेश महामंत्री भी रहे हैं। 


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