यूपी में 'कुर्मी कार्ड' से भाजपा ने चली 2027 के विधानसभा चुनाव की चाल, OBC समाज पर मजबूत होगी पकड़
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 2027 के विधान सभा चुनाव के लिए 'कुर्मी कार्ड' खेला है, जिसका उद्देश्य ओबीसी रणनीति में बढ़त बनाना है। पार्टी कुर्मी समुदाय क ...और पढ़ें

शाेभित श्रीवास्तव, लखनऊ। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर आने वाले चुनावों से पहले बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। यह निर्णय केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के अनुभवों से निकली सोची-समझी रणनीति माना जा रहा है। सपा ने पिछले लोक सभा चुनाव में कुर्मी समाज के 10 उम्मीदवार उतारे थे उनमें से सात जीतकर संसद पहुंचे हैं।
कुर्मी समाज न सिर्फ संगठित है, बल्कि सही राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलने पर निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। इसी सियासी संदेश को भाजपा ने गंभीरता से लेते हुए कुर्मी कार्ड चलकर 2027 के विधान सभा चुनाव की चाल साधने की कोशिश की है।
प्रदेश की राजनीति में कुर्मी समाज की आबादी भले ही आठ प्रतिशत आंकी जाती हो, लेकिन 70 से 80 विधान सभा सीटों पर इनका सीधा प्रभाव माना जाता है। खासकर पूर्वांचल, अवध, बुंदेलखंड और तराई क्षेत्रों में कुर्मी मतदाता कई सीटों पर जीत-हार का रुख तय करते हैं।
प्रदेश अध्यक्ष जैसा अहम पद कुर्मी समाज के नेता को सौंपकर भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक को और मजबूत करने की कोशिश की है। इससे पहले भी भाजपा का कुर्मी कार्ड वर्ष 2022 में सफल हुआ था, उस समय स्वतंत्र देव सिंह प्रदेश अध्यक्ष थे और भाजपा की पांच वर्ष सरकार रहने के बावजूद 403 में से 255 सीटें मिली थीं।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह कदम अपना दल (एस) के पारंपरिक कुर्मी प्रभाव को भी संतुलित करने की दिशा में देखा जा रहा है। भाजपा चाहती है कि कुर्मी वोट बैंक केवल गठबंधन तक सीमित न रहे, बल्कि संगठन के भीतर स्थायी रूप से जुड़कर पार्टी की कोर राजनीति का हिस्सा बने।
इस नियुक्ति के जरिए भाजपा ने सामाजिक संतुलन का भी संदेश दिया है। संगठन की कमान गैर यादव ओबीसी वर्ग को देकर पार्टी ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि सत्ता और संगठन में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा की कुर्मी रणनीति की सफलता के बाद भाजपा का यह कदम 2027 विधान सभा चुनाव से पहले ओबीसी राजनीति में बढ़त बनाने की कोशिश है।
भाजपा इसे संगठनात्मक मजबूती और समावेशी नेतृत्व का उदाहरण बता रही है। प्रदेश अध्यक्ष के बाद अब प्रदेश की टीम के जरिए भी जातीय व क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश की जाएगी।

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