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    शिक्षक पढ़ाई के साथ-साथ जीवन के मार्गदर्शक भी थे : प्रो. धर्मेंद्र सिंह सेंगर

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Mon, 16 Nov 2020 03:52 PM (IST)

    प्रो. धर्मेंद्र सिंह सेंगर भारतीय प्रबंध संस्थान लखनऊ के प्रोफेसर उदयपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और भारतीय विधि संस्थान के निदेशक रह चुके हैं। उन्होंन ...और पढ़ें

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    लखनऊ विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त किए हुए प्रो. धर्मेंद्र सिंह सेंगर से खास बातचीत।

    लखनऊ, जेएनएन। मुझे जो भी देश-विदेश में पद-प्रतिष्ठा व मान-सम्मान मिला उसके पीछे मेरी लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त उच्च शिक्षा ही है। जब मैं अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था तो वहां के एक प्रोफेसर ने लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रति आदर व्यक्त करते हुए मुझे बताया कि प्रो. आरयू सिंह भारत के उन चुनिंदा लोगों में से थे जिन्होंने सबसे पहले हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय से विधि की शिक्षा प्राप्त की थी।

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    इसी तरह जब मैंने भारतीय विधि संस्थान, नई दिल्ली में निदेशक पद संभाला तो सुप्रीम कोर्ट के एक माननीय न्यायाधीश ने बताया था कि भारतीय विधि संस्थान के प्रथम निदेशक डॉ. एटी मरकोस लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले एलएलडी थे। यह है लखनऊ विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास। मैंने 1972 में लखनऊ विश्वविद्यालय के बीएससी में प्रवेश लिया था और 1981 में एलएलएम करने के तुरंत बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय में विधि प्रवक्ता पद पाने के बाद छात्रावास छोड़ा था। इसके बाद 1990  से 1993 के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि विभाग में शोधकार्य करते हुए 1994 मे एलएलडी की उपाधि प्राप्त की । लगभग 12 वर्षों तक लखनऊ विश्वविद्यालय में रहा जिनमें से लगभग आठ वर्ष तिलक व महमूदाबाद छात्रावास में बिताए थे । तिलक छात्रावास की रैगिंग का अनुभव मुझे आज भी याद है । उस समय के दोस्तों के संपर्क में मैं आज भी हूं। 

    मुझे उस दिनों की एक रोचक घटना याद है, जब अशोक मुस्तफी जी लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति थे । एक दिन कुछ छात्र नेता अपनी मांगों को लेकर भीड़ के साथ जब कुलपति ऑफिस में घुसे तो उसमें मैं भी था। जब भीड़ वापस होने लगी तो मैंने कुलपति जी की पेन उठा कर कहा कि इसे मैं मांग पूरी होने के बाद  ही वापस करूंगी । मांगे पूरी होने के बाद जब मैं पेन वापस करने गया तो उन्होंने ऐसी प्रेरणा दी कि उस दिन के बाद से मैं छात्र नेताओं के किसी जुलूस में नहीं गया । 

    1994 की बात है जब मैंने तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ. शंकर दयाल शर्मा से राष्ट्रपति भवन में मुलाक़ात के दौरान यह बताया की मैंने अपनी एलएलडी की थीसिस लखनऊ विश्वविद्यालय में जमा की है तो उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि विभाग की याद ताजा हो गई । उन्होंने मुझे बताया कि एलएलडी थीसिस की रिपोर्ट बहुत देर में आती है अतः गुरुजी से मिलकर रिपोर्ट जल्दी मंगाने का बार-बार आग्रह करते रहना । उनकी राय मानकर ही तत्कालीन डीन प्रो. बीबी पांडेय से मैंने आग्रह किया था और उनके सहयोग से मेरा एलएलडी परिणाम शीघ्र घोषित हो पाया था । विधि विभाग के प्रो. एलएन माथुर, प्रो. अवतार सिंह, प्रो. आरपी सिंह व प्रो. बलराज चौहान से मुझे जीवन में आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली। मेरा मानना है कि अच्छा टीचर न केवल क्लास में अच्छा पढ़ाता है बल्कि क्लास के बाहर भी वह अपने विचारों व व्यवहार से अपने विद्यार्थी की सोच को प्रभावित कर उसके जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है । ऐसे ही थे हमारे जंतु विज्ञान के प्रो. डॉक्टर केसी पांडेय जी, मैं आज भी उनके विचारों का अनुसरण करता हूं।  

    - लेखक भारतीय प्रबंध संस्थान लखनऊ के प्रोफेसर, उदयपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और भारतीय विधि संस्थान के निदेशक रह चुके हैं।