UP: माफिया मुख्तार के बाद ढह गया अतीक अहमद का भी किला, प्रदेश में चार दशक से कायम था आतंक का साम्राज्य
यूपी में चार दशक से कायम अतीक अहमद के आतंक का किला ढह गया। मुख्तार के बाद अतीक की भी दहशत का अंत हुआ। अब अतीक फिर चुनाव लड़कर कभी माननीय भी नहीं बन सकेगा। सुप्रीम मुहर के बाद पहली बार पर कानून का शिकंजा इस तरह से कसा गया।
लखनऊ, [आलोक मिश्र]। प्रयागराज में उमेश पाल की दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर जो शोर उठा था, उसके बाद माफिया अतीक अहमद सबकी निगाहों में आ गया था। पुलिस व अभियोजन की लगातार मजबूत होती पैरवी का नतीजा एक बार फिर सामने हैं। माफिया मुख्तार अंसारी को 21 सितंबर, 2022 को चार दशकों के बाद पहली बार वर्ष 2003 में लखनऊ जेल में जेलर को धमकाने के मामले में सजा सुनाई गई थी। इसके बाद मुख्तार को दो अन्य मामलों में सजा सुनाई गई है।
कुछ ऐसा ही हश्र माफिया अतीक का भी हुआ है। चार दशकों से अधिक से जो अतीक दहशत का दूसरा नाम बना हुआ था, उसे उम्रकैद की सजा ने दूसरे कुख्यातों को भी सीधा संदेश दिया है। मुख्तार के बाद अब अतीक अहमद भी कभी चुनाव लड़कर बाहुबल के बलबूते माननीय नहीं बन सकेगा। इसके साथ ही अतीक के विरुद्ध हत्या समेत अन्य संगीन धाराओं में दर्ज मुकदमों में अभियान के तहत अभियोजन के कदम बढ़ रहे हैं। मजबूत पैरवी के बलबेते हत्या की संगीन घटनाओं में उसे फांसी की सजा भी सुनिश्चि कराई जा सकती है।
चार दशक से अधिक समय से कानूनी खेल में पुलिस का धता बताते आ रहे अतीक अहमद के लिए लगभग डेढ़ माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट का इनकार वह बड़ा कारण था, जिसके बाद यह लगभग तय हो गया था कि अतीक के लिए अब सलाखों से बाहर आना मुमकिन नहीं होगा। उमेश पाल के अपहरण के मामले में शातिर अतीक ने अभियोजन पक्ष के दो गवाहों के फिर से बयान कराने का रास्ता खोल लिया था। पर, उसे पता नहीं था कि बीते छह वर्षों में पुलिस पैरवी की बदली चाल-ढाल उसके इरादों को कुचलने का काफी है।
17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अतीक पक्ष की सभी दलीलों को दरकिनार करते हुए एमपी-एमएलए कोर्ट, प्रयागराज के 18 दिसंबर, 2022 को दिए गए उस आदेश को निरस्त कर दिया था, जिसमें अभियोजन पक्ष के दो गवाहों के फिर से बयान कराए जाने की अनुमति दी गई थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 16 जनवरी को दिए गए निर्णय पर 17 फरवरी को मुहर लगाते हुए विचारण न्यायलय को छह सप्ताह के भीतर विचारण पूर्ण करने का आदेश दिया था। इसके बाद ही अतीक अहमद व उसके सहयोगियों का काउंटडाउन आरंभ हो गया था। मंगलवार को अाखिरकार वह दिन आ गया, जब अतीक का नाम सजायाफ्ता मुल्जिमों में शामिल हो चुका है।
यूं चलता रहा कानूनी दांवपेच
उमेश पाल के अपहरण के मामले को शुरआत से देखें तो इसमें अतीक अहमद पक्ष का वह कानूनी दांवपेच सामने आते है, जिसकी बदौलत एक खतरनाक अपराधी अब तक सजा से दूर था। उमेश पाल के अपहरण के मामले में धूमनगंज थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष केके मिश्रा ने 26 अक्टूबर, 2007 को आरोपितों के विरुद्ध पहला आरोपपत्र दाखिल किया था। इसके बाद 28 मई, 2011 को दूसरा आरोपपत्र दाखिल किया गया। 27 अक्टूबर, 2007 को कोर्ट ने आरोपपत्र का संज्ञान लिया। इसके नौ वर्ष बाद तीन सितंबर, 2016 को आरोपितों के विरुद्ध आराेप तय हुआ था। इसके बाद गवाहों का परीक्षण चलता रहा और 14 नवंबर, 2022 को बहस आरंभ हुई थी। अतीक पक्ष पिछले कुछ वर्षों से अंतिम बहस न आरंभ हो, इसके लिए अलग-अलग पैतरे चल रहा था। इसी कड़ी में अतीक पक्ष ने अभियोजन पक्ष के दो गवाहों के फिर से बयान कराए जाने की मांग की थी, जिसे एमपी-एमएलए कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। इसके विरुद्ध सरकार हाई कोर्ट गई थी, जिसके बाद बाद बाजी पलटी।
दहशत इतनी थी कि मुकर जाते थे सरकारी गवाह
- चार दशक से आतंक का पर्याय रहे माफिया अतीक अहमद की दहशत इतनी थी कि कोर्ट में उसके विरुद्ध सरकारी गवाह तक खड़े नहीं हो पाते थे। यही वजह है कि बीते 43 वर्षों में अतीक अहमद के विरुद्ध एक के बाद एक हत्या, जानलेवा हमला, अपहरण जैसी संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज होते गए।
- कुल 100 मुकदमे दर्ज होने के बाद अब तक उसे एक भी मामले में सजा नहीं हो सकी थी। वर्ष 1979 में हत्या की वारदात कर जरायम की दुनिया में कदम रखने वाले अतीक अहमद ने समय के साथ अपने बाहुबल के बलबूते राजनीतिक गलियारों तक में धमक जमा ली थी। सांसद व विधायक तक बना।
- राजनीतिक दबदबा ऐसा बढ़ा कि वर्ष 2001 व 2002में सरकार ने उसके विरुद्ध तीन मुकदमे वापस ले लिए थे। 14 मुकदमों में उसके विरुद्ध गवाह ही नहीं टिक सके। नतीजा रहा कि इन मामले में गवाहों के मुकरने व साक्ष्यों के अभाव में अतीक अहमद बरी हो गया।
- छह ऐसे मुकदमे भी रहे, जिनमें पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट लगा दी। जबकि एक मामले में पुलिस ने कहा कि मुकदमे में अतीक को गलत नामजद किया गया। पांच मामलों में अभी विवेचना चल रही है।
- समय सीमा पूरी होने के चलते गुंडा एक्ट के चार मामले समाप्त हो गए थे। वर्ष 1992 में दर्ज शस्त्र अधिनियम के एक मामले में पुलिस समय सीमा के भीतर आरोपपत्र भी दाखिल नहीं कर सकी थी।
- अतीक अहमद के विरुद्ध वर्तमान में कोर्ट में 49 मुकदमे विचाराधीन हैं। इनमें 10 ऐसे मामले भी जिनमें अभी आरोप तय होना शेष है। अतीक के विरुद्ध दर्ज हत्या के 14 मुकदमों में वह पांच में दोषमुक्त हो चुका है।
एक वर्ष में यह माफिया हुए सजायाफ्ता
अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, विजय मिश्रा, ध्रुव सिंह उर्फ कुन्टू सिंह, योगेश भदौड़ा, अमित कसाना, एजाज, अजीत उर्फ हप्पू, आकाश जाट, अनिल दुजाना, मुलायम यादव, राजू मुहम्मद उर्फ चाैधरी, सलीम, सोहराब व रुस्मत।