सियासी प्रपंच से दूर रही अटल-टंडन की दोस्ती, राजनीति से अधिक निजी रिश्तों को देते थे तरजीह
Atal Bihari Vajpayee and Lalji Tandon friendship पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल से था टंडन का अटूट रिश्ता। अटल के अस्वस्थ होने के बाद 2009 में लड़ा था चुनाव।
लखनऊ, जेएनएन। कहा जाता है राजनीति में निजी रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती और सत्ता के गलियारों में कुर्सी के साथ ही रिश्ते के मायने भी बदलते रहते हैं। मगर पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. अटल विहारी वाजपेयी और लाल जी टंडन की सात दशक की दोस्ती पर तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद कभी राजनीतिक रंग नहीं चढ़ा और आखिरी सांस तक रिश्तों की गर्माहट पहले दिन की तरह ही बरकरार रही।
लखनऊ और अटल का रिश्ता अटूट था तो टंडन के दिल में भी केवल लखनऊ बसता था। दोनो का लखनऊ से अल्लड़ प्यार ही उनके बीच सेतु का काम करता था। यह सच है कि अटल ने लखनऊ में जन्म नहीं लिया लेकिन कर्म से वह यहां की मिट्टी की रग रग में बसे थे। अटल का लखनऊ से नाता बहुत पहले से है लेकिन राजनीतिक रिश्ता यहां से 1957 से जोड़ा था। जनसंघ के टिकट पर अटल चुनाव लड़े और हार गए। भले ही तब लखनऊ की राजनीति अटल को रास नहीं आयी लेकिन इस दौरान अटल को लाल जी टंडन जैसा साथी मिला जो तमाम राजनीति उतार चढ़ाव और सियासी टकराव के बावजूद आखिरी दम तक उनके साथ रहा। टंडन के पहले सियासी सफर पर भी अटल का उनको खूब साथ मिला।
1962 में लखनऊ नगर पालिका के चुनाव में टंडन सभासद चुने गए। टंडन हमेशा अटल को अपना साथी नहीं राजनीतिक गुरू मानते थे। उनका कहना था कि अटल भारतीय राजनीति के वह शिखर पुरुष हैं जिनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। यही वजह रही कि जब 2009 के चुनाव में अटल के अस्वस्थ होने पर लाल जी टंडन को उनकी विरासत संभालने को कहा गया तो वह भावुक हो गए। टंडन को अटल के स्थान पर लखनऊ संसदीय सीट का उम्मीदवार बनाया गया। टिकट घोषित होते ही टंडन तत्काल दिल्ली गए और अटल से आर्शीवाद लेकर उनकी फोटो भी साथ लेकर आए। पूरे चुनाव प्रचार में टंडन ने अटल की फोटो अपने पास रखी। टंडन सबसे यही कहते थे कि अटल जी की सीट पर चुनाव लडऩे का सौभाग्य मिलना ही उनके जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। अटल बिहारी जब कभी लखनऊ आते टंडन से मुलाकात के बिना जाते नहीं थे। प्रधानमंत्री रहते हुए अटल का जब भी आना हुआ टंडन से मुलाकात जरूर हुई। अटल जी को चौक की ठंडाई हो चॉट और कचौड़ी बेहद पंसद थी। इसलिए लखनऊ आने से पहले वह टंडन को इसका इंतजाम करने को कहते थे, अटल कहते थे कितना भी व्यस्त रहूं टंडन जी आपकी कचौड़ी खाए बिना नहीं जाऊंगा।
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