HC से ट्रेनी जजों को मिली राहत, बहाली के दिए आदेश; 11 साल पहले हुए इस मामले में हुए थे बर्खास्त
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने वर्ष 2014 में अयोध्या रोड स्थित चरण क्लब और रिसॉर्ट में शराब पीकर हंगामा करने वाले ट्रेनी जजों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने उन्हें सेवा से हटाए जाने संबंधी सभी आदेशों को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने उन्हें बतौर प्रोबेशन ऑफिसर बहाल करने का आदेश दिया है। ये मामला 11 साल पुराना है।

विधि संवाददाता, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या रोड स्थित चरण क्लब और रिसार्ट में वर्ष 2014 में शराब पीकर हंगामा करने वाले ट्रेनी जजों को राहत दे दी है। कोर्ट ने उन्हें सेवा से हटाए जाने संबंधी सभी आदेशों को खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने उन्हें बतौर प्रोबेशन ऑफिसर बहाल करने का आदेश दिया है। यह आदेश जस्टिस जसप्रीत सिंह, जस्टिस मनीश माथुर व जस्टिस सुभाश विद्यार्थी की पूर्ण पीठ ने प्रशिक्षु जज सुधीर मिश्रा व सात अन्य प्रशिक्षु जजों की याचिका को मंजूर करते हुए पारित किया।
ट्रेनी जजों को बात रखने का नहीं दिया गया था मौका
याचियों ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका दिए बिना ही सेवा से हटा दिया गया, जो विधि विरुद्ध है। याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अखिलेश कालरा, संदीप दीक्षित और जयनारायण माथुर ने पैरवी की।
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ट्रेनी जजों पर कलंकित करने वाले आरोप लगाए गए थे
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि ट्रेनी जजों पर जो आरोप लगाकर हटाया गया था, वे उन्हें कलंकित करने वाले थे। इसके बावजूद उन्हें हटाए जाने से पहले अपना पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया गया, जो सुनवाई प्रदान करने के तय सिद्धांत के खिलाफ है।
साल 2014 में रिसॉर्ट में शरीब पीकर हंगामे का है मामला
याची ट्रेनी जजों ने वर्ष 2013 में पीसीएसजे की परीक्षा पास की और विभिन्न जिलों में बतौर सिविल जज व जूनियर जज नियुक्त हुए थे। इंडक्शन प्रोग्राम के लिए वे लखनऊ के इंस्टीट्यूट ऑफ ज्यूडिशियल ट्रेनिंग एंड रिसर्च (जेटीआरआइ) आए थे।
चीफ जज ने सभी ट्रेनी जजों को प्रशासनिक सेवा से बाहर कर दिया था
सात सितंबर 2014 को ट्रेनिंग खत्म होने की पूर्व संध्या पर सभी 15 ट्रेनी जज चरण क्लब और रिसॉर्ट में पार्टी करने पहुंचे थे। आरोप लगा था कि सभी ट्रेनी जजों ने यहां जमकर शराब पी थी। पार्टी के दौरान उनमें आपस में मारपीट हो गई थी। इस घटना का पता चीफ जस्टिस को हुआ तो उन्होने जांच करवाई और बाद में फुल कोर्ट ने प्रशासनिक आदेशों से सभी को सेवा से बाहर कर दिया था।
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