69000 शिक्षक भर्ती : हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में विपक्षी अभ्यर्थियों की ओर से लिखित बहस दाखिल
69000 Assistant Teacher Recruitment इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की डिवीजन बेंच में विपक्षी अभ्यर्थियों की ओर से अपनी-अपनी लिखित बहस पेश कर दी ग ...और पढ़ें

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राइमरी स्कूलों में 69000 शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की डिवीजन बेंच में विपक्षी अभ्यर्थियों की ओर से मंगलवार को अपनी-अपनी लिखित बहस पेश कर दी गई। जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल एवं जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था। हालांकि कोर्ट ने आदेश जारी करने के लिए कोई तारीख नहीं तय की है।
वरिष्ठ अधिवक्ता एचजीएस परिहार ने बताया कि बेंच ने सोंमवार को सुनवाई के बाद सभी पक्षकारों से कहा था कि वे चाहें तो अपनी अपनी लिखित बहस चौबीस घंटे में जमा कर दें। परिहार ने बताया कि मंगलवार को एकल पीठ में जिन अभ्यर्थियों के पक्ष में अंतरिम आदेश हुआ था, उनकी ओर से लिखित बहस बेंच के सेक्रेटरी को हस्तगत करा दिया गया। लिखित बहस में अभ्यर्थियों की ओर से राज्य सरकार की अपीलों का विरोध किया गया है।
डिवीजन बेंच का फैसला सुरक्षित : बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यूपी में 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर एकल पीठ द्वारा अंतरिम रोक लगाए जाने के खिलाफ राज्य सरकार की विशेष अपील पर फैसला सुरक्षित कर लिया है। डिवीजन बेंच ने सोमवार को परीक्षा नियामक प्राधिकारी की ओर से दायर विशेष अपील सुनवाई की थी। अपील पांच जून को दाखिल की गई थी और नौ जून को सुनवाई के लिए सूची बद्ध थी। किंतु राज्य सरकार की ओर से प्रकरण को अति आवश्यक बताते हुए सोमवार को ही सुनने की गुजारिश की गई। बेंच की अनुमति मिलने पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई हुई।
एकल पीठ का आदेश मनमाना व गलत : राज्य सरकार की ओर से तीन जून के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया गया था कि एकल पीठ का आदेश मनमाना व गलत है। एकल पीठ ने प्राधिकारी की दलीलों पर गौर नहीं किया और अंतरिम आदेश जारी कर दिया जबकि याचिका ही पोषणीय नहीं थी। आठ मई, 2020 को जारी परीक्षा परिणाम के सभी सफल अभ्यर्थियों को याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया था। सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने साथ ही यह भी दलील दी कि परीक्षा परिणाम आने के बाद तीन जून से काउंसिलिंग प्रारंभ होनी थी। ऐसे में एकल पीठ को दखल देने का कोई औचित्य नहीं था।
चयन प्रकिया पर रोक : बता दें कि गत तीन जून को एकल पीठ के जस्टिस आलोक माथुर ने सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से अलग-अलग दाखिल ढाई दर्जन ने अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए चयन प्रकिया पर रोक लगा दी थी। एकल पीठ ने यह आदेश प्रश्न पत्र में दिए गए विकल्पों की गड़बड़ी एवं फाइनल आंसर की में प्रथमदृष्टया मतभेद दिखने के बाद पारित किया था। सही विकल्पों की स्पष्टता के लिए कोर्ट ने फाइनल आंसर की से सम्बंधित अभ्यर्थियों की आपत्तियों को दस दिनों में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) को भेजने का आदेश दिया था और यूजीसी के सचिव को एक विशेषज्ञ पैनल का गठन कर उक्त आपत्तियों पर दो सप्ताह में रिपोर्ट परीक्षा नियामक प्राधिकारी को भेजने का आदेश दिया था।

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