अनूठी यात्रा : धर्म-देश को जानने आंध्र प्रदेश के जंगल से निकले 22 आदिवासी बच्चे, रामलला का दर्शन पा हुए धन्य
अनूठी यात्रा आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले से चले ये बच्चे दस हजार किलोमीटर के सफर में देश के विभिन्न रंगों से रूबरू होंगे। चेचू आदिवासी बच्चे अब तक दो हजार किमी की यात्रा कर चुके हैं पूरी। गणितज्ञ कालीदासू ने धर्म-देश की अलख जगाने को बना लिया लक्ष्य।
लखनऊ [भाष्कर सिंह]। आपने भी ऐसे मूल आदिवासियों के बारे में खूब सुना होगा, जो जानवरों का शिकार कर सकते हैं, कई बार इंसानों का भी। किताबों से लेकर फिल्मों तक इनके किस्से बिखरे हुए हैं। इनके लिए गाड़ी, रेल, भवन, देवी देवता, धर्म सब कुछ नया है। जंगल जानवर और शिकार की दुनिया से निकलकर ऐसे 22 बच्चे अपने देश, धर्म और संस्कृति को जानने निकले हैं। आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले से चले ये बच्चे दस हजार किलोमीटर के सफर में देश के विभिन्न रंगों से रूबरू होंगे। अब तक दो हजार किलोमीटर का सफर ये तय कर चुके हैं। बच्चों के साथ चल रहे कालीदासू वासमीधर से बात हुई। गणित के शिक्षक कालीदास ने जो बताया उसमें बिना कुछ जोड़े या घटाए सुनिए-
मैं आंध्र प्रदेश में गणित का शिक्षक था। मैं एक दिन घूमते हुए प्रकाशम जिले के श्रीशैलम क्षेत्र के मूल आदिवासी चेचू के निवास वाले क्षेत्र में चला गया। बड़े तो बड़े, बच्चे भी बेहतरीन शिकारी हैं। ये समुदाय पूरी दुनिया से मानो कटा हुआ था। सभ्यता के नाम पर कुछ कपड़े जरूर थे। मैंने कुछ दिन वहीं बिताए। छोटे-छोटे बच्चे नशाखोरी में लिप्त थे। अश्लील गाने और नशा ही इनके जीने के केंद्र थे। मैंने इनके गांव में एक शिव मंदिर देखा, लेकिन इन्हें सनातन धर्म के बारे में कुछ पता नहीं था। मैंने इन्हेंं सभ्यता का भान कराने की ठानी, फिर श्रीशैलम मठ के सहयोग से एक योजना बनाई, इन बच्चों को भारत दर्शन कराने की। हमारी योजना दस हजार किलोमीटर की यात्रा की है, जिसमें से दो हजार किमी की दूरी पूरी कर चुके हैं। यह यात्रा साइकिलों के जरिये पूरी करने की ठानी, तीन गाडिय़ां लीं, राशन भरा और निकल पड़े यात्रा के जरिये खुद को, धर्म को और देश को जानने की यात्रा पर। जब ये बच्चे अपने गांव से निकले तो मैं भी डरा हुआ था, इनके साथ इनके पारंपरिक हथियार भी थे। लडऩे के तो सब उस्ताद थे ही। पांच फरवरी को हमने यात्रा शुरू की। इस दौरान मैंने बच्चों में जो बदलाव देखे वह शायद सात पीढिय़ों में भी संभव नहीं थे। किशोर अब अश्लील गाने नहीं गाते, उन्होंने खुद पर कंट्रोल करना सीख लिया है। सबसे बड़ी बात सनातन धर्मी और भारतीय होने की भावना इनमें जागी है। बच्चों को हिमालय ले जाना चाहता हूं, ताकि इनमें आध्यात्म जाग सके।
रामलला का दर्शन पा हुए धन्य: प्रभु राम को मूल आदिवासी समुदाय अपना पुरखा मानता है, ऐसे में अयोध्या आकर प्रभु राम का दर्शन पाकर इन बच्चों के मन में गजब का उत्साह भर गया है। वह शब्दों में नहीं, लेकिन हाव-भाव से अपना उत्साह बताते हैं। कालीदास ने बच्चों से बात करके बताया कि बच्चे श्रीराम को ऐसा देखकर महसूस करते हैं, जैसे उन्होंने अपने परिवार के मुखिया को जान लिया है। इसी तरह इन मूल आदिवासी बच्चों की वाराणसी यात्रा भी बहुत खास रही। वार्ता के बीच इन बच्चों में से एक ने योगी आदित्यनाथ की फोटो दिखाते हुए उनसे मिलने की इच्छा जताई। पूछने पर उनके अगुवा ने उसके हवाले से बताया कि सनातन धर्म और शैव परंपरा का एक संत देश की इतने ऊंचे पद पर बैठा है, मूल आदिवासियों के लिए यह गर्व का विषय है, उनकी परंपरा का व्यक्ति वहां है।
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