बुरा ही होता है लालच का फल
लखनऊ : लालच का फल हमेशा बुरा ही होती है। चाहे यह धन की हो या अन्य किसी चीज की। अत्याधिक लालच करने वा
लखनऊ : लालच का फल हमेशा बुरा ही होती है। चाहे यह धन की हो या अन्य किसी चीज की। अत्याधिक लालच करने वालों को कभी न कभी इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। इसकी भरपाई जीवन में कभी नहीं हो सकती। कुछ यही संदेश दे गया नाटक अर्थदोष।
स्वर्गीय रूपेश कुमार की स्मृति में कशिश आर्ट्स एंड वेलफेयर सोसाइटी की ओर से कैसरबाग के राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में तीन दिवसीय नाट्य समारोह चल रहा है। समारोह के दूसरे दिन श्रद्धा मानव सेवा कल्याण समिति के कलाकारों ने मंच साझा कर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों की तालियां बटोरी। एल्बर्ट कामू के लिखे नाटक का निर्देशन अचला बोस ने किया। नाटक एक बिछड़े हुए परिवार पर केंद्रित है। मार्था अपनी मां के साथ एक गेस्ट हाउस चलाती है। उसमें आने वाले लोगों को मारकर दोनों पैसा छीन लेती हैं। एक दिन गेस्ट हाउस में मार्था का भाई जॉन आता है। जॉन बचपन में ही अपने परिवार से अलग हो गया था। जॉन को पता होता है कि उसकी मां और बहन मिलकर गेस्ट हाउस चलाते हैं। इसलिए वह उसी गेस्ट हाउस में ठहरता है। जॉन के भारत जाने के बाद उसकी पत्नी मारिया भी गेस्ट हाउस चली जाती है। वह जॉन से मां व बहन को सारी हकीकत बताने के लिए कहती है, लेकिन जॉन सही समय का इंतजार करता है। जॉन अपनी पत्नी मारिया को समझाता है कि वह विदेश जाए और मां को पूरी सच्चाई बताने के बाद वह भी विदेश लौट आएगा। मारिया विदेश लौट जाती है। लेकिन लालच की वजह से मार्था अपनी मां के साथ अपने ही भाई की हत्या कर देती है। जब बाद में मारिया से उनको हकीकत पता चलती है तो उनके पास पछताने के लिए अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। इस सदमे में मां की जान चली जाती है और मार्था पश्चाताप की आग में जलने लगती है।
नाटक में मां का मुख्य किरदार स्वंय अचला बोस ने निभाया, श्रद्धा बोस ने मार्था, अशोक लाल ने जॉन और दीपिका श्रीवास्तव ने मारिया की भूमिका निभाकर दर्शकों को भावविभोर कर दिया। नाट्य समारोह के अंतिम दिन बुधवार शाम 6:30 बजे पासा पलट गया नाटक का मंचन होगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।