लखीमपुर खीरी में गन्ने के खेतों में बाघों का बसेरा, 50 से ज्यादा गांवों में दहशत
लखीमपुर के महेशपुर रेंज में गन्ने के खेतों में बाघों की मौजूदगी बढ़ रही है। शिकार की प्रचुरता और छिपने के लिए सुरक्षित स्थान होने के कारण बाघों का आकर्षण बढ़ रहा है, जिससे 50 से अधिक गांवों के लोग दहशत में हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग बाघों के खतरे को लेकर गंभीर नहीं है, जिससे उनकी दैनिक दिनचर्या प्रभावित हो रही है।

जागरण संवाददाता, लखीमपुर। महेशपुर रेंज में जंगल के बाहर गन्ने के शांत खेतों में बाघों की मौजूदगी का दायरा दिनों दिन व्यापक होता चला जा रहा।पहले बाघों की मौजूदगी के तकरीबन एक दर्जन हाटस्पाट ऐसे थे ,जहां पर बाघों की मौजूदगी लगातार बनी रहती थी।गन्ने की फसल तैयार होते ही इन हाटस्पाट की संख्या बढ़ जाती है।
सूत्रों के अनुसार महेशपुर क्षेत्र में 30 से अधिक बाघ मौजूद होंगे। गन्ने की फसल के बड़ी होते ही जंगल से निकलने बाले नए बाघ अपनी नई नई ट्रेटरी बना लेते हैं। गन्ने में शिकार के लिए शाकाहारी पशु नीलगाय,सुअर,हिरन,चीतल, सियार आदि प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं।
इसके अलावा बड़े पैमाने पर गोवंश भी मिल जाते हैं।छिपने के लिए आशियाना और शिकार के लिए शाकाहारी वन्य जीवों का मिलना बाघों के आकर्षण का मुख्य कारण बनता है। इस प्रकार क्षेत्र के तकरीबन पांच दर्जन से अधिक गांवों के लोग बाघों की दहशत के रडार पर रहते हैं।बाघ के हमले में अक्सर विभिन्न प्रजातियों के पशु निवाला बनते रहते हैं।
ग्रामीण इस बात से परेशान हैं कि वन विभाग बाघों के खतरों को लेकर कतई संजीदा नहीं है।आरोप है कि ग्रामीणों को स्वयं की जागरूकता पर निर्भर होकर बाघों से बचना है।मानव बाघ संघर्ष की घटनाएं सामने आने पर वन कर्मी बाघ मित्रों को आगे करके सामंजस्य बिठाने की कवायद करते हैं।
वन कर्मी ग्रामीणों को यह कहकर जागरूक करते हैं कि खेतों में समूह में हांका लगाते हुए जाएं।जो कि हर वक्त संभव नहीं है।ऐसे हालातों में खेती किसानी लेकर दैनिक दिन चर्या के कार्य प्रभावित चल रहे हैं।

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