सरकार का बड़ा तोहफा! 75% सब्सिडी पर रेशम की खेती; ये महिलाएं रातों-रात बन रही हैं आत्मनिर्भर
लखीमपुर खीरी में थारू महिलाओं को रेशम की खेती से जोड़ा जा रहा है जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं रेशम उत्पादन में सक्रिय हैं। सरकार द्वारा शहतूत के पौधे लगाने और प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ आर्थिक सहायता भी दी जा रही है। इस पहल से महिलाओं को स्वरोजगार मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

राकेश मिश्र , लखीमपुर। पलिया तहसील क्षेत्र के थारु बाहुल्य ग्रामों में अब महिलाओं को रेशम खेती से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का अभियान शुरू किया गया है। स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थारु महिलाएं रेशम उत्पादन में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
योजना के तहत प्रत्येक एक एकड़ भूमि पर 1200 शहतूत के पौधे लगाए जा रहे हैं। अपर मुख्य सचिव के निर्देश पर जनपद में आठ सहकारी समितियां गठित की गई हैं, जिनका नेतृत्व राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता आरती राना कर रही हैं। इससे महिलाओं को मार्गदर्शन और प्रेरणा मिल रही है।
नवंबर में 25 किसानों को मिर्जापुर स्थित राज्य स्तरीय रेशम प्रशिक्षण संस्थान भेजा जाएगा। वहां उन्हें कीट पालन, उत्पादन तकनीक और विपणन का प्रशिक्षण मिलेगा।
योजना के पहले चरण में एक फसल में 31 हजार किलोग्राम रेशम का उत्पादन किया गया है, जबकि दूसरी फसल में 50 हजार किलोग्राम उत्पादन की संभावना है। जिले में 1050 से अधिक किसान इस योजना से जुड़े हैं और अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर रहे हैं।
प्रदेश सरकार की मुख्य मंत्री रेशम विकास योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को आधा या एक एकड़ स्वयं की भूमि में शहतूत के पौधे लगाने होंगे। उचित रखरखाव के बाद उन्हें प्रशिक्षण, रेशम कीट पालन गृह और उपकरण उपलब्ध कराए जाएंगे। योजना में कुल लागत का 75 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। एनआरएलएम और रेशम समितियों के सदस्य प्राथमिकता के आधार पर लाभान्वित होंगे।
इस योजना से थारु महिलाओं को स्वरोजगार का नया अवसर मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। साथ ही यह क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण बनेगा। रेशम उत्पादन से जुड़कर महिलाएं न केवल अपने परिवार की आमदनी बढ़ाएंगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देंगी। यह पहल आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक प्रभावी कदम है।
- क्षेत्र : पलिया, थारु बाहुल्य ग्राम
- लाभार्थी : स्वयं सहायता समूह की महिलाएं
- शहतूत रोपण : प्रति एकड़ 1200 पौधे
- समितियां : 8 सहकारी समितियां
- प्रशिक्षण : 25 किसानों को मिर्जापुर भेजा जाएगा
- उत्पादन : 31,000 किलोग्राम (पहली फसल), 50,000 किलोग्राम (संभावना)
- कुल किसान : 1050
- अनुदान : 75 प्रतिशत लागत पर सहायता
- प्राथमिकता : एनआरएलएम और रेशम समितियों के सदस्य
- उद्देश्य : आर्थिक सशक्तिकरण, स्वरोजगार, ग्रामीण विकास।
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