Tiger Death In Dudhwa: 50 दिनों में पांच बाघों की मौत, सबसे बड़ा सवाल- 10 दिनों में ही क्यों बढ़ इतना संघर्ष
Tiger Death In Dudhwa लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व और बफर जोन में लगातार बाघों की मौत का मामला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वन जंतु राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉ.अरुण कुमार सक्सेना मामले की जांच के लिए भेजा है।

पलियाकलां (लखीमपुर), हरीश श्रीवास्तव। Tiger Death In Dudhwa बीते 10 दिनों में चार बाघों की मौत या कहे कि फिर 50 दिनों में पांच बाघों की मौत ने पार्क प्रशासन के साथ प्रदेश सरकार को भी हिला कर रख दिया है। इनमें तीन बाघ, एक बाघिन व एक तेंदुआ शामिल हैं। सबसे पहले 21 अप्रैल को मैलानी रेंज के सलेमपुर बीट में एक बाघ की मौत हुई थी और अब नौ जून को पांचवें बाघ की मौत भी मैलानी रेंज हुई है।
बाघों की मौत पर रटा-रटाया जवाब दे रहे पार्क अधिकारी
इस बीच 31 मई को निघासन के बफरजोन में चार साल के बाघ की मौत हुई और तीन जून को मैलानी रेंज के रामनगर ढखेरवा में दो वर्षीय बाघिन की मौत हो गई। इसके दो दिन बाद पांच जून को गोला रेंज के गांव गदियाना में एक तेंदुए की मौत हुई थी। बाघों की मौत को लेकर पार्क प्रशासन का कोई वैज्ञानिक व तर्कपूर्ण दृष्टिकोण नहीं है। पार्क अधिकारियों का रटा रटाया जवाब है कि आपसी संघर्ष में उनकी मौत हो गई और कभी कभार भूख से मौत होने की बात बताई जाती है, लेकिन यह सर्वमान्य तथ्य नहीं है।
गले से नहीं उतर रही संघर्ष के चलते मौत की बात
पहला प्रश्न तो यही है कि आखिर 10 दिनों में ही इतना संघर्ष क्यों बढ़ गया कि चार बाघों की मौत हो गई। इससे पहले यह संघर्ष क्यों नहीं था। पार्क अधिकारियों का संघर्ष के लिए यह तर्क भी गले उतरने वाला नहीं है कि गन्ने में रहने वाले बाघ अब जंगल में जा रहे हैं तो उनका संघर्ष बढ़ रहा है। खास बात यह कि मार्च या 15 अप्रैल तक गन्ने की फसल हर हाल में कट जाती है। जंगल के किनारे की फसल तो वैसे भी और पहले काट ली जाती है, क्योंकि जंगली पशु उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
गन्ने से जंगल में घुसने वाली बात सहीं नहीं
जब 15 अप्रैल तक गन्ना कट जाता है तो उस समय संघर्ष क्यों नहीं सामने आया और अब 31 मई से नौ जून में क्यों सामने आ रहा है। जाहिर सी बात है कि गन्ने से जंगल में घुसने वाली बात सहीं नहीं लगती है। ऊपर से यह कि इस समय तो गन्ने की फसल फिर से इतनी बढ़ गई है, जिसमें बाघ आदि जानवर छिप सकते हैं।
पार्क में हिरन और जंगली सूअर जीवित हैं तो क्यों मर रहे बाघ
रही बात भूख से मरने की तो यदि पार्क में हिरन और जंगली सूअर जीवित है तो बाघ क्यों मर रहे हैं। इस पर तर्क यह दिया जाता है कि हिरनों की संख्या कम हो रही है। हिरनों की संख्या कम होने की बात पार्क प्रशासन कभी मानता नहीं है और तथ्य यह है कि किशनपुर सेंचुरी में सबसे ज्यादा हिरन पाए जाते हैं और वहां पर तथा आसपास भूख से बाघ के मरने की बात बेमानी हो जाती है। 21 अप्रैल से नौ जून तक जिन पांच बाघों व तेंदुओं की मौत हुई है, उनमें एक निघासन के बफरजोन, एक गोला व तीन मैलानी रेंज में मरे हैं।
बाघ की मौतों का असली कारण छिपा रहे अधिकारी
दरअसल बाघों की मौत में अचानक आई तेजी के पीछे कारण कुछ और ही है। वह शिकारियों का दखल, कर्मचारियों की आपसी अदावत व पार्क अधिकारियों का शिथिल पर्यवेक्षण कुछ भी हो सकता है, लेकिन पार्क अधिकारी जो तर्क दे रहे हैं, वह तो नहीं ही हो सकता। उधर बाघों की लगातार हो ही मौत का संज्ञान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लिया है और उन्होंने अधिकारियों व वन मंत्री को मौके पर जाकर जांच करने व रिपोर्ट देने को कहा है।

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