जनजीवन थमा तो चल पड़ीं अविरल धाराएं
लखीमपुर पिछले 40 दिन से ज्यादा समय से लॉकडाउन के चलते जनजीवन थम सा गया है।
लखीमपुर : पिछले 40 दिन से ज्यादा समय से लॉकडाउन के चलते जनजीवन थम सा गया है। इस दौरान आम लोगों की दैनिक गतिविधियों समेत औद्योगिक इकाइयां भी ठप पड़ी रहीं। इस कारण हमें प्रदूषण से काफी हद तक निजात मिली है। लॉकडाउन में प्रदूषण थमने से जिले की नदियों को भी जीवनदान मिल गया है। नदियों का प्रदूषण भी काफी कम हो गया है।
शहर की लाइफ लाइन मानी जाने वाली उल्ल नदी बीते करीब दो दशक से भारी प्रदूषण की मार झेल रही थी। छोटी बड़ी औद्योगिक इकाइयों का गंदा पानी तो इस नदी में गिराया ही जाता रहा है, शहर का गंदा नाला भी इसी नदी में गिराया जाता है। इसके चलते नदी का जल प्रदूषण से काला हो गया था। कभी बिल्कुल स्वच्छ और निर्मल चमकने वाली उल्ल नदी का पानी शहर के आसपास स्याह हो गया था। अब लंबे समय के बाद उल नदी प्रदूषण मुक्त होने से फिर खिल उठी है।
पलियाकलां : लाकडाउन के दौरान नदियों की स्थिति में सुधार आया है। खासकर अवैध खनन पर रोक लगने और नदी का प्रवाह बने रहने से यह सुधार आया है। वैसे तो अन्य नदियों में प्रदूषित जल न मिलने से उनकी हालत सुधरी है, लेकिन शारदा नदी के साथ प्रदूषण की कोई समस्या नहीं थी। बावजूद उसके बहाव व पानी की गुणवत्ता में सुधार आया है।
इन्हें कब मिलेगा नया जीवन
लॉकडाउन में प्रदूषण हर स्तर पर कम होने से भले ही कई नदियों की हालत सुधरी है, पर जिले के पसगवां ब्लॉक में निकली आदि गंगा गोमती और सदर क्षेत्र के महेवागंज इलाके की कंडवा नदी के हालात अब भी बदतर हैं। जलस्तर कम होने से जहां गोमती नदी दलदल का रूप ले रही है, वहीं कंडवा नदी चीनी मिल के दूषित जल से अपना अस्तित्व खो रही है।