बस्तियों के बीच बाघ, हाथी और तेंदुओं को मिलेगा मजबूत कारीडोर
दुधवा नेशनल पार्क और किशनपुर सेंच्युरी के मानव बस्तियों के बीच बाघ हाथी और तेंदुए के लिए कारीडोर बनेगा।

लखीमपुर: दुधवा नेशनल पार्क और किशनपुर सेंच्युरी के मानव बस्तियों के बीच बाघ, हाथी और तेंदुओं को मजबूत व सुरक्षित कारीडोर मुहैया कराने की कवायद शुरू की गई है। विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के सहयोग से ट्रांस शारदा क्षेत्र का सर्वेक्षण शुरू किया गया है। वन्यजीव शारदा नदी के तलहटी के अलावा कृषि क्षेत्रों, मानव बस्तियों से युक्त इस विशाल खंड का उपयोग कारीडोर के रूप में करते हैं।
अधिकारियों के मुताबिक, दुधवा-किशनपुर के सर्वेक्षण के पीछे का मकसद यह आकलन करना है कि यात्रा, आयु-समूह और ठहरने की आवृत्ति के अलावा कितनी प्रजातियां इस महत्वपूर्ण कारीडोर का उपयोग कर रही हैं। वहां के जंगली जानवरों द्वारा कारीडोर के उपयोग की अवधि क्या है। सर्वेक्षण के दौरान पता लगाया जाएगा गन्ने की खेती जंगली जानवरों की आवाजाही को कैसे प्रभावित करती है। गन्ना का बड़ा क्षेत्रफल जंगली प्रजातियों के रहने को प्रोत्साहित करते हैं। कारीडोर में मानव हस्तक्षेप और अन्य जैविक प्रभावों का सर्वेक्षण होगा, ताकि इसे मजबूत करने के तरीकों का पता लगाया जा सके। इससे जंगली जानवरों और मानव जीवन की रक्षा की जा सकेगी। सर्वेक्षण के दौरान कारीडोर में विभिन्न मौसमों में जंगली जानवरों की गतिविधियों और पहले की तरह अलग-अलग स्थितियों, गन्ने की फसल की कटाई का अध्ययन भी शामिल होगा। विशेषज्ञ सर्वेक्षण का कार्य कई महीने तक करेंगे।
टीम किसानों द्वारा अपनाए गए फसल के पैटर्न, बाघों, जंगली हाथियों, दलदली हिरणों और अन्य संरक्षित प्रजातियों के व्यवहार पर इसके प्रभाव का भी अध्ययन करेगी। कैमरा ट्रैप, साइन-सर्वे और स्थानीय किसानों से बातचीत कर जंगली प्रजातियों की आवाजाही को रिकार्ड किया जाएगा। सर्वेक्षण यह सुझाव देगा कि इस कारीडोर में मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए किस प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
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गन्ने की जगह वैकल्पिक फसल अपनाएं किसान फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि कई महीने पहले दुधवा-किशनपुर कारीडोर को मजबूत करने का प्रस्ताव भेजा था, जिसमें इस क्षेत्र में जंगली जानवरों की आवाजाही पर प्रकाश डाला गया था। गन्ना फसल और वैकल्पिक फसल के बीच मूल्य अंतर की भरपाई करने के लिए जन सहयोग पर भी जोर दिया गया है, ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष पर प्रभावी जांच हो सके।
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