गेंदा की खेती से खिलेंगे किसानों के चेहरे
लखीमपुर: बाजार में अब वर्ष भर गेंदा के फूलों की डिमांड रहती है। त्योहारों पर प्रतिष्ठानों या घरों की ...और पढ़ें

लखीमपुर: बाजार में अब वर्ष भर गेंदा के फूलों की डिमांड रहती है। त्योहारों पर प्रतिष्ठानों या घरों की सजावट करनी हो, या फिर वैवाहिक कार्यक्रम हों, बिना फूलों के पूरे नहीं हो सकते, वहीं मंदिरों पर पूजन के लिए भी फूलों की जरूरत रहती है। इसके अतिरिक्त अन्य कार्यक्रमों में भी फूलों की मांग बनी रहती है। ऐसे में गेंदा की खेती करना काफी फायदे का सौदा है। उद्यान विभाग किसानों को फूलों की खेती के लिए किसानों को प्रेरित कर रहा है। आने वाले समय में फूलों की खेती से किसानों के आंगन महकेंगे। जिला उद्यान अधिकारी डॉ.दिग्विजय कुमार भार्गव ने बताया कि गेंदा की कुछ प्रजातियां हजारा और पावर की फसल वर्ष भर की जा सकती है। एक फसल के खत्म होते ही दूसरी फसल के लिए पौध तैयार कर ली जाती है। इस खेती में जहां लागत काफी कम होती हैं, वहीं आमदनी काफी अधिक होती है। गेंदा की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है। इसकी फसल दो महीने में प्राप्त की जा सकती है।
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लागत कम और मुनाफा अधिक
निजी खेत में एक बीघा में लागत एक हजार से डेढ़ हजार रुपये की लगती है। वहीं ¨सचाई की भी अधिक जरूरत नहीं होती। मात्र दो से तीन ¨सचाई करने से ही खेती लहलहाने लगती है, जबकि पैदावार ढाई से तीन कुंटल तक प्रति बीघा तक हो जाती है। गेंदा फूल बाजार में 70 से 80 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है। त्योहारों और वैवाहिक कार्यक्रमों में जब इसकी मांग बढ़ जाती है तो दाम 100 रुपये प्रति किलो तक के हिसाब से मिल जाते हैं। गेंदा की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि गेंदा की खेती में लागत कम हैं। त्योहारों में अच्छे दाम मिल जाते हैं और इसकी डिमांड पूरे वर्ष ही विभिन्न कार्यक्रमों के चलते बनी रहती है। ईसानगर के किसान रामसनेही के अनुसार फूलों से उन्हें मुनाफा हो रहा है। वह फूल व्यवासियों को नियमित गेंदा फूल बेच रहे हैं। इससे उन्हें हर महीने 10 हजार रुपये से अधिक का शुद्ध मुनाफा हो रहा है।
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खेत की तैयारी
गेंदे के बीज को पहले पौधशाला में बोया जाता है। पौधशाला में पर्याप्त गोबर की खाद डालकर भली भांति जोताई करके तैयार की जाती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाकर रेत भी डालते हैं तथा तैयार खेत या पौधशाला में क्यारियां बना लेते हैं। क्यारियां 15 सेंटीमीटर ऊंची एक मीटर चौड़ी तथा 5 से 6 मीटर लम्बी बना लेना चाहिए। इन तैयार क्यारियों में बीज बोकर सड़ी गोबर की खाद को छानकर बीज को क्यारियो में ऊपर से ढक देना चाहिए तथा जब तक बीज जमाना शुरू न हो तब तक हजारे से ¨सचाई करनी चाहिए। इस तरह से पौधशाला में पौध तैयार करते हैं।
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बीज बोआई
गेंदे की बीज की मात्रा किस्मों के आधार पर लगती है। जैसे कि संकर किस्मों का बीज 700 से 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर तथा सामान्य किस्मों का बीज 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। भारत वर्ष में इसकी बोवाई जलवायु की भिन्नता के अनुसार अलग-अलग समय पर होती है। उत्तर भारत में दो समय पर बीज बोया जाता है जैसे कि पहली बार मार्च से जून तक तथा दूसरी बार अगस्त से सितम्बर तक बोवाई की जाती है।
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पैदावार
- गेंदे की उपज भूमि की उर्वरा शक्ति तथा फसल की देखभाल पर निर्भर करती है। इसके साथ ही सभी तकनीकिया अपनाते हुए आमतौर पर उपज के रूप में 125 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर फूल प्राप्त होते है। कुछ उन्नतशील किस्मों से पुष्प उत्पादन 350 क्विटंल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते हैं।

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