इंसानियत और सच्चाई के अलमबरदार थे हजरत इमाम हुसैन
खीरीटाउन (लखीमपुर) : इतिहास गवाह है कि हक और बातिल की लड़ाई में जीत हमेशा हक की हुई है। अल्लाह ने हक
खीरीटाउन (लखीमपुर) : इतिहास गवाह है कि हक और बातिल की लड़ाई में जीत हमेशा हक की हुई है। अल्लाह ने हक पर चलने वालों का सिर हमेशा बुलंद किया है। पैगंबरे इस्लाम के नवासे हजरत इमाम हुसैन अपने नाना के दीन की हिफाजत के लिए सिर कटा दिया, लेकिन बातिल के हाथों में हाथ नहीं दिया। हिजरी के कैलेंडर के मुताबिक नया साल मुहर्रम महीने से शुरू होता है। साल शुरू होते ही हजरत इमाम हुसैन की शहादत तमाम इंसानों के दिलों और दिमाग में ताजा होने लगती है। हजरत इमाम हुसैन ने हक और इंसाफ के लिए कर्बला के मैदान में अपने 72 साथियों के साथ अपनी जान की कुर्बानी दी। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक हजरत इमाम हुसैन की पैदाइश पांच शाबान सन 04 हिजरी को मदीना शरीफ में हुई। पैदाइश के सातवें दिन आप के नाना ने आप का नाम हजरत इमाम हुसैन रखा और अकीका कराया। हजरत इमाम हुसैन ने अपने जीवन काल में पैदल चलकर 25 हज किए। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की खबर उनके नाना पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब को अल्लाह की तरफ से उनके पैदाइश के समय ही दे दी गई थी। साहाबी हजरत अमीर मुआविया के निधन के बाद उनके पुत्र यजीद ने हुकूमत की बागडोर संभाली और हजरत इमाम हुसैन से बैअत लेने का हुक्म जारी कर दिया। यजीद इस्लामी शरीअत के खिलाफ था इसलिए इमाम हुसैन ने बैअत कुबूल करने से इनकार कर दिया। और अपने वतन मदीना शरीफ से पलायन करके कूफा की तरफ रवाना हो गए। दो मुहर्रम 61 हिजरी को कर्बला नामक स्थान पर ठहर गए उधर तीन मुहर्रम को यजीद के आदेश पर इब्नेसाद नामक व्यक्ति चार हजार की फौज लेकर कर्बला पहुंच गया। सात मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथियों का पानी बंद कर दिया गया। नौ मुहर्रम को हजरत इमाम हुसैन को अपनी शहादत का एहसास हो गया था। उन्होंने अपने साथियों से चले जाने को कहा लेकिन वफादार साथियों ने साथ नहीं छोड़ा। दस मुहर्रम को यजीदी फौज से मुकाबला हुआ और 72 जख्म खाने के बाद आप सजदे में गिर गए। और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए शहादत का जाम पी लिया। इस अजीम कुर्बानी को 1300 साल से भी अधिक का समय हो चुका है लेकिन आज भी इमाम हुसैन इंसाफ और हक की आवाज बनकर इंसानियत के इतिहास में ¨जदा हैं।
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