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    Kushinagar News: पर्यटन नक्शा से जुड़ेगा उजारनाथ शिवमंदिर, खर्च होंगे एक करोड़

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 03:57 PM (IST)

    उजारनाथ शिव मंदिर को पर्यटन विभाग द्वारा एक करोड़ रुपये की स्वीकृति मिली है जिससे मंदिर को नई पहचान मिलेगी। फाजिलनगर विधायक के प्रस्ताव पर यह योजना स् ...और पढ़ें

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    कुशीनगर का उजारनाथ स्थित उज्जवलनाथ मंदिर। जागरण

    जागरण संवाददाता, उजारनाथ। प्राचीन उजारनाथ शिवमंदिर को अब पर्यटन की नई पहचान मिलने जा रही है। फाजिलनगर विधायक सुरेंद्र कुमार कुशवाहा के प्रस्ताव पर पर्यटन विभाग ने तमकुही के सपही बुजुर्ग गांव में स्थित मंदिर के लिए एक करोड़ रुपये की योजना शासन को भेजी है, जिसकी स्वीकृति हो चुकी है।

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    कार्यदायी संस्था सीएंडडीएस (कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज) के स्थानिक अभियंता संदीप चौरसिया ने बताया कि इस महीने धन अवमुक्त होते ही निर्माण कार्य शुरू होगा। विधायक ने बताया कि शासन से उक्त धन स्वीकृत होकर आरक्षित हो चुका है।

    यह मंदिर पौराणिक महत्व का है, शिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं, लेकिन सुविधाओं का अभाव रहता था। विकास कार्य से न केवल श्रद्धालुओं को सुविधा होगी बल्कि क्षेत्र का पर्यटन स्वरूप भी निखरेगा।

    इस योजना में बहुउद्देशीय कक्ष का निर्माण, 400 वर्गमीटर क्षेत्र में इंटरलाकिंग टाइल्स, श्रद्धालुओं के बैठने के स्टोन बेंच, शीतल पेयजल, की व्यवस्था, सोलर लाइट की व्यवस्था रहेगी तो पर्यटन के नक्शे पर नाम दर्ज होगा।

    -सुरेंद्र कुमार कुशवाहा, विधायक

    भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं पौराणिक उज्ज्वल नाथ

    तमकुहीराज तहसील क्षेत्र के उजारनाथ में भगवान शिव दो रूपों में विराजमान हैं एक पौराणिक उज्ज्वलनाथ और दूसरे परिहारकालीन पालनाथ। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के समय जयद्रथ ने उज्ज्वलनाथ की अराधना की थी।

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    स्कंद पुराण के अनुसार लाखों वर्ष पूर्व यहां नारायणी नदी बहती थी। तट पर उदयन ऋषि ने उज्ज्वलनाथ व चारभुजी पार्वती की स्थापना की थी। यही उज्ज्वलनाथ आगे चलकर उजारनाथ कहलाया। उज्ज्वलनाथ मंदिर से 40 मीटर पश्चिम पालनाथ मंदिर है, जिसे परिहारकाल में राजा मदन पाल ने स्थापित कराया।

    समीप का सिंदुरियां गांव तब सिंदूरगढ़ राज्य था। पालनाथ मंदिर के द्वार पर सोलह व अष्टभुजी गणेश प्रतिमाएं हैं। दोनों मंदिरों के बीच एक ही पत्थर पर चारभुजी पार्वती की मूर्ति है, जिसमें कार्तिकेय व गणेश अंकित हैं और ऊपर पुष्पवर्षा करती नाग कन्याएं।

    मान्यता है कि श्रवण कुमार यहीं से माता-पिता को तीर्थाटन के लिए ले गए। सावन मास के सोमवार-शुक्रवार व प्रत्येक माह की तेरस को भारी भीड़ जुटती है। शिवरात्रि पर मेला लगता है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग ने शोध कर मंदिरों का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व प्रमाणित कर चुके हैं।