बौद्धों के महातीर्थ कुशीनगर में रचा-बसा है भगवान बुद्ध का जीवन दर्शन
पूरी दुनिया को शांति अहिंसा का संदेश देने वाली बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर देश दुनिया के बौद्धों के लिए महातीर्थ और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक केंद्र है। आस्था संग सौंदर्य व अपने समृद्ध इतिहास को समेटे यह बुद्ध स्थली पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है। यहां प्रकृति ने भी खूब रस बरसाया है। हरियाली ऐसा मनोरम दृश्य खड़ा करती है कि आंखें टिकी रह जाती हैं।

अजय कुमार शुक्ल, कुशीनगर। पूरी दुनिया को शांति अहिंसा का संदेश देने वाली बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर देश दुनिया के बौद्धों के लिए महातीर्थ और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक केंद्र है। आस्था संग सौंदर्य व अपने समृद्ध इतिहास को समेटे यह बुद्ध स्थली पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है। यहां प्रकृति ने भी खूब रस बरसाया है। हरियाली ऐसा मनोरम दृश्य खड़ा करती है कि आंखें टिकी रह जाती हैं।
महात्मा बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर, गोरखपुर से लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित है। दुनिया भर के पर्यटक यहां पूरे वर्ष आते हैं। अक्टूबर से चार माह तक चलने वाले विशेष मौसम में पर्यटकों की संख्या दो लाख से अधिक पहुंच जाती है। कुशीनगर पहुंचते ही बुद्ध प्रवेश द्वार यहां की धार्मिक, सांस्कृतिक समृद्धि को बताता है तो कुछ कदम बढ़ने पर चाइनीज बुद्ध विहार बुद्ध के जन्म से लेकर ज्ञान प्राप्ति व निर्वाण तक की झलक एक ही पास दिखाता है। यहां रुकने के लिए सरकारी मोटल है तो बेहतर निजी होटलों की भी सुविधा है। बुद्ध विपश्यना पार्क, पर्यटकों को रिझाता है।
कैसे पहुंचे कुशीनगर
गोरखपुर से कुशीनगर के लिए बस व टैक्सी की सुविधा है। देश के किसी भी कोने से रेल या अन्य संसाधनों से गोरखपुर आकर यहां पहुंचा जा सकता है। कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट से हवाई सेवा भी शुरू होने वाली है। दिल्ली से सीधे कुशीनगर उड़ान की सेवा अक्टूबर से मिलने वाली है।
आकर्षण है शयन व भू स्पर्श मुद्रा वाली बुद्ध प्रतिमा
पांचवीं सदी में बनी महात्मा बुद्ध की शयन मुद्रा वाली प्रतिमा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। चार कोनों से अलग-अलग मुद्राओं में दिखती प्रतिमा पर्यटकों के लिए आस्था संग अचरज का भी केंद्र है। 1876 की खोदाई में यह प्रतिमा खंडित मिली थी, जिसको फिर से ठीक किया गया। माथा कुंवर मंदिर में बुद्ध की 11वीं सदी की भू स्पर्श मुद्रा वाली प्रतिमा है।
पूजते हैं दुनिया के बौद्ध मतावलंबी
यहां प्रथम आसन स्थल है, जहां महात्मा बुद्ध कुशीनगर आने के बाद पहली बार बैठे थे और मल्ल गणराज्य के राजा से 80 वर्ष की उम्र में प्राण त्यागने की अनुमति मांगी थी। अंतिम उपदेश व महापरिनिर्वाण स्थल भी है, जहां उन्होंने अपने शिष्य आनंद को उपदेश दिया और प्राण त्यागा था। पर्यटक यहां आने के बाद पुरावशेषों संग अतीत की समृद्धि से खुद को जोड़कर आनंदित होते हैं। इससे जुड़ा बौद्ध उपवन पार्क भी मनोहारी है।
वैश्विक स्थापत्य कला की झलक दिखाता वृद्ध विहारों का संगम
थाई बुद्ध विहार, चाइना बुद्ध विहार, जापानी बुद्ध विहार, कोरियन वुद्ध विहार, नेपाली बुद्ध विहार, म्यांमार वुद्ध विहार अपने देशों की स्थापत्य कला से रचे बसे हैं। इनका संगम वैश्विक स्थापत्य कला की झलक दिखा पर्यटकों को अपने आकर्षण से बांध लेता है।
छांता जी जेडी चैत्य भी दर्शनीय
दुनिया में अपनी तरह का बना अकेला यह चैत्य यहां आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर खींच लेता है। लगभग 100 फुट ऊंचा और उतनी ही गहराई में बना यह चैत्य पूरी तरह से म्यांमार की स्थापत्य कला का परिचायक है।
तिब्बती बुद्ध विहार से बौद्ध गुरु दलाई लामा का नाता
यहां का तिब्बती बुद्ध विहार, बौद्ध धर्म के गुरु दलाई लामा से जुड़ा है। उनके ठहरने के लिए यहां अलग भवन बना है। आने वाले बौद्ध मतावलंबी इसे देखने जरूर यहां आते हैं।
यहां भी जाएं
कुशीनगर आएं तो कुछ अन्य प्रमुख स्थलों पर भी जाएं। कुशीनगर से 14 किमी दूर तुर्कपट्टी का ऐतिहासिक गुप्तकालीन सूर्य मंदिर है। यहीं से आठ किमी दूर जंगल में प्रकृति की गोद में बसा कुलकुला देवी स्थान है। रामकोला का विश्व दर्शन मंदिर, फाजिलनगर में जैन मंदिर, बांसी का रामजानकी घाट भी दर्शनीय है। यहीं से 79 किमी दूर प्राकृतिक छटा लिए वाल्मीकि टागर रिजर्व मन मोह लेगा तो पनियहवां की प्रसिद्ध चेपुवा मछली और भूजा के स्वाद संग नारायणी के तट की प्राकृतिक छटा आनंद देगी। यहां बोटिंग की भी सुविधा है। इन सभी स्थलों के लिए बेहतर मार्ग सुविधा है।
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