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मोदी जी, मैं हूं विकास को तरसती बुद्ध की नगरी

न हवाई सेवा, न रेल का मेल, फिर काहे की अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थली। मेरी गोद में बुद्ध हैं, लेकिन विकास नहीं। मेरी छांव में शांति, अहिंसा का संदेश है, लेकिन दुनिया की पहुंच नहीं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 27 Nov 2016 10:52 AM (IST)Updated: Sun, 27 Nov 2016 03:44 PM (IST)
मोदी जी, मैं हूं विकास को तरसती बुद्ध की नगरी

कुशीनगर [अजय कुमार शुक्ल]। पूरे विश्व के बौद्ध मतावलंबी मेरी पूजा करते हैं। मेरी पावन धरती पूजी जाती है। बुद्ध आए तो मैं भी धन्य हुई, अंतरराष्ट्रीय फलक पर मेरी अमिट पहचान बनी। यह सोच कर इतराती हूं तो अपने अनुयाइयों के न पहुंचने की कसक से सिसकती भी हूं। चाहकर भी जब सैलानी यहां नहीं पहुंच पाते तो रो पड़ती हूं उस विकास के नाम पर जिसका सब्जबाग मुझे दिखाया जाता है।

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न हवाई सेवा, न रेल का मेल, फिर काहे की अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थली। मेरी गोद में बुद्ध हैं, लेकिन विकास नहीं। मेरी छांव में शांति, अहिंसा का संदेश है, लेकिन दुनिया की पहुंच नहीं। मुझे बुद्ध ने पहचाना और जाना, लेकिन सियासतदां नहीं जान सके। धर्म व आस्था का केंद्र तो हूं, लेकिन विकास का किनारा तक नहीं मिला मुझे। मुझे चाहिए रेल और हवाई सेवा सहित वह सभी सुविधाएं जो पूरी दुनिया से आने वाले बौद्धों को जोड़ सके। मुझे भी हंसने और खिलखिलाने का हक है। बुद्ध को पूजते हैं तो विकास क्यों नहीं करते। दूर करिए मेरा दर्द।

कुशीनगर आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शायद यही कह रही है यह पावन धरती। 1876 की खोदाई में मैं प्रकाश में आई तो मेरी गोद में सोए बुद्ध के प्रमाण भी मिले। मिली भगवान बुद्ध की 5 वीं सदी की लेटी प्रतिमा, जहां बुद्ध ने अंतिम उपदेश दिया। 11 वीं सदी की मूर्ति मिली, जहां मेरी गोद में पहली बार बैठे थे बुद्ध। हिरण्यवती के तट के किनारे मिला बुद्ध का दाह संस्कार स्थल। सबकुछ है मेरी गोद में कुछ नहीं है तो विकास का साथ। विदेश से मेरी इस दशा को देख मदद के हाथ बढ़े तो आपके हाथ क्यों रुके पड़े हैं।

जापान के सहयोग से हुए विकास कार्य ने मेरी कुछ तस्वीर बदली लेकिन मेरी मूलभूत जरूरतें आज तक न पूरी हो सकीं। आखिर मैं किसको दोष दूं। इस पर रुके विकास ने मुझे अपनी पहचान के अनुरूप खिलने ही नहीं दिया। आज भी आने वाले श्रद्धालु रेल व हवाई सेवा की सुविधा न होने से मुझ तक पहुंचे बिना ही वापस लौट जाते हैं। मेरे शांति-अहिंसा का संदेश तक उन तक पहुंच जाता है, लेकिन वह मुझ तक नहीं पहुंच पाते। उनकी अधूरी यात्र का जिम्मेदार कौन है सरकार, आप या मैं। बात इतने पर ही नहीं रुकती, मेरा दर्द तब और बढ़ जाता है जब मेरी गोद भगवान बुद्ध के धातु विभाजन स्थल से प्रमाणिक रूप से खुद को खाली पाती है। मेरी बस इतनी गुजारिश है कि मुझे जोड़ दीजिए रेल और हवाई सेवा से और दे दीजिए मुझे मेरे बुद्ध का धातु विभाजन स्थल। ताकि मैं भी गर्व से कहूं कि मैं हूं भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर।

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