अरहर में उकठा रोग, किसान परेशान
बारिश के बाद अरहर फसल में लगे उकठा रोग ने किसानों के माथे पर चिता की लकीरें खींच दी हैं। बारिश से पहले फसल अच्छी भली फलफूल रही थी। अब फसल की पत्तियां पीली पड़ने लगी है। पौधे सूख रहे हैं। कृषि विभाग भी इस रोग से बचाव के लिए किसानों को कोई जानकारी नहीं दे रहा है। किसान अरहर की फसल बचाने के प्रयास में है।
सिद्धार्थनगर: बारिश के बाद अरहर फसल में लगे उकठा रोग ने किसानों के माथे पर चिता की लकीरें खींच दी हैं। बारिश से पहले फसल अच्छी भली फलफूल रही थी। अब फसल की पत्तियां पीली पड़ने लगी है। पौधे सूख रहे हैं। कृषि विभाग भी इस रोग से बचाव के लिए किसानों को कोई जानकारी नहीं दे रहा है। किसान अरहर की फसल बचाने के प्रयास में है।
उकठा रोग की शुरुआत में पत्तियां अचानक पीली होने लगती हैं। पौधे सूख कर गिरने लग जाते हैं। तनों के आधा भाग व जड़ पर काली धारियां दिखाई पड़ने लगती है। कृषि जानकारों के अनुसार यह एक फफूंद जन्य रोग है। जो फ्यूसेरियम आक्सीस्पोरियम नामक फफूंद से होता है। इस फफूंद के माइसीलियम से उत्पन्न होने वाले तीन प्रकार के स्पोर में से एक क्लेमाइडोस्पोर भूमि में लंबे समय तक क्रियाशील रहने योग्य होते हैं। 17 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान व जानवरों के गोबर में रोग का विकास होता है। कटाई के बाद खेत में पड़े पौधों के अवशेष छोड़ दिए जाते हैं और यह लंबी अवधि तक रोगजनन योग्य रहता हैं। प्राथमिक इन्फेक्शन महीन जड़ों में कोनिडियोस्पोर के प्रवेश से होता है।
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फसल चक्र अपनाएं किसान
कृषि विज्ञान केंद्र सोहना के विज्ञानी डा. मारकंडेय सिंह कहते हैं कि यह एक भूमि जन्य रोग है। पूरे खेत का ट्रीटमेंट संभव नहीं इसलिए विभिन्न तरीके से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। किसान फसल चक्र अपनाएं व उकठा रोग से प्रभावित रहने वाले खेतों में चार से पांच वर्ष के अंतराल पर ही अरहर की बोवाई करें। प्रभावित पौधों को जला दें व ऐसे खेतों की गर्मियों में गहरी जोताई करें। अरहर की ज्वार के साथ मिश्रित खेती करें। हरी खाद के प्रयोग से बैसिलस सबटाईलिस, राइजोपस जैसे सूक्ष्मजीव की संख्या बढ़ती है जो उकठा रोग की रोकथाम में सहायक हैं।