प्लास्टिक पर प्रतिबंध से मिट्टी के बर्तनों की बढ़ी मांग, त्योहारों में कुम्हार कला को लगे पंख
Kushinagar News कुशीनगर जिले में कुम्हारों द्वारा बनाए जा रहे मिट्टी के बर्तनों को काफी तवज्जो दिया जा रहा है। इसका कारण प्लास्टिक का बेन होना भी माना जा रहा है। मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ने से कुम्हारों में खुशी की लहर है।

कुशीनगर, जागरण संवाददाता। दीपावली व छठ में मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ जाती है। इसके लिए कुम्हार अभी से मिट्टी का बर्तन बनाने में जुटे हुए हैं। मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ गई है। कोरोनाकाल में बाहर गए कामगारों की घर वापसी हुई है तो उनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया था, लेकिन अब यह रोजगार उपयोगी सिद्ध हो रहा है। चाय की दुकान, छोटे बड़े होटलों में प्लास्टिक के बर्तन का उपयोग होता था, वहां आज मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल होने लगा है।
मिट्टी के बर्तनों के मिलने लगे अच्छे दाम
त्योहारों पर मांग बढ़ने के साथ मिट्टी के बर्तनों के अच्छे दाम भी मिलने लगे हैं। शासन स्तर से भी मिट्टी कला को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित की गई है। ऐसे में लुप्त हो रही कुम्हार कला को पंख लग गए हैं। ग्राहकों को भी प्लास्टिक के ग्लास के जगह कुल्हड़ में चाय रास आ रही है। इससे स्वरोजगार का भी अवसर मिला है।
क्या कहते है कुम्हार कला से जुड़े कामगार
- विनोद प्रजापति कहते हैं कि धंधा अच्छा चल रहा है। अगर ऐसे ही मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ती रही तो बाहर मजदूरी करने जाने की जरूरत नहीं होगी। घर पर ही रोजगार का अच्छा अवसर मिल जाएगा।
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वीरेंद्र प्रजापति कहते है कि कोरोना महामारी से हम बेरोजगार हो घर बैठ गए थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। मिट्टी के बर्तनों की मांग त्योहारों के चलते बढ़ी है, हमारा पुश्तैनी धंधा अच्छा है। - अर्जुन प्रजापति कहते हैं कि मिट्टी की कमी आड़े आ रही है। अगर सरकार मिट्टी के लिए पट्टा मुहैय्या करा दे तो इस रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।
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सिकंदर प्रजापति जो राजमिस्त्री हैं वह आज कल मिट्टी का बर्तन बनाने में जुटे हैं। वह कहते हैं कि अब दुकानों से कुल्हड़ों की मांग आ रही है। अगर यही गति बनी रही तो इस कला को पंख लग जाएंगे।

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