आत्मनिर्भर भारत के सोच ने भरी सफलता की उड़ान, नवाचार को मिला मुकाम
कुशीनगर में मोंथा चक्रवात के बावजूद, आत्मनिर्भर भारत की सोच को उड़ान मिली। तमकुहीराज में मॉडल राकेट का सफल प्रक्षेपण हुआ, जिससे छात्रों में खुशी की लहर दौड़ गई। युवा विज्ञानी स्वचालित रोबोट बनाने की ओर अग्रसर हैं और 'मेड इन इंडिया' के संकल्प को साकार कर रहे हैं। यह सफलता अंतरिक्ष तकनीक में नए भारत की मजबूत नींव रख रही है।

जंगली पट्टी स्थित लांचिंग पैड पर प्रक्षेपण के लिए तैयार राकेट। जागरण
अजय कुमार शुक्ल, जागरण, कुशीनगर। मोंथा चक्रवात की वजह से बुधवार को मौसम अनुकूल न होने के बावजूद आत्मनिर्भर भारत की सोच की सफल उड़ान ने भविष्य के भारत की तस्वीर खींची तो सबके चेहरों पर खुशी तैर उठी। तमकुहीराज के जंगलीपट्टी गांव में नारायणी नदी के तट पर उल्टी गिनती के साथ सुबह 8.19 बजे जैसे ही पहला मॉडलराकेट आसमान को चीरता हुआ बढ़ा तो छात्रों संग सभी की निगाहें उस पर टिक गईं।
जैसे ही एसेंट संग पेलोड आसमान में छूटा और अपना लक्ष्य पूरा किया तो छात्रों ने रिकवर संग सफल प्रक्षेपण पर खुशी जताई। यह खुशी यहीं नहीं ठहरी, इसके बाद के पांच मिनटों में हुए चार और सफल प्रक्षेपणों ने इसे उत्सव का रूप दे दिया। तालियों की गूंज राकेट की तेज आवाज की लय को मानो ताल दे बैठी।
इसमें उत्तर प्रदेश के युवा विज्ञानियों की भी पूरी चमक दिखी, जो स्वचालित रोबोट तैयार करने की ओर बढ़ चले हैं। राष्ट्रीय इन-स्पेसमाडलराकेट्रीकैनसेट इंडिया स्टूडेंट प्रतियोगिता के तीसरे दिन युवा विज्ञानियों के चेहरे की चमक देख इन-स्पेस के निदेशक डा. विनोद कुमार की मुस्कुराहट बता रही थी कि वे इस सफलता में मेड इन इंडिया के संकल्प के साथ अंतरिक्ष के क्षेत्र में भविष्य के आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर देख रहे हैं।

उन्होंने इसको स्वीकारा भी और कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) तथा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन व प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय इन-स्पेसमाडलराकेट्रीकैनसेट इंडिया स्टूडेंटकंप्टीशन 2024-25 में भाग ले रहे ये छात्र भविष्य के आत्मनिर्भर भारत की मजबूत नींव रख रहे हैं।
नया भारत अब अंतरिक्ष तकनीक में नई क्रांति लाएगा। दो दिन में 23 सफल प्रक्षेपण के बाद छात्र अपने कैनसाइजसेटेलाइटरिकवर कर अगले पड़ाव की ओर बढ़ चले हैं। डाटा रिकवर कर रहे हैं। यह सब मेड इन इंडिया के तहत है। जो कैनसेट इन्होंने विकसित किए हैं, वे थ्रीडी हैं। इलेक्ट्रानिक्स और कंप्यूटर साफ्टवेयर भी स्वयं बना रहे हैं।
पैराशूट के साथ ही ग्राउंड स्टेशन भी डिजाइन कर रहे हैं। मतलब, यह संदेश है कि भविष्य के भारत की मजबूत चमक अंतरिक्ष के शोध, ज्ञान विज्ञान के फलक पर दिखेगी। प्रतियोगिता के सह संयोजक सांसद शशांक मणि त्रिपाठी इस सफलता पर कहते हैं कि प्रतियोगिता की मंशा पूरी तरह से साकार होती दिख रही है।
उत्तर भारत के अति पिछड़े कोने से आसमान में सफलता के जो झंडे देश के इन युवा विज्ञानी छात्रों ने यहां गाड़े हैं, वह भविष्य के भारत की दस्तक है। भविष्य की इस तस्वीर में रंग भरते हुए केजीसोमैयाइंस्टीट्यूटआफ इंजीनियरिंग मुंबई के ऋषिकेश भिंडाडे ने बताया कि एक वर्ष में हमने टीम संग एक कैनसेट तैयार किया है, जो तापमान के अनुकूलन, हवा की गुणवत्ता व प्रदूषण का पता लगाएगा। हम ऐसा पेलोड तैयार करने की ओर हैं, जो दुर्गम इलाकों में स्थित खेतों में ऊपर से जाकर बीज का छिड़काव कर बोआई कर सकेगा।
आरवी कालेज बेंगलुरु की लिसिका ने बताया कि हमने एक वर्ष में ऐसा सेंसर तैयार किया है, जो राकेट की सफल लांचिंग मतलब उसके कोण, सटीकता, दूरी आदि पर कार्य करेगा।

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