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गुरवलिया में है हस्तलिखित रावण संहिता

By Edited By: Published: Mon, 17 Dec 2012 10:32 PM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2012 10:32 PM (IST)

कुशीनगर : जिले के गुरवलिया निवासी पं. कामाख्या प्रकाश पाठक के घर सतयुग कालीन दुर्लभ हस्त लिखित रावण संहिता विद्यमान है। बताया जाता है कि यह ग्रंथ पं. पाठक के पिता स्वर्गीय बागीश्वरी पाठक को उनके अग्रज ननकू पाठक ने प्रदान किया था।

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इस ग्रंथ के गुरवलिया पहुंचने की जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार ननकू पाठक की ज्योतिष में अत्याधिक रुचि थी। वे 27 वर्ष के आयु में घर से भागकर नेपाल चले गए। वहा दो वर्ष तक विभिन्न ज्योतिषियों के संपर्क में रहकर ज्योतिष में पारंगत हुए। एक महात्मा ने चलते समय आशीर्वाद स्वरुप उन्हें हस्त लिखित रावण संहिता प्रदान की। पोथी के पन्ने अत्यंत जर्जर हो चुके थे। ननकू पाठक ने अपनी कुंडली देखी तो उनकी उम्र महज 30 साल थी। उन्होंने ग्रंथ का संपादन कर दूसरी प्रतिलिपि बनाई और अपने छोटे भाई बागीश्वरी पाठक को समझाते भी रहे। मृत्यु के एक माह पूर्व तक उन्होंने असली व प्रतिलिपि ग्रंथ अपने भाई को लोक कल्याण के निमित्त सौंपा। वर्ष 2000 तक बागीश्वरी पाठक ने रावण संहिता के माध्यम से लोगों के च्योतिषिय समस्या का समाधान किया। तत्पश्चात ग्रंथ को अपने तृतीय पुत्र पं. कामाख्या प्रकाश पाठक को सौंप वर्ष 2003 में चिर निद्रा में लीन हो गए तब से पं. कामाख्या प्रकाश पाठक ग्रंथ के माध्यम से समस्याओं का समाधान बताते है।

गुरवलिया स्थित रावण संहिता कार्यालय पर अपना भूत, भविष्य व वर्तमान जानने को कई राजनैतिक हस्तियां अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी, स्व. चौधरी चरण सिंह, गवर्नर सीपीएन सिंह और वर्ष 2010 में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जैसी हस्तियां यहां आ चुकी है। इसके अतिरिक्त अमेरिका, सिंगापुर, जापान, फ्रांस, रुस, नेपाल आदि देशों से लोग रावण संहिता की ख्याति सुन अक्सर यहां आते रहते है।

वैसे रावण ने जिन ग्रंथों की रचना की थी उनमें से शिव तांडव और रावण संहिता प्रमुख है। रावण संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है।

ज्योतिष विद्या को वेदांग माना जाता है। यह वैज्ञानिक सत्य है कि सौर मंडल के ग्रहों का जीवन पर प्रभाव पड़ता है। चंद्रमा के चलते समुद्र में च्वार-भाटा आना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। ग्रहों का प्रभाव हमारे शरीर व विचारों पर पड़ता है। विचारों के अनुसार ही हमारे कर्म होते है। कर्म हमारे सुख-दुख का कारण बनते है। ऋषियों ने ग्रहों के प्रभाव को जीवन की घटनाओं के साथ जोड़ने व परखने के लिए च्योतिष ज्ञान रचा। च्योतिष शास्त्र ग्रहों की चाल पर आधारित होते है और ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से माने जाने के कारण सूर्य सौर मंडल के स्वामी है। सूर्यदेव च्योतिष के जनक माने जाते है। सूर्य के निर्देश पर उनके सारथी अरुण ने उनके च्योतिष शिष्य रावण को अरुण संहिता प्रदान किया। जिसे लाल किताब के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि रावण ने इस ग्रंथ को अपने शोध से संपादित कर परिष्कृत रुप में रावण संहिता की रचना की। इसमें व्यक्ति के कुंडली के आधार पर उसके भूत, वर्तमान व भविष्य के सटीक फलादेश का दावा किया जाता है।

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