निजी चीनी मिलों के भरासे किसान
(कुशीनगर):
कुशीनगर का चीनी उद्योग निजी चीनी मिलों की बैसाखी पर टिका है। क्योंकि गन्ना की खेती किसान अभी कर रहे है तो इन्हीं निजी चीनी मिलों के भरोसे। वर्ष 1997 में सरकारी चीनी मिलों की बंदी का जो बुरा दौर शुरू हुआ, वह 2008 में बंद हुआ।
उल्लेखनीय है, कि जिले में चीनी मिलों की बंदी का सिलसिला वर्ष 1997 के बाद से शुरू हुआ। सबसे पहले भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय की कठकुइयां चीनी मिल वर्ष 1998-99 बंद हुई। इसके बाद वर्ष 1998-99 में कानपुर सुगर वर्क्स लिमिटेड की पडरौना चीनी मिल बंद हुई। छितौनी चीनी मिल वर्ष 1999-2000 में बंद हुई। उत्तर प्रदेश राज्य चीनी व गन्ना विकास निगम के अधीन रही रामकोला खेतान मिल वर्ष 2007-98 व लक्ष्मीगंज चीनी मिल बंद हुई।
हालांकि इन चीनी मिलों को बंद करने का फैसला वर्ष 2007 में प्रदेश की सपा सरकार ने ले लिया था। लेकिन इस फैसले को अमली जामा प्रदेश की मौजूदा बसपा सरकार ने पहनाया। बंदी की वजह सरकारी मिलों का लगातार घाटे में रहना रहना बताया गया। इसी के साथ किसानों का गन्ने की बुआई से भी मोहभंग हो गया। निजी चीनी मिलों की पेराई क्षमता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। जिसमें कप्तानगंज, रामकोला पंजाब व सेवरही चीनी मिलें प्रमुख है।
जबकि, सरकारी चीनी मिलें लगातार घाटे के चलते बंद होती गई। इस तरह सरकारी चीनी मिलों की बंदी जहां किसानों के लिए अभिशाप साबित हुई, वहीं निजी चीनी मिलों की क्षमता वृद्धि वरदान साबित हुई। यदि निजी चीनी मिलें न होती तो कुशीनगर में गन्ना व गन्ना किसान इतिहास बन चुके होते। इस संबंध में श्रमिक नेता विद्या प्रकाश पांडेय कहते है, कि सरकारी चीनी मिलों का लगातार बंद होना और निजी चीनी मिलों की क्षमता में वृद्धि इस बात का प्रमाण है, कि सरकारों की नीतियां गन्ना उद्योगों को खत्म करने वाली साबित हो रही है। सरकार को श्रमिकों के बकाए की चिंता नहीं है। लेकिन शीरा, चीनी, गन्ना मूल्य निर्धारण व चीनी के दाम की घोषणा आदि सभी आदेश सरकार के अधीन है। जिस तरह सरकार गेहूं 11 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से खरीदती है और बीपीएल कार्डधारकों को 2 रुपए प्रति किलोग्राम देती है। यह नीति चीनी के साथ भी लागू करती तो चीनी उद्योग चौपट नहीं होते।
इनसेट
गैर कांग्रेसी सरकारों ने बर्बाद किया उद्योग:आरपीएन
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पडरौना। भारत सरकार के पेट्रालियम व प्राकृतिक गैस आपूर्ति राज्यमंत्री कुंवर आरपीएन सिंह ने दूरभाष पर कहा कि पूर्वाचल की सभी सरकारी चीनी मिलें सपा, बसपा व भाजपा सरकारों के कार्यकाल में ही बंद हुई। जब तक यूपी में कांग्रेस की सरकार थ। तब तक एक भी चीनी मिल बंद नहीं हुई। उन्होंने बताया कि पडरौना, कठकुइया व छितौनी चीनी मिलें तब बंद हुई जब केन्द्र व प्रदेश में भाजपा की सरकारे थीं। जब कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आई, तब इन चीनी मिलों का मामला बायफर कोर्ट में चल रहा था।
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