ख्वाजा कड़क बाबा की दरगाह से हिदू व मुस्लिम एकता का पैगाम
संसू कड़ा जनपद धार्मिक एवं ऐतिहासिकता से ओतप्रोत है। सिराथू तहसील का कड़ा धार्मिक स्थल में सूफी संतों ने शिक्षा व धर्म की अलख जगाई है। इसमें एक फना फिल्लाह बुजुर्ग कामिल हजरत ख्वाजा कड़क अब्दाल रह भी हैं। आज भी उनके दरगाह पर हर वर्ष उर्स का आयोजन किया जाता है। रविवार को दोनों समुदाय के लोग जुलूस निकाला। इसके बाद गंगा जल शरबत बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित कर हिदू- मुस्लिम एकता की मिसाल दी जाती है।
संसू, कड़ा : जनपद धार्मिक एवं ऐतिहासिकता से ओतप्रोत है। सिराथू तहसील का कड़ा धार्मिक स्थल में सूफी संतों ने शिक्षा व धर्म की अलख जगाई है। इसमें एक फना फिल्लाह बुजुर्ग कामिल हजरत ख्वाजा कड़क अब्दाल रह भी हैं। आज भी उनके दरगाह पर हर वर्ष उर्स का आयोजन किया जाता है। रविवार को दोनों समुदाय के लोग जुलूस निकाला। इसके बाद गंगा जल शरबत बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित कर हिदू- मुस्लिम एकता की मिसाल दी जाती है।
आठ सौ वर्ष पूर्व हजरत ख्वाजा कड़क अब्दाल रह के पिता सैय्यद मो. हैदर खाड़ी देश के असफहाण मुल्क के बादशाह थे। पिता की मृत्यु के बाद वह गद्दी बैठे, लेकिन इनका दिल बादशाहत में नहीं लगा बल्कि उनका वक्त अल्लाह की याद व हक की तलाश में ज्यादा गुजरता था। जब उन्हें बादशाही रास न आई तो अपने साथियों के साथ अल्लाह की याद में घूमते हुए भारत आए और कड़ा सूबे में रुककर अल्लाह की इबादत करने लगे। अपने जीवन काल में वह इनके जीवन में वह चमत्कार किए। आज भी उनके चमत्कार सूफी- संत सुनाते हैं। इसी क्रम में रविवार को 724 वें उर्स पर दरगाह शरीफ से जुलूस निकाला गया। गागर जुलूस पूर्व निर्धारित रास्ते से होता हुआ गंगा घाट पहुंचा जहां से गंगाजल लेकर श्रद्धालु ख्वाजा साहब के मकान के चौकी पर आए। वहां गंगा जल में चीनी मिलाकर शरबत बनाया गया। इसके बाद जुलूस बाबा की दरगाह पुन: वापस हुआ। कुछ लोगों ने चादर चढ़ाकर अमन की खुशहाली की दुआ मांगी।