इतिहास : कौशांबी भारत में बुद्ध के जीवनकाल के छह समृद्ध शहरों में एक
कौशांबी का इतिहास रामायण कालीन है। यह जगह महाभारत के 16वें क्षेत्रों में से एक है। ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, कौशांबी : जिले का इतिहास रामायण कालीन है। यह जगह महाभारत के 16वें क्षेत्रों में से एक है जो वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी। यमुना के किनारे इसकी स्थापना चेदी राजकुमार कुश या कुशंबा ने की थी। इसलिए कालांतर में इसका नाम कौशांबी हुआ। कौशांबी को भारत में भगवान बुद्ध के जीवनकाल के छह समृद्ध शहरों में से एक माना जाता है। यह स्थल देश के चारों कोनों से व्यापार और वाणिज्य के केंद्र होने से खास था। शहर में खुदाई के दौरान कई पुराने सिक्के, प्रतिमाएं, स्तूप आदि निकले हैं। जो यहां के गौरवशाली इतिहास की दास्ता बयां करते हैं। यहां पर अशोक स्तंभ, एक जैन मंदिर, एक पत्थर का किला और घोषिताराम मठ है। इस जगह भगवान बुद्ध बोध ज्ञान प्राप्त होने के छठवें और नौवें साल में उपदेश देने आए थे।
पुराणों के अनुसार युधिष्ठर से सातवीं पीढ़ी के राजा परीक्षित के वंशज निचक्षु जब हस्तिनापुर के नरेश थे। तब राजधानी हस्तिनापुर गंगा में बह गई थीं। उसके बाद वे वत्स देश की कौशांबी नगरी में आकर बस गए। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी के राजा उदयन थे। गौतम बुद्ध के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य पर था। जातक कथाओं तथा बौद्ध साहित्य में कौशांबी का वर्णन अनेक बार आया है जिसमें कालिदास, भास और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से संबंधित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।
घोषिताराम विहार
बौद्ध धर्म ग्रंथों में घोषिताराम विहार का उल्लेख मिलता है। इस मठ का निर्माण भगवान बुद्ध के जीवनकाल के दौरान करवाया गया था। इसे एक व्यापारी घोषितराम ने करवाया था। वह भगवान बुद्ध का भक्त था और उसने बुद्ध और उनके शिष्यों के यात्रा के दौरान ठहरने को ध्यान में रखकर बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध इस क्षेत्र में अक्सर अपने शिष्यों के साथ यहां उपदेश देने के लिए आते थे। इस स्थल पर की गई खुदाई से मिले भग्नावेषों को इलाहबाद संग्रहालय में रखा गया है।
कई बार आए भगवान बुद्ध
बौद्ध ग्रंथ आवश्यक सूत्र की एक कथा में जैन भिक्षुणी चंदना का उल्लेख है, जो भिक्षुणी बनने से पूर्व कौशांबी के एक व्यापारी धनावह के हाथों बेच दी थी। कौशांबी नरेश शतानीक का भी उल्लेख है। इनकी रानी मृगावती विदेह की राजकुमारी थी। मौर्य काल में पाटलिपुत्र का गौरव अधिक बढ़ने से कौशांबी समृद्धिविहीन हो गई। फिर भी अशोक ने यहां प्रस्तर स्तंभ पर अपनी धर्मलिपियां संवत एक से छह तक उत्कीर्ण करवाई। इसी स्तंभ पर एक अन्य धर्मलिपि भी अंकित है जिससे बौद्ध संघ के प्रति अनास्था दिखाने वाले भिक्षुओं के लिए दंड का प्रावधान किया गया है। इसी स्तंभ पर अशोक की रानी और तीवर की माता कारुवाकी का भी एक लेख है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।