शिक्षा की ज्योति से रोशन हो रहे दर्जन भर गांव
शिक्षा की लौ एक घर ही नहीं पूरे समाज को रोशन कर सकती है। यह अहसास आज से 37 साल पहले डा. मुस्ताक अहमद को हुआ और उन्होंने क्षेत्र में शिक्षा का उजियारा करने का फैसला लिया। पहले एक मदरसे से इसकी शुरुआत की और धीरे-धीरे डिग्री कालेज तक बना डाला। उनकी इस पहल का सम्मान बेटे ने भी किया और वह विदेश से लौटकर पिता के कारवां को आगे बढ़ा रहे हैं।

जासं, कौशांबी : शिक्षा की लौ एक घर ही नहीं पूरे समाज को रोशन कर सकती है। यह अहसास आज से 37 साल पहले डा. मुस्ताक अहमद को हुआ और उन्होंने क्षेत्र में शिक्षा का उजियारा करने का फैसला लिया। पहले एक मदरसे से इसकी शुरुआत की और धीरे-धीरे डिग्री कालेज तक बना डाला। उनकी इस पहल का सम्मान बेटे ने भी किया और वह विदेश से लौटकर पिता के कारवां को आगे बढ़ा रहे हैं।
तीर्थ क्षेत्र कड़ा देश विदेश में प्रसिद्ध है। आज यहां की जो तस्वीर है, करीब 37 साल पहले ऐसा नहीं था। क्षेत्र में लूटपाट की घटनाओं की बाढ़ सी थी। आए दिन यहां कुछ न कुछ होता रहता था। क्षेत्र के लोग दहशत में रहते थे। हाफिज उल्ला व मुस्लिम जैसे अपराधियों पर पुलिस ने ईनाम तक घोषित किया था। उन दिनों प्रयागराज में शिक्षा के बाद कैरियर की शुरुआत करने वाले सौरई के मजरा चूहापीरन निवासी डा. मुस्ताक अहमद ने क्षेत्र की हालत देखी तो उनको कुछ करने का जुनून सवार हो गया। यहां लौटे और कई दिनों तक सोच विचार किया। इसके बाद उन्होंने शिक्षा का उजियारा करने का फैसला किया। 1984 में उन्होंने मदरसा अरबिया मदीनातुल की नींव रखी। शुरूआत में यह केवल बालकों के लिए था। बाद में विद्यालय के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी तो उन्होंने बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ने के लिए मदरसा अरबिया मदीनातुल उलूम निसवां की नींव रखी। प्राथमिक स्तर की शिक्षा के बाद स्थानीय बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे थे। इसकी जानकारी होते ही उन्होंने पहले कारी सैय्यद सिद्दीक अहमद इंटर कालेज और फिर हजरत मौलाना अलीमिया नदवी डिग्री कालेज की नींव रखी। उनके इस प्रयास से क्षेत्र के बच्चों को प्राथमिक स्तर से लेकर डिग्री कालेज तक की शिक्षा मिलने लगी। इसका परिणाम रहा कि क्षेत्र में होने वाली आपराधिक घटनाएं रुकीं और अब कड़ा क्षेत्र विकास के राह में चल निकला।
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विदेश से लौट आया बेटा
डा. मुस्ताक अहमद के बेटे मो. आसिफ ने बीटेक करने के बाद दुबई जाने का निर्णय लिया। फरवरी 2011 में आसिफ ने इंजीनियर के रूप में वहां काम शुरू किया। कई साल नौकरी करने के बाद जुलाई 2016 में वहां रहते हुए उनको पिता के कार्यों को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली। बेटे आसिफ ने विदेश से लौटकर पिता की बागडोर संभाल ली है।
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