Taste of Kasganj: पुरुषों की पसंद और गृहणियों का चैन कासगंज की कचौड़ी, संस्कृति में रची-बसी आती है नजर
कासगंज शहर की संस्कृति में रची-बसी कचौड़ी सबसे प्रिय नाश्ता है। सूर्योदय के साथ ही यहां कचौड़ी की दुकान ढकेल और फड़ों पर लगने वाली भीड़ इसकी गवाही खुद ...और पढ़ें

कासगंज, जागरण संवाददाता: सबरे रसायन हम चखें, कचौड़ी सम नहीं कोय, रंचक घट में संचरे, सब तन कंचन होय... किसी कवि की यह कल्पना कासगंज शहर की संस्कृति में रची-बसी नजर आती है। यहां के लोगों का कचौड़ी सबसे प्रिय नाश्ता है। सूर्योदय के साथ ही यहां कचौड़ी की दुकान, ढकेल और फड़ों पर लगने वाली भीड़ इसकी गवाही खुद देती है।
खासियत यह कि यहां हर पचास कदम पर कचौड़ी बिकती हैं, मगर सभी विक्रेताओं के यहां स्वाद अलग-अलग है। सब के ग्रहक भी निर्धारित हैं। पुरुषों की यह पसंद गृहणियों को चैन पहुंचाती है। उन्हें सुबह-सुबह नाश्ता तैयार करने की जरूरत नहीं पड़ी।
सुबह गर्मी की हो या बरसात की, या फिर सर्द कोहर भरी, यहां के लोगों में कचौड़ी की चाहत बरकरार रखती है। मुख्य बाजार और मार्गों के साथ गली-गली में सुबह-सुबह कचौड़ी की ढकेल सजी नजर आती हैं। लोग कचौड़ी दुकान, ढकेल और फड़ों पर खड़े होकर कचौड़ी खाते तो हैं ही, साथ ही पैकिंग के आर्डर भी साथ ही साथ दे देते हैं। इस तरह घर-घर कचौड़ी पहुंचती हैं और गृहणियों को सुबह नाश्ता तैयार करने की कवायद नहीं करनी पड़ती।
सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां हर दुकान, ढकेल और फड़ पर कचौड़ी का स्वाद भी अलग-अलग है। कोई सिर्फ आटे की कचौड़ी बनाता है तो कोई मैदा की। कोई इसका मिश्रण करके तैयार करता है तो कोई आटे में बेसन मिलाता है। सब्जी सभी पर आलू की ही मिलेगी, मगर इसे लेकर भी विक्रेताओं की अलग-अलग पहचान है। हर दुकनदार की सब्जी की अपनी अलग ख्याति है। किसी की सब्जी हींग को लेकर पहचान बनाए हुए है तो किसी की खड़े मसाले को लेकर। कोई सब्जी में दही लगाता है। इसके अलावा कोई रिफाइंड में कचौड़ी तलता है तो कोई सरसों के तेल में। देसी घी की कचौड़ी भी यहां कुछ दुकानदारों की काफी लोकप्रिय हैं।
इसीलिए स्वाद के हिसाब से सबके ग्राहक भी निर्धारित हैं। इसके अलावा कचौड़ियां हर वर्ग के लिए अलग-अलग दरों पर भी उपलब्ध रहती हैं। कहीं महंगी हैं तो कहीं औसत वर्ग के लिए बेहद सस्ती। यही वजह है कि यहां के ज्यादातर लोगों की दिनचर्या कचौड़ी के नाश्ते से ही शुरू होती है।
सुबह-सुबह महक उठते हैं चौराहे
शहर के चौराहे सुबह-सुबह ही सरसों के तेल और मसालों के तड़का से महकने लगते है। इसके पीछे कारण कचौड़ी विक्रेता सुबह चार बजे से ही सब्जी आदि तैयार करने में जुट जाते हैं। ऐसे में वह तेल गर्म कर जब सब्जी छोंकते हैं तो उसकी महक वातावरण में फैल जाती है। वह चौराहों से गुजरने वालों को अनायास ही आकर्षित करती है। ऐसे में तमम लोग कचौड़ी की दुकानों पर पहुंचकर स्वाद लेने के लिए इंतजार करते हैं।
कचौड़ी की दीवानगी
शहर में सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं जो कई दशकों से सुबह-सुबह कचौड़ियों का नाश्ता करने ही घर से निकलते हैं। इस दौरान वह टहल भी लेते हैं और कचौड़ी बच्चों के लिए पैक कराकर भी ले जाते हैं। उनके घरों में भी नाश्ते के रूप में नियमित कचौड़ियों का ही सेवान होता है। यह लोग ज्यादातर सरसो के तेल में तली कचौड़ियां पसंद करते हैं।
दूसरी तरफ दर्जनों विक्रेता ऐसे हैं जो दशकों कचौड़ी बेच रहे हैं। कुछ की तो पीढ़ियां भी बदल गई हैं पीढ़ियां बदल गईं, लेकिन न ही खाने वाले बदले और न ही बेचने वाले। कहीं तीखे के शौकीन लोग हैं तो कहीं सादे मसाला पसंद करने वाले। कहीं कचौड़ी के साथ चटनी का स्वाद लोगों को भाता है तो कहींं दही के अलग-अलग तरह के रायते का स्वाद।
हींग के धुएं के रायते का अलग है स्वाद
गली पचोरियान में कई पीढ़ियों से कचौड़ियों के प्रसिद्ध विक्रेता गयाप्रसाद की दुकान हल्का मसाला खाने वालों की पसंद है। यहां सब्जी में बेहद कम मसाले होते हैं, साथ ही हींग के धुएं के रायते से उसका स्वाद अलग हो जाता है। कचौड़ी आज भई गयाप्रसाद के नाम से ही जानी जाती है, मगर अब गयाप्रसाद नहीं रहे। वर्तमान में उनके पुत्र राजेश बिरला उर्फ पहाड़ी लाला दुकान का संचालन कर रहे हैं।
तीस साल से बने हुए हैं कचौड़ियों के शौकीनों की पसंद
ठंडी सड़क पर पिछले तीस साल से कचौड़ियों के शौकीनों की पसंद बने हुए रमनलाल बिरला का कहना है कि वह एक सीमित स्तर तक ही कचौड़ी तैयार करते हैं। उनके यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या नियमित ग्राहक आते हैं। उनके ग्राहक खड़े मसालों की सब्जी के शौकीन हैं और वर्षों से रोजाना नाश्ते के रूप में उनकी कचौड़ियों का स्वाद लेते हैं। वह ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रखकर सब्जी तैयार करते हैं। उनकी चटनी को भी ग्राहक पसंद करते हैं।
हींग का तड़का ग्राहकों को आता है पसंद
गांधी मूर्ति चौराहे पर कचौड़ी बेचने वाले बाबी जैन उर्फ मौंटी पिछले पच्चीस साल से यहां ढकेल लगा रहे हैं। अब उन्होंने दुकान भी ले ली है, मगर कचौड़ी ढकेल पर ही तैयार होती हैं। दुकान में ग्राहकों को बैठकर खाने की व्यवस्था कर रखी है। उनका कहना है कि वह आटे में मैदा लगाकर कचौड़ी तैयार करते हैं। सब्जी में गर्मशाला ज्यादा लगाते हैं। इसी के साथ हींग का तड़का उनके ग्राहकों को पसंद है। उनके नियमित ग्राहक हैं।
सुबह से पहुंच जाती है शौकीनों की भीड़
सूत की मंडी क्षेत्र में प्रसिद्ध राजा बेटा हलवाई के शौकीनों की भीड़ सुबह से पहुंच जाती है। यहां दही-जलेबी के साथ कचौड़ियों का आनंद लिया जाता है। दुकान का संचालन कर रहे अनिल कुमार बताते हैं कि उनके बाबा ने दुकान की शुरूआत की थी। वह अब तीसरी पीढ़ी हैं, मगर उन्होंने कचौड़ी की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं किया है। उनके ग्राहक निर्धारित हैं, जो रोज सुबह आते हैं।
पारंपरिक भोजन है कचौड़ी
बीएबी इंटर कालेज के सेवानिवृत्त शिक्षक वीरेंद्र नाथ पांडेय कचौड़ियों के शौकीन हैं। वह पचास साल से रोज सुबह कचौड़ी का नाश्ता करने ही घर से निकलते हैं। पहले वह प्रभु पार्क में टहलते हैं और फिर नदरई गेट चौराहे पर नाश्ता करने के बाद कचौड़ी घर भी पैक कराकर बच्चों के लिए ले जाते हैं। उनका कहना है कि कचौड़ी पारंपरिक भोजन है।
आदत में है सुबह-सुबह कचौड़ी का नाश्ता
गंगेश्वर कालोनी निवासी सुभाष चंद्र शर्मा भी कचौड़ी के शौकीन हैं। वह बताते हैं कि उनके पिता नदरई गेट पर सुबह-सुबह उन्हें कचौड़ी खिलाने के लिए लाते थे। तब से उनकी आदत में यह है। उन्हें और उनके परिवार को नकदई गेट पर बाबी जैन की कचौड़ी पसंद हैं। दुकानदार भी यह जानता है कि वह किस प्रकार की सिकी कचौड़ी पसंद करते हैं।
खड़े मसाले और चटनी से बढ़ जाता है स्वाद
जीजीआइसी के व्यायाम शिक्षक शिवशंकर को भी कचौड़ी पसंद हैं। उन्हें ठंडी सड़क पर रमनलाल की कचौड़ी पसंद हैं। वह सुबह-सुबह नियमत उनके यहां पहुंचकर नाश्ता करते हैं। उनका कहना है कि रमनलाल सब्जी में खड़े मसाले का प्रयोग करते हैं। इसी के साथ उनकी चटनी हरे धनिये की होती है। सब्जी में चटनी डल जाने से स्वाद और बढ़ जाता है।

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