दमन सहा पर हाथ से तिरंगा नहीं छोड़ा
आजादी के आंदोलन में जिले का बड़ा योगदान रहा है।

दमन सहा पर हाथ से तिरंगा नहीं छोड़ा
कासगंज, संवाद सहयोगी : आजादी के आंदोलन में यहां के क्रांतिकारियों के योगदान का कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। इन्हीं में से एक थे पं. हरबिलास शर्मा। विदेशी कपड़ों और शराब का विरोध करने पर अंग्रेज डीएसपी ने जमीन पर पटक कर मारा, रिवाल्वर की बट से दांत तोड़ दिए और जेल भी भेजा। असहयोग आंदोलन में भी इन्हें सश्रम कारावास हुआ। जुर्माना भी बोला गया। 15 बैत की सजा मिली। इतना दमन सहने के बाद भी इनके हाथ से तिरंगा कभी नहीं छूटा।
स्वामी दयानंद सरस्वती की राष्ट्र भावना से प्रेरित होकर हरविलास शर्मा वर्ष 1921 में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। अंग्रेज सरकार का विरोध करने पर सबसे पहले उन्हें आठ माह का कठोर कारावास और 20 रुपये का अर्थदंड मिला। सजा काटने के बाद जब जेल से बाहर आए तो फिर आंदोलन की कमान संभाल ली। 1923 में एक माह की जेल और 15 वैतौं की सजा सुनाई गई। 1924 में 25 दिन की जेल की सजा हुई। इसके बाद भी वह बि्रटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन में शामिल होते रहे। विदेशी कपड़ों एवं शराब का विरोध करने पर अंग्रेजी डीएसपी ने गली जोहरा भौरा के सामने उन्हें पटक कर मारा और रिवाल्वर की बट से दांत तोड़ दिए। वह लहूलुहान हो गए, लेकिन उन्होंने वंदे मातरम और भारत मां का जयकारा लगाना नहीं छोड़ा। हाथ में तिरंगा झंडा लिए वह जेल गए। उन्होंने सोरों गेट स्थित श्री गणेश इंटर कालेज पर यूनियन जैक के झंडे को उतारकर देश का तिरंगा स्थापित किया। इस बार फिर अंग्रेजी लाठियों के शिकार हुए और जेल जाना पड़ा। महात्मा गांधी के आह्वान पर 1942 से भूमिगत आंदोलन में सहभागिता की। उनकी पौत्री डा. मीरा रानी शर्मा ने बताया कि उनके बाबा का दो जून 1966 में शरीर शांत हो गया। राष्ट्रीय पर्व पर आज भी सम्मान के साथ उनका स्मरण किया जाता है।
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मित्र ने कराई थी जमानत
हरबिलास शर्मा स्वतंत्रता आंदोलन में जब जेल गए थे तो स्वजन के पास उनकी जमानत कराने के लिए व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। ऐसे में उनके के मित्र घंटाघर पर कपड़े का व्यवसाय करने वाले स्व. निरंजन प्रसाद पोद्दार (जिनका परिवार वर्तमान में आगरा में निवास कर रहा है) ने पंडित जी की जमानत ली।
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अंग्रेजों ने हड़प ली 40 बीघा जमीन
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हरविलास शर्मा मूल रूप से राजस्थान प्रांत के जिला धौलपुर स्थित गांव रहसेना के निवासी थे, लेकिन स्वतंत्र आंदोलन से पहले वे कासगंज आकर बस गए। गांव में इनकी 40 बीघा कृषि योग्य भूमि थी। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की बगावत करना शुरू कर दी। वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। तब अंग्रेजी शासन ने इनकी जमीन को जब्त करा ली।
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