'खान'चंद्रपुर को कौड़ियों में माटी मोल कर गए उद्यमी
रोजगार देने और विकास कराने का लालच देकर हथिया ली थीं जमीनें हाईवे किनारे होने के कारण यहां पहले ही कर लिया गया था कब्जा
दृश्य-एक
70 वर्षीय रामनाथ पुराने दिनों को याद कर भावनाओं में बह गए। बोले, बबुआ पहिले तौ कच्चे घर हते। हाईवे कै कारण गांव कै किनारे की जमीन का जब कुछ बड़े आदमिन मतलब कै समझिन तौ इहां खरीदारन का मजमा लागै लाग। यह बात समझि नाहीं पावा कि जमीन मा इ सब का करिहैं। जहां लौकी, गेहूं, बजरा पैदा कर कै पाइ-पाइ जोरित रहै उहां लाखन की बात सुनि चकरा गैन। लालच मा आइकै बहुत लोगन ना खेतवा बेच दीहिन।
दृश्य-दो
यही दर्द 65 वर्षीय देवी प्रसाद पाल का है। बोले, बबुआ हमरी जवानी मा खेतिही तौ साधन रहै, जौन गल्ला होइ जाए वहिते साल भर गुजर आराम ते होति रहै। इ जौ फैक्ट्री दिख रही हैं इहां न होत, लेकिन लालच में आइके जमीन बेच दीन गै। गांव के 60 वर्षीय रामेश्वर, 63 वर्षीय गजोधर पाल व 60 मेवालाल कहते हैं कि कम रुपये में जमीनें ली गई। बताया था कि बिजली व लड़कों को काम दिया जाएगा। लेकिन, क्या हुआ अब सभी के सामने है।
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जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : कभी समृद्धि व सुकून में जी रहे खानचंद्रपुर के ग्रामीणों की नासमझी कहें या भोलापन। महज कुछ पैसों के लोभ में आकर सुकून तो खोया ही, बच्चों को क्रोमियमयुक्त भूजल की सौगात दे गए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भले ही यहां की छह फैक्ट्रियों पर 280 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है, लेकिन इससे यहां के बाशिंदों का जख्म भरने नहीं वाला।
खानचंद्रपुर में बाहर से आए लोगों ने जो तबाही मचाई उसके निशान हर घर में दिख रहे हैं। कोई ऐसा घर नहीं जहां के सदस्य क्रोमियमयुक्त भूजल से बीमार न हो। यहां करीब ढाई सौ किसान परिवार हैं। कभी हर किसान के पास पांच से दस बीघा खेत थे। धीरे-धीरे हालात बदले और किसान लालच में आकर अपनी भूमि को माटी भाव देने को तैयार होने लगे।
कौड़ियों में खरीद ली महंगी जमीनें
खानचंद्रपुर गांव में हाईवे किनारे किसानों की करीब 30 बीघा जमीन है। आसपास करीब 300 बीघा खेत हैं। 30 साल पहले कुछ फैक्ट्री वालों ने पांच से सात हजार रुपये बीघा के हिसाब से जमीन खरीद ली थी। वहीं हाईवे किनारे की जमीन सात से आठ लाख रुपये प्रति बीघा की दर से खरीद ली गई। अब एक करोड़ रुपये प्रति बीघा कीमत है।