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    साहित्य में महत्वपूर्ण हैं लघु कथाएं

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    Updated: Thu, 26 Feb 2015 10:09 PM (IST)

    कानपुर देहात, जागरण संवाददाता : लघु कथा का उद्भव व विकास बोध कथाओं से हुआ है। इनसे प्रेरणा लेकर कहान

    कानपुर देहात, जागरण संवाददाता : लघु कथा का उद्भव व विकास बोध कथाओं से हुआ है। इनसे प्रेरणा लेकर कहानी का स्वरूप छोटा होता गया, जो अब हिंदी साहित्य में स्वतंत्रता विधा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। इसका भविष्य उज्जवल है, यह बात गुरुवार को अकबरपुर महाविद्यालय में दो दिवसीय हिंदी गोष्ठी के पहले दिन जोधपुर राजस्थान के जय नारायण विश्वविद्यालय से आए पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रामवीर सिंह शर्मा ने कही।

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    गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रबंध समिति अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र द्विवेदी ने बोध कथा व लघु कथा का विश्लेषण किया। कहा कि सीमा पर किसी जवान के शहीद होने पर उनकी मां व पत्नी की भावनाओं की कहानी को लघु कथा के माध्यम से अलग-अलग प्रकट किया जाता है। विशिष्ठ वक्ता जोधपुर विश्वविद्यालय से आए प्रो. श्रवण कुमार ने पंचतंत्र की कहानियों का उल्लेख करते हुए शिल्प पर प्रकाश डाला। फतेहगढ़ से आई डॉ. साधना शुक्ला ने अपनी पुस्तक 'का कहूं सजनी' की कहानियां सुनाकर लघु कथा की संवेदनशीलता पर प्रकाश डाला। गोष्ठी संयोजक डॉ. सीपी पाठक ने कहा कि समय के अभाव में अब लोग लंबी कहानी नहीं पढ़ते हैं। इसलिए लघु कथाओं में खंड-खंड में कहानी व्यक्त हो रही है। हमारे सामने जो घटनाएं होती है, उनकी संवेदना समाज में समझकर प्रकट करते हैं। लघु का स्रोत बोध व जातक कथाएं हैं। मनुष्य का पूरा जीवन छोटी-छोटी कहानियों से भरा होता है। संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में डॉ. प्रदीप प्रसन्न, डॉ. चंद्रभान सिंह, डॉ. सियाराम ने भी विचार व्यक्त किए। दूसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ. एसपी तिवारी व संचालन डॉ.अंजू शुक्ला व इंद्रमणि ने किया। डॉ. प्रदीप कुमार दीक्षित, डॉ. ऊषा किरण अग्निहोत्री, डॉ. प्रभा गुप्ता, डॉ.रश्मि पांडेय, डॉ. रुचि दीक्षित, नरेंद्र सिंह आदि रहे।