भोगनीपुर विधानसभा सीट : कानपुर देहात की राजनीति में बेहद अहम है ये क्षेत्र, राष्ट्रपति का भी है खास जुड़ाव
यूपी विधानसभा चुनाव में कानपुर देहात की भोगनीपुर सीट का बेहद खास होने की पीछे यहां से राष्ट्रपति का खास जुड़ाव भी है हालांकि यहां की जनता का मिजाज हर ...और पढ़ें

कानपुर, चुनाव डेस्क। कानपुर, चुनाव डेस्क। बाजार और बाकी चीजों में कानपुर देहात का अगर सबसे समृद्ध क्षेत्र कहें तो भोगनीपुर विधानसभा क्षेत्र है। यहां की पुखरायां बाजार बड़ी है। जिले भर के अलावा आसपास से भी लोग यहां आते हैं। यहां पर सिद्धपीठ मां मुक्तेश्वरी मंदिर भी है। भोगनीपुर सीट पर राजनीति भी बेहद खास है तो इस क्षेत्र से राष्ट्रपति महामहिम का खास जुड़ाव है। यहां जनता ने एक बार को छोड़ हमेशा नए लोगों को मौका दिया है। इस बार नए चेहरे मैदान में हैं, आइए पढ़ते हैं चारुतोष जायसवाल की चुनाव पर खास रिपोर्ट..।
हमेशा एक जैसा रहा जनता का मिजाज : परिसीमन में एक बार सुरक्षित व दो बार सामान्य सीट भले बदली लेकिन यहां की जनता का मिजाज हमेशा एक सा रहा। जिसे विधायक बनाकर भेजा, उसे कभी दोबारा मौका नहीं दिया। 2017 के चुनाव में भाजपा के विनोद कटियार यहां से पहली बार जीते। भाजपा का आजादी के बाद से पहली बार खाता यहां खुला था। लेकिन, इस बार टिकट न मिलने से विनोद मैदान से बाहर हैं। 1952 में यह सीट भोगनीपुर कम डेरापुर के नाम से जानी जाती थी तब यहां पर कांग्रेस के रामस्वरूप गुप्ता जीते। अगले चुनाव में वह हार गए और जनता ने यहां निर्दलीय रामस्वरूप वर्मा को जीत दिलाई। अगले चुनावी वर्ष में फिर नए चेहरे ने जीत दर्ज की। इसके बाद सीट सामान्य से सुरक्षित घोषित हो गई। 1967 में चुनाव हुए तो संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के के. लाल के हाथ बाजी लगी थी। इसके बाद कांग्रेस के बारी-बारी ज्वाला प्रसाद, भारतीय क्रांति दल के केसरी लाल, जनता पार्टी के मौजीलाल जीते। राम मंदिर आंदोलन की लहर में भी भाजपा यहां सफलता पाने को तरसती रही। तब 1989 और 1991 में जनता दल से प्यारेलाल लगातार जीते थे। परिसीमन में वर्ष 2012 में सीट फिर से सामान्य हुई तो सपा संरक्षक मुलायम सिंह के साथी रहे योगेंद्र पाल ने यहां सपा से जीत दर्ज की। इस बार चुनाव में भी यहां जो जीतेगा, वह नया चेहरा होगा।
इस बार का दृश्य : यहां से भाजपा ने पूर्व सांसद राकेश सचान को मैदान में उतारा है। वह पहली बार यहां से किस्मत अजमाएंगे। सपा ने विधायक रहे योगेंद्र पाल के बेटे नरेंद्रपाल मनु को मौका दिया है। बसपा से जुनैद खां व कांग्रेस ने अपने जिला महासचिव गोविंद निषाद को टिकट दिया है।
किस्सा फ्लैश बैक में : वर्ष 2007 में यहां चुनाव लडऩे को भाजपा से राम नाथ कोविन्द (वर्तमान राष्ट्रपति) आए। सरल स्वभाव के राम नाथ कोविन्द ने सब कुछ कार्यकर्ताओं के हवाले कर दिया था। वह पुखरायां में डा. जय गोयल की क्लीनिक के ऊपर कमरे में ही चुनाव की रणनीति बनाते और वहीं खाना खाते थे।
तीन बार मौका फिर भी न मिली जीत : भाजपा के सत्यप्रकाश संखवार को पार्टी ने तीन बार टिकट दिया लेकिन, एक बार भी जीत नसीब न हुई। वर्ष 1991, 93 और 1996 में वह भाजपा प्रत्याशी थे। भाजपा के दिग्गज नेता कल्याण सिंह भी प्रचार के लिए यहां आए। खुद हेलीकाप्टर में सत्यप्रकाश को बैठाकर ले गए और दो जगह जनसभा की, लेकिन जीत नहीं मिली।
2017 के चुनाव की स्थिति
विनोद कटियार, भाजपा : 71466
धर्मपाल भदौरिया, बसपा : 52461
योगेंद्रपाल, सपा : 48181
कुल पड़े वोट : 212732 : 50.68 फीसद
कब किसको मिली जीत ( स्रोत : चुनाव आयोग की वेबसाइट)
1952 : रामस्वरूप गुप्ता, कांग्रेस
1957 : रामस्वरूप वर्मा, निर्दलीय
1962 : आरएन मिश्रा, कांग्रेस
1967 : के. लाल, एसएसपी
1969 : ज्वाला प्रसाद कुरील, कांग्रेस
1974 : केसरी लाल, बीकेडी
1977 : मौजीलाल कुरील, जनता पार्टी
1980 : गंगासागर संखवार, कांग्रेस (आई)
1985 : राधेश्याम, कांग्रेस
1989 : प्यारेलाल संखवार, जनता दल
1991 : प्यारेलाल संखवार, जनता दल
1993 : भगवती सागर, बसपा
1996 : राधेश्याम, बसपा
2002 : अरुणा कोरी, सपा
2007 : रघुनाथ प्रसाद, बसपा
2012 : योगेंद्रपाल, सपा

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