किताबघर में स्वराज की जब्तशुदा कहानियाें का संग्रह , कानपुर से 1908 में हुआ था ‘सोजे वतन’ का पहला प्रकाशन
किताबघर में बलराम अग्रवाल के कहानी संग्रह में प्रेमचंद की सोजे वतन तथा अन्य जब्तशुदा कहानियां को संजोया गया है । वहीं इस बार मयूरपंख में आजादी की कहानी मौलाना अबुल कलाम आजाद का इतिहास/राजनीति/आत्मकथा का संग्रह है।

किताबघर : ब्रिटिश शासनकाल में प्रतिबंधित स्वराज्य की कहानियां
सोजे वतन तथा अन्य जब्तशुदा कहानियां
प्रेमचंद
संपादक : बलराम अग्रवाल
कहानी संग्रह
पहला संस्करण, 1908
पुनर्प्रकाशित संस्करण, 2019
साक्षी प्रकाशन,
नवीन शाहदरा, दिल्ली
मूल्य: 100 रुपए
समीक्षा : यतीन्द्र मिश्र
हिंदी साहित्य संसार में प्रेमचंद की उपस्थिति युगप्रवर्तक लेखक की रही है। एक ऐसे रचनाकार, जिन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों से बीसवीं शताब्दी के आरंभिक तीन दशकों में हिंदी-उर्दू में नवाचार की ढेरों मिसालें कायम कीं। यह वह दौर था, जब राजनीति भी समाज सुधार के आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए मनुष्य को वैचारिक रूप से देशप्रेम के प्रति उन्मुख करने और उसे कर्मशील बनाकर स्वाधीनता आंदोलन के प्रति जागरूक करने की थी। ऐसे समय में प्रेमचंद अपनी लेखनी की मशाल थामे हुए रुढ़िवादी परंपराओं को त्यागकर वैज्ञानिक चेतना से आदर्शवादी लेखन की ओर बढ़े, जिसका उजाला हम पूरी एक शताब्दी बीत जाने के बाद भी आज तक महसूस करते हैं। प्रेमचंद का विपुल लेखन शुरुआती दौर में उन उर्दू पत्रिकाओं का भी मुखापेक्षी है, जिन्होंने उनके वैचारिक मानस को उर्वर बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। नवाबराय के रूप में उनके उर्दू अफसानों की किताब ‘सोजे वतन’ ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी। हंिदूी में प्रकाशित संकलन ‘सोजे वतन तथा अन्य जब्तशुदा कहानियां’ दरअसल उर्दू में प्रकाशित उनके पहले कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ की कहानियों के हिंदी रूपांतरण के साथ 1932 में प्रतिबंधित हिंदी कहानियों के संचयन ‘समर यात्र व 11 अन्य राजनीतिक कहानियां’ का एक ही जिल्द में सम्मिलित संकलन है। इस लिहाज से इसका ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लंबे अरसे तक जमींदोज कर दिए गए इन महत्वपूर्ण अफसानों का एक बड़ा सामाजिक, राजनीतिक आशय है, जो स्वतंत्रता प्राप्ति की आकांक्षा को मानवीय ढंग से समझाता है। आजादी के 75वें साल में इसका पुनमरूल्यांकन सार्थक है।
हमें मालूम है कि प्रेमचंद की किस्सागोई में शहरी, कस्बाई और ठेठ देहाती जीवन के सबसे सबल और जीवंत चित्र मिलते हैं। उनके यहां किसी भी प्रकार की दासता, रुढ़ि, अंधविश्वास और अन्याय के प्रतिरोध की आवाज इतनी बुलंद है कि कई दफा छोटी-छोटी कहानियों में मौजूद साधारण से, लगभग हाशिए पर उपस्थित अनाम किरदारों में भी यह स्वर गंभीरता से सुना जा सकता है। यह संकलन ऐसी कहानियों का गुलदस्ता है, जहां उर्दू की खुशबू शिखर पर देखी जा सकती है।
‘सोजे वतन’ का पहला प्रकाशन 1908 में हुआ था और इसे मुंशी दयानारायण निगम ने ‘नया जमाना’ कार्यालय, कानपुर से प्रकाशित किया था। यह माना जाता है कि इसकी पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ संभवत: 1907 में लिखी गई, मगर इसका प्रकाशन 1908 में ही मिलता है। यह कहानी दिलफिगार जैसे सच्चे आशिक की है, जो अपनी माशूक दिलफरेब की यह शर्त पूरा करने के लिए जी-जान लगा देता है कि दुनिया का सबसे अनमोल रतन उसे ढूंढ़कर ला देगा। देशप्रेम की भावना से भरी और इंसानी जज्बे को मार्मिकता से बखानने वाली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल हीरा पहचानकर समाज के आगे लाती है। कहानी में उर्दू और हंिदूी का बेहतरीन इस्तेमाल, कई तरह के अनमोल हीरों को ढूंढ़ने की समझ और अंत में इस प्रेरणा से खत्म होने वाली कि ‘खून का वह आखिरी कतरा, जो वतन की हिफाजत में गिरे, दुनिया की सबसे अनमोल चीज है।’ यह कहानी आज भी लुभाती है और इसके सरोकार उस दौर को रेशा-रेशा उघारकर रख देते हैं, जब भारत में स्वराज्य पाने का सपना समाज में फैलना शुरू हुआ था। एक अन्य कहानी ‘सांसारिक प्रेम और देशप्रेम’ में मैजिनी और मैग्डलीन की प्रेम कहानी के बहाने देशप्रेम की भावना बेहद खूबसूरती से चित्रित की गई है। ‘यही मेरा वतन है’ और ‘शोक का पुरस्कार’ भी ऐसी कहानियां हैं, जिन्हें पढ़कर यह समझा जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार को इन्हें जब्त करने की जरूरत क्यों आन पड़ी?
‘समर यात्र’ जैसी नायाब कहानी लिखते हुए, प्रेमचंद उस दौर में इतनी बड़ी लकीर खींचते हैं, जिसे आज लगभग उस तरह कह पाना नामुमकिन लगता है। ‘माधुरी’ पत्रिका के मई, 1930 अंक में प्रकाशित ‘समर यात्र’ का फलक बहुत बड़ा है। नोहरी, कोदई, नायक जी के चरित्रों वाली यह कहानी स्वराज्य पाने के लिए गांव-गांव, हर एक के व्यवस्था विरोध की, सत्याग्रहियों के दल बनाने की मार्मिक कथा है। इसे पढ़कर आप भारत के उस चरित्र को समझ सकते हैं, किस तरह घर-घर सत्याग्रह के लिए लोगों में भावनाएं जागृत हुई थीं। नोहरी जैसी वृद्ध महिला का चरित्र हंिदूी कथा संसार में दुर्लभ है, जिसके संवाद आज भी आंखों में आंसू ला देते हैं। ‘आहुति’, ‘जेल’, ‘लांछन’, ‘ठाकुर का कुआं’, ‘जुलूस’, ‘अनुभव’ और ‘होली का उपहार’ न जाने कितनी ऐसी कहानियां हैं, जो पराधीनता में तड़पते हुए भारत का अंतर्मन व्यक्त करती हैं। इन कहानियों की स्त्रियां, बच्चे, दलित और वंचितों की मनोदशा के साथ एक तरफ गांधी जी, क्रांतिकारी, नेतागण और आदर्शवादी समाज है, तो दूसरी ओर दरोगा और सिपाही भी उस कालखंड का इतिहास बयां कर देते हैं। लगता ही नहीं कि हम किसी कथाकार की कहानियां पढ़ रहे हैं। एक जीता-जागता इतिहास, सांस लेता हुआ दस्तावेज और लहूलुहान अतीत.. यह सब आपस में गड्डमड्ड होकर प्रेमचंद के किस्सों की वह निराली दुनिया बनाते हैं, जिसमें से स्वराज्य का चटख स्वप्न झांकता है।
मयूरपंख : भारत निर्माण के संघर्ष का वृत्तांत
आजादी की कहानी
मौलाना अबुल कलाम आजाद
इतिहास/राजनीति/आत्मकथा
पहला संस्करण, 1959
पुनर्प्रकाशित संस्करण, 2020
ओरियंट ब्लैकस्वॉन प्रा. लि., हैदराबाद
मूल्य: 475 रुपए
कानपुर, यतीन्द्र मिश्र। ‘आजादी की कहानी’ मौलाना अबुल कलाम आजाद की मूल अंग्रेजी पुस्तक ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ का हंिदूी अनुवाद है। यह मौलाना आजाद की आत्मकथा ही नहीं है, वरन भारतीय इतिहास का एक अध्याय है, जिसमें देश के प्रति समर्पित भावना तथा राष्ट्रीय संघर्ष की गतिविधियों और परिस्थितियों में उनकी प्रतिक्रियाओं की अभिव्यक्ति है। बेबाकी, ईमानदारी और स्पष्टवादिता के साथ मौलाना आजाद ने इसमें भारतीय इतिहास पर ऐसी मनोग्राही दृष्टि डाली है, जो स्वतंत्रता को उनके राजनीतिक विचारों के तहत उद्भासित करती है।
भारत छोड़ो आंदोलन, शिमला सम्मेलन, विभाजन की भूमिका, अंतरिम सरकार, माउंटबेटन मिशन तथा विभाजित हंिदूुस्तान उपशीर्षकों के अंतर्गत उस दौर का आंखों देखा समय दर्ज हुआ है, जो भारत गणराज्य के बनने की भूमिका स्पष्ट करता है। किताब का उल्लेखनीय पक्ष है कि ढेरों घटनाओं और उनसे संबंधित व्यक्तियों के विषय में मौलाना आजाद के विचार तटस्थता के साथ व्यक्त हुए हैं। परिशिष्ट में दिए गए कुछ ऐतिहासिक पत्रों का संकलन भी इसे एक प्रामाणिक दस्तावेज बनाता है। इतिहास का संग्रहणीय और पठनीय वृत्तांत।
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