संजना का दर्द- हम सब पैदा तो इंसान होते हैं पर, समाज देता है किन्नर की पहचान
मध्य प्रदेश सरकार के समाज कल्याण विभाग में निदेशक के पीए के रूप में कार्यरत ट्रासंजेडर संजना स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड एम्बेसडर भी हैं। ...और पढ़ें

कानपुर, जेएनएन। वाङ्गमय पत्रिका एवं विकास प्रकाशन कानपुर के तत्वावधान में फेसबुक लाइव ट्रांसजेंडर व्याख्यानमाला के चौथे दिन "मेरी कहानी मेरी जुबानी" के अंतर्गत ट्रांसजेंडर संजना सिंह राजपूत ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, हम सब पैदा तो इंसान ही होते हैं। कौन लड़का है? कौन लड़की? या फिर कौन किन्नर? यह पहचान तो हमें समाज देता है। संजना मध्य प्रदेश सरकार के समाज कल्याण विभाग में निदेशक के पीए के रूप में कार्यरत हैं। संजना मध्यप्रदेश राज्य की 'स्वच्छ भारत अभियान' की ब्रांड एम्बेसडर भी हैं, उन्होंने अपनी सफलता के पीछे की कहानी के पीछे के राज को स्पष्ट करते हुए कहा कि मुझे परिवार और समाज से जो तकलीफ मिली मैंने उसे हमेशा पॉजिटिव ही लिया है। मेरी हमेशा कोशिश रही है कि मैं खुद को साबित करुं।
उन्होंने कहा, ट्रांसजेंडर को बचपन से लेकर जवानी तक असहनीय दर्द झेलना पड़ता है। किसी घर में बच्चा पैदा होता है तो परिवार और समाज के लोग लड़का या लड़की तय कर देते हैं। हमारा शरीर पुरुष और आत्मा औरत की, किन्नर या ट्रांसजेंडर इन्हें ही कहते हैं। ईश्वर हमें दो तत्वों से नवाज़ता है लेकिन समाज इसे समझ नहीं पाता है। लोग हमारी भावना को समझते ही नहीं। मैं जब घर से बाहर निकलना शुरू की तो सबसे पहले समाज के कमेंट से लगा कि शायद मैं किन्नर ही हूं।
छोड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मेरे मामले में शायद परिवार मुझे अपने साथ रखना चाहता था लेकिन समाज के रुढ़िवादी विचारों के चलते झुकना पड़ा। किसी भी परिवार के लिए अपने ट्रान्स बच्चे को स्वीकार्य करना बड़ी चुनौती होती है। संजना ने भारी मन के साथ सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि कभी-कभी मुझे लगता है कि आखिर ऐसा कौन सा पाप हमने किया है कि हमें अपना घर,परिवार, समाज सब छोड़ना पड़ता है। किन्नर समुदाय की अलग दुनिया के लिए समाज जिम्मेदार है। संजना ने सरकार से राष्ट्रीय स्तर पर ट्रांसजेंडर आयोग बनाने की मांग रखी।

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