Move to Jagran APP

अजूबा है जगन्नाथ मंदिर, मानसून से पहले टपकने वाली बूंदाें में छिपा है रहस्य Kanpur News

घाटमपुर के बेहटा बुजुर्ग गांव में जगन्नाथ मंदिर में भी दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल की तरह पानी की बूंदें टपकती हैं।

By AbhishekEdited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 12:32 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 12:32 PM (IST)
अजूबा है जगन्नाथ मंदिर, मानसून से पहले टपकने वाली बूंदाें में छिपा है रहस्य Kanpur News
अजूबा है जगन्नाथ मंदिर, मानसून से पहले टपकने वाली बूंदाें में छिपा है रहस्य Kanpur News

कानपुर, [महेश शर्मा]। शहर से करीब 50 किमी. दूर और भीतरगांव ब्लाक मुख्यालय से महज तीन किमी. दूर बेहटा बुजुर्ग गांव का जगन्नाथ मंदिर अनेक रहस्य समेटे है। विशेष धार्मिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों से परिपूर्ण यह मंदिर 21वीं सदी के विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है। दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल की टपकती बूंदों की तरह इस मंदिर से टपकने वाली बूंदों में भी कई रहस्य छिपे हैं।

loksabha election banner

उड़ीसा शैली से जुदा है ये जगन्नाथ मंदिर

उड़ीसा शैली के जगन्नाथ मंदिरों में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके अग्रज बलदाऊ और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं होती हैं। किंतु भीतरगांव का यह मंदिर इससे अलग है। यहां काले पत्थर से बनी भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के साथ केवल उनके अग्रज बलराम की ही छोटी प्रतिमा है। उसके पीछे पत्थरों पर भगवान के दशावतार उकेरे गए हैं। इन दशावतारों में महात्मा बुद्ध के स्थान पर बलराम का चित्र उकेरा गया है।

मानसून आने की दस्तक देता है

जगन्नाथ मंदिर से टपकने वाली पानी की बूंदों का रहस्य अनोखा है। भीषण गर्मी में गुंबद की शिलाओं से इन बूंदों का टपकना और बरसात आते ही सूख जाना ही किसी आश्चर्य से कम नहीं है। 15 दिन पहले ही मंदिर में टपकने वाली पानी बूंदों का टपकना मानसून आने का संकेत देता है। बुजुर्गों की मानें तो इन बूंदों का आकार बताता है कि मानसून अच्छा रहेगा या कमजोर। बीते सैकड़ों वर्षों से लोग इस मंदिर की बूंदों से ही मानसून का आंकलन करके फसल बुवाई की तैयारी करते थे।

बौद्ध स्तूप जैसा दिखता है मंदिर

जगन्नाथ मंदिर बाहर से बौद्ध स्तूप जैसा दिखाई देता है। हालांकि इस वैष्णव मंदिर के भीतर भगवान जगन्नाथ की मुख्य प्रतिमा और शिल्पकला नागरशैली की हैं। इसलिए माना जाता है कि करीब 11वीं या 12वीं सदी में बना ये मंदिर ध्वस्त हो गया होगा। इसलिए किसी स्थानीय जमींदार ने इसकी मरम्मत करवाई होगी। युवा कल्याण विभाग के उप निदेशक और इतिहास-पुरातत्व के जानकार अजय त्रिवेदी कहते हैं कि ध्वस्त मंदिर के स्तंभों पर ही किसी स्थानीय जमींदार ने करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व चूने-मिट्टी से मंदिर का वाह्य आकार तैयार कराया है। मंदिर की दीवारें 14 फीट मोटी हैं। अणुवृत्त आकार के मंदिर का भीतरी हिस्सा करीब 700 वर्ग फीट है। पूर्व मुखी द्वार के सामने प्राचीन कुंआ और तालाब भी है। मंदिर के पुजारी दिनेश शुक्ल बताते हैं कि उनकी सात पीढिय़ां इस मंदिर में पूजा पाठ करती आईं है और अब वे यहां पूजा पाठ करते है।

निर्माण काल पर असमंजस

पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिर के निर्माण काल पर इतिहासकार एकमत नही हैं। कुछ इतिहासकार इसे दूसरी से ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य का मानते हैं। लेकिन गर्भगृह के भीतर व बाहर का चित्रांकन दूसरी से चौथी शताब्दी का होने की गवाही देता है। वीएसएसडी कालेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डा. अनिल मिश्र मंदिर के बाहर निॢमत मोर व चक्र के निशान देख मंदिर के चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के काल का होने की पुष्टि करते हैं। लेकिन मंदिर के द्वार पर स्थापित अयाग पट्ट को देख कुछ इतिहासकार इसे 2000 ईसा पूर्व की संस्कृति से जोड़ते हैं। हालांकि इतिहास के जानकार अजय त्रिवेदी कहते हैं कि मंदिर का निर्माण गूर्जर-प्रतिहार या गहरवाल राजाओं के कार्यकाल का लगता है। इसलिए संभवत: यह 11वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के बीच बना होगा।

बूंदों का वैज्ञानिक मत

आइआइटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. डीपी मिश्रा मंदिर के विशेष डिजाइन को इसकी वजह मानते हैं। प्राचीन भारत पर अनेक शोध कर चुके प्रो. मिश्रा कहते हैं कि मंदिर का डिजाइन ऐसा है कि जब मानसून आने वाला होता है तो तेज गर्मी और वाष्प के कारण यहां पानी निकल आता है।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.