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कानपुर का गोला घाट...जहां नावों से होता था कारोबार, होते हैं गंगा के दर्शन

कानपुर गंगा तट पर बसा हुआ एक शहर है। ऐसे में यहां घाट होना स्वाभाविक हो जाता है। सबरंग में हम एक-एक कर आपको यहां के घाटों से परिचित करा रहे हैं। आज हम आपको कानपुर के गोला घाट के बारे में बताने जा रहे हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Fri, 27 May 2022 11:55 PM (IST)Updated: Fri, 27 May 2022 11:55 PM (IST)
कानपुर का गोला घाट...जहां नावों से होता था कारोबार, होते हैं गंगा के दर्शन
कानपुर के गोलाघाट में भगवान शंकर की विशालकाय प्रतिमा की स्थापना की गई है।

कानपुर, जागरण संवाददाता। गंगा तट के सुरम्य घाटों और उनके पीछे जुड़ी कहानी जानने के लिए आज हम आपको ले चलते हैं छावनी क्षेत्र में स्थित गोला घाट। यहां घाट के पास ही गंगा के दर्शन होते हैं। कुछ साल पहले ही भगवान शंकर की विशालकाय प्रतिमा की स्थापना की गई है। राधा-कृष्ण का प्राचीन मंदिर भी अनुपम छटा बिखेरता है। कभी यहां से ही नावों के माध्यम से कारोबार होता था। देश के विभिन्न क्षेत्रों से सामान आता और उतारा जाता था।

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मालरोड से शुक्लागंज जाने के लिए बढ़ने पर गंगापुल से पहले ही दायीं तरफ झाड़ी बाबा क्रासिंग ओवरब्रिज पार करके बायें मुड़ने पर सीधे गंगा का गोला घाट मिलता है। शुक्लागंज निवासी इस घाट के पंडा राम मोहन तिवारी बताते हैं, सैकड़ों साल पुराना राधा-कृष्ण मंदिर आकर्षण बिखेरता है। पूर्वज बताते थे कि अंग्रेजों के शासनकाल और उससे पहले कानपुर में गरी का गोला, गोला-बारूद के साथ ही दूसरी चीजें यहीं पर नावों से उतारी जाती थीं, जिससे इसका नाम गोला घाट पड़ गया। यहां माल उतारे जाने के बाद कानपुर समेत आसपास की बाजारों में आपूर्ति की जाती थी।

छुहारा, किशमिश व चिरौंजी आती थी

राम मोहन बताते हैं, गोला घाट पर गरी के साथ ही छुहारा, किशमिश, चिरौंजी, बादाम जैसे अन्य उत्पाद आते थे। यहां से सामान थोक बाजारों में भेजा जाता था, जहां से दूसरे जिलों को माल भेजा जाता था। कई बार खाद्यान्न की वस्तुएं भी आती थीं। घाट तक आने-जाने के लिए अब भी अच्छा रास्ता है। उस समय छावनी क्षेत्र होने से सुरक्षा भी कड़ी रहती थी, ऐसा पूर्वज बताते थे।


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