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    कानपुर का गुप्तार घाट...देखिये अखाड़े में पहलवान और गुप्तेश्वर धाम

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Sat, 21 May 2022 01:24 AM (IST)

    कानपुर में गुप्तेश्वर घाट का नाम तो अपने सुना होगा। लेकिन यह कैसे पड़ा और इसके पीछे की रोचकता और इतिहास क्या है शायद आपको नही पता होगी। आज हम आपको कानप ...और पढ़ें

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    Kanpur Gupta Ghat; गुप्तार घाट स्थित अखाड़ा। जागरण

    कानपुर, जागरण संवाददाता। वीआइपी रोड पर कानपुर जोन के अपर पुलिस महानिदेशक के बंगले (आवास) की दीवार से सटा रास्ता आपको पहुंचाता है गंगा तट स्थित गुप्तार (गुप्तेश्वर) घाट। यहां गुप्तेश्वर धाम मंदिर में स्थापित शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि यह गुप्त रूप से प्रकट हुआ था। इसकी लंबाई कोई नहीं जानता। मंदिर में लक्ष्मी-गणेश, बजरंगबली और दुर्गाजी की भी मूर्तियां हैं। यहां से गंगा का विहंगम दृश्य दिखता है। क्रांतिकारी भी गुप्त बैठकें करते थे। इसीलिए इसका नाम गुप्तार घाट पड़ा।

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    मूलरूप से उन्नाव के बेथर निवासी व वर्तमान में अखाड़ा गुप्तार घाट व मंदिर के प्रधान सेवक 69 वर्षीय प्रमोद तिवारी बताते हैं, बेथर के ही रहने वाले चंद्रिका गुरु ने इस अखाड़े की नीव रखी थी। उनकी मौजूदगी में यहां क्रांतिकारी अंग्रेजों का राज खत्म करने की रणनीति बनाने के लिए गुप्त बैठकें किया करते थे। उन्नाव के रास्ते नाव से चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह समेत तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आते थे। यह लोग अखाड़े में कुश्ती के दांव-पेच भी सीखते थे। वर्ष 1949 में चंद्रिका गुरु का निधन हो गया। वर्तमान में प्रतिदिन सुबह और शाम करीब 50 युवा यहां कुश्ती व मल्ल युद्ध के गुर सीखते हैं। शारीरिक शिक्षा निश्शुल्क दी जाती है। पहलवानों को नौकरी नहीं मिलने से धीरे-धीरे शारीरिक सौष्ठव की एक बड़ी विधा समाप्त हो रही है।

    गंगा में प्रतिदिन नाव चला करते सफाई

    प्रमोद तिवारी बताते हैं, बिरहाना रोड निवासी वाणिज्यकर के वरिष्ठ अधिवक्ता डीआर द्विवेदी यहां प्रतिदिन नाव से गंगा की सफाई करते हैं। कूड़ा बीनकर बोरी में भर उसे रेती में दबा देते हैं। आसपास के मंदिरों में दर्शन करना व नाव चलाना उनका नित्यप्रति का काम है। चाहे सर्दी, गर्मी हो या बरसात, उनका क्रम कभी टूटता नहीं है।