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    हाजमा रखे दुरुस्त और बढ़ाए स्वाद: देश-विदेश तक छाया कनपुरिया बुकनू का नाम, इस नुस्खे को मिलेगी विशिष्ट पहचान

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Fri, 18 Nov 2022 01:56 PM (IST)

    कनपुर के बुकनू ने दिया देश-दुनिया को हाजमे के साथ स्वाद का नुस्खा दिया है यहां सब्जी मसाला के गढ़ नयागंज से इसकी शुरुआत मानी जाती है और अब घर-घर कुटीर उद्योग के रूप में विकसित हो गया है।

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    कनपुर में बनने वाले बुकनू का स्वाद है निराला।

    कानपुर, जागरण संवाददाता। दादी-नानी और अम्मा के खल्लर कुटना यानी मसाले को छोटे-छोटे टुकड़ों में करने के पात्र से निकलकर देश-दुनिया को स्वाद और हाजमा का नुस्खा देनी वाली कनपुरिया बुकनू को अब 'विशिष्ट' पहचान मिलेगी। योगी सरकार ने बुकनू को जीआइ टैग दिलाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।

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    तीन दर्जन मसालों का मिश्रण है बुकनू

    बुकनू की शुरुआत सब्जी मसाला के गढ़ नयागंज से मानी जाती है। दाल-सब्जी का स्वाद बढ़ाने, गली-चौराहों, नुक्कड़ से होटलों तक चाट को लजीज बनाने का काम बुकनू ही करती है। दो से तीन दर्जन मसालों के मिश्रण से तैयार की जाने वाली बुकनू प्राचीन धरोहर जैसी है। पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश के गांवों में वर्षों से घर-घर बुकनू बनाई जा रही है। अब वहां से निकलकर बुकनू मोहल्ला-मोहल्ला कुटीर उद्योग और कई नामचीन ब्रांडों के रूप में वैश्विक पहचान बनाकर लाखों लोगों को रोजगार भी दे रही है।

    विदेश में रहने वाले परिचित भी ले जाते बुकनू

    नयागंज के सब्जी मसाला कारोबारी दीपक शुक्ल बताते हैं, गांवों में बुजुर्ग महिलाओं की बुकनू में जड़ी-बूटियों का मिश्रण भी रहता था। कुछ विश्वनीय ब्रांड अब भी उस गुणवत्ता को बरकरार रखे हुए हैं। भले सिलबट्टा की जगह मिक्सर ग्राइंडर ने ले ली है, लेकिन नयागंज से अब भी बुकनू बनाने का मसाला दूर-दराज के लोग खरीदकर ले जाते हैं। इससे इसकी धाक बनी हुई है।

    बुकनू बनाने वाली रावतपुर गांव की माया देवी बताती हैं कि वह घर पर ही बुकनू के 200 ग्राम से एक किलो तक के पैकेट बनाती हैं। इनकी मांग शहर के अलग-अलग हिस्सों में खूब है। गुणवत्ता वाले बुकनू को विदेश से आने वाले परिचित भी ले जाते हैं।

    बिठूर के जामुन का स्वाद सबको लुभाता

    क्रांतिकारियों की धरा बिठूर के गंगा कटरी क्षेत्र के बागों से निकले जामुन का स्वाद शहर के साथ ही आसपास जिलों और प्रदेश के दूसरे हिस्सों तक हर किसी को लुभाता है। शुरुआत एक बाग से हुई तो फिर धीरे-धीरे कई गांवों में किसान इसके उत्पादन से जुड़े और लगातार बेहतरी आती चली गई। बनियापुरवा के अशोक निषाद ने बताया कि जामुन का कारोबार कमाई का जरिया बन गया है।

    क्षेत्र के लुधवाखेड़ा, मक्कापुरवा, शिवदीन का पुरवा, भगवानदीन पुरवा समेत कई गांवों में जामुन के बाग किसानों ने लगाए हैं। जगदीश निषाद बताते हैं कि शहर और आसपास के जिलों तक यहां का जामुन भेजा जाता है। बड़ी संख्या में खरीदार आते हैं