कानपुर: रोजगार के साथ पर्यावरण संरक्षण का आधार बनेगी गन्ने की खोई, कई कंपनियां बना रहीं क्राकरी-पार्टिकल बोर्ड
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने खोई से क्राकरी और पार्टिकल बोर्ड बनाने की तकनीक विकसित की है। इससे रोजगार की राह खुली है। प्लास्टिक की क्राकरी से होने वाले प्रदूषण पर रोक लगेगी। इसे खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

अखिलेश तिवारी, कानपुर। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर में विकसित संपूर्ण स्वदेशी तकनीक ने चीनी मिलों को अनुपयोगी गन्ने की खोई यानी बगास से भी पैसा कमाने का मंत्र दे दिया।
अब उससे पार्टिकल बोर्ड और क्राकरी का निर्माण हो रहा है। प्रदेश की दो चीनी मिलों के बाद अब महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में भी नए संयंत्र लग रहे हैं।
देश भर की चीनी मिलों से हर साल निकलने वाली 90 लाख टन खोई से आमदनी होने के साथ युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है।
खोई से बनने वाली क्राकरी उपयोग के बाद 45 दिन में मिट्टी में मिलकर खाद बन जाती है, इससे प्लास्टिक के गिलास-प्लेट से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी रोका जा सकेगा।
हर साल 1100 लाख टन खोई होती है मिलों में तैयार
देश में सिंगल यूज प्लास्टिक का चलन बड़ी समस्या है तो चीनी मिल मालिकों के लिए गन्ने की खोई का निस्तारण सबसे बड़ी परेशानी। हर साल लगभग 1100 लाख टन खोई मिलों में तैयार होती है।
इसका चीनी मिलें ईंधन के तौर पर प्रयोग कर रही हैं। इसके बावजूद लगभग 90 लाख टन खोई बच जाती है। इसके निस्तारण पर चीनी मिलों को हर साल खर्च करना पड़ता है।
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक प्रो. नरेन्द्र मोहन बताते हैं कि बांस, गेहूं के डंठल आदि से कप-प्लेट बनाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन गन्ने की खोई के बारे में किसी ने विचार नहीं किया।
तीन साल पहले देश में जो लोग इस क्षेत्र में काम कर भी रहे थे, वह चीन में बनी मशीनों और विदेश से कच्चा माल मंगाकर उत्पादन कर रहे थे।
ऐसे में तब संस्थान में इस पर प्रयोग शुरू किया गया। हमने खोई को पीसकर लुगदी बनाने और सांचे में ढालने से लेकर ओवन में पकाने तक सभी स्तर पर प्रयोग कर उत्पादन की देसी तकनीक विकसित की है।
इससे तैयार बोर्ड को विभिन्न मानकों पर परखा गया है और यह ज्यादा मजबूत व टिकाऊ है। तकनीक का पेटेंट भी कराया गया है।
कई राज्यों में लग रही हैं नई यूनिट
संस्थान के निदेशक ने बताया खोई से बने पार्टिकल बोर्ड और इको वेयर क्राकरी की मांग बढ़ने के साथ ही कई राज्यों में भी नई यूनिट लगने लगी हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश में लगभग आधा दर्जन नई यूनिट इसी साल शुरू होने वाली हैं।
दीवान शुगर मिल मुरादाबाद और केएम शुगर मिल अयोध्या ने इसी तकनीक से पार्टिकल बोर्ड का निर्माण शुरू किया है। यश पक्का कंपनी आकर्षक कप-प्लेट और गिलास तैयार कर रही है। महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में नई यूनिट लग रही हैं। इससे पर्यावरण भी सुरक्षित होगा। - प्रो. नरेन्द्र मोहन, निदेशक राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर
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