अंग्रेजों के खिलाफ अल्लूरी राजू ने लड़ा था गुरिल्ला युद्ध, पढ़ें- देश के इस वीर सपूत की गौरव गाथा
अल्लूरी सीताराम राजू एक ऐसे महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दे दिया। अंग्रेजों के खिलाफ उनकी लड़ाई महज दो वर्ष तक चली लेकिन इस दौरान उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।

[फीचर डेस्क]। राजू का जन्म 4 जुलाई, 1897 को आंध्र प्रदेश के पद्मनाभम मंडल के अंतर्गत आने वाले पंडरांगी गांव के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता अल्लूरी वेंकट रामराजू ने बचपन से ही सीताराम राजू को यह सच बताकर क्रांतिकारी संस्कार दिए कि अंग्रेज़ों ने ही हमें ग़ुलाम बनाया है और वे देश को लूट रहे हैं। बालक सीताराम राजू के मन में पिता की यह बात घर कर गई थी। जब राजू 13 वर्ष के थे, तो एक बार उनके एक दोस्त ने उन्हें किंग जार्ज की तस्वीरों वाले कुछ बैज दिए। तब उन्होंने एक बैज को रखकर बाकी सब फेंक दिए। उस बैज को उन्होंने अपनी शर्ट पर लगा लिया, ताकि हमेशा यह याद रख सकें कि कैसे विदेशी शासक उनके देशवासियों को सता रहे हैं। उन्होंने किशोरावस्था में देश के उत्तरी राज्यों की यात्रा करने का निर्णय लिया। इन यात्राओं के क्रम में उन्होंने देखा कि कैसे अंग्रेजों के शासन में आदिवासी इलाकों की स्थिति बदतर हो गई है। यात्रा के दौरान ही उनकी भेंट चटगांव(अब बांग्लादेश में) के क्रांतिकारियों से हुई। सीताराम राजू ने तय कर लिया कि वह अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू करेंगे। उन्होंने मनयम क्षेत्र में आदिवासियों को जागरूक करने के साथ अंग्रेजों के जुल्म के विरुद्ध उन्हें अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे वह ३०-४० गांवों के नेता बन गए।
सीताराम राजू तीर-धनुष एवं भाले की सहायता से गुरिल्ला युद्ध करते थे। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा पारित फारेस्ट एक्ट १८८२ के विरोध में अगस्त १९२२ से मई १९२४ के बीच गोदावरी नदी के उत्तरी क्षेत्र में ‘रंपा युद्ध’ (जिसे मनयम संघर्ष भी कहते हैं) का नेतृत्व किया। गोदावरी नदी के पास फैली पहाड़ियों में ही राजू व उनके साथी युद्ध का अभ्यास करते और आक्रमण की रणनीति बनाते थे। उन्होंने कई पुलिस थानों पर हमले किए। क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के बाद वह जंगलों में छिप जाते थे, जिससे उन्हें तलाश पाना आसान नहीं था। अंग्रेजी सरकार ने राजू को पकड़ने वाले के लिए दस हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। उनके आंदोलन को कुचलने के लिए आंध्र प्रदेश की पुलिस के नाकाम होने के बाद ब्रिटिश अफसरों के नेतृत्व में मालाबार स्पेशल पुलिस एवं असम राइफल्स के दस्ते लगाए गए थे। 6 मई, 1924 को राजू के दल का मुकाबला असम राइफल्स से हुआ, जिसमें उनके साथी शहीद हो गए। राजू बच गए। 7 मई, 1924 को जब वह अकेले जंगल में भटक रहे थे, तभी फोर्स के अफसर की नज़र राजू पर पड़ी। उसने पीछा किया। अंततः वह पकड़े गए और अंग्रेजों ने इस महान क्रांतिकारी को नदी किनारे ही एक वृक्ष से बांधकर गोली मार दी। १९८६ में अल्लूरी सीताराम राजू की याद में इंडिया पोस्ट ने एक डाक टिकट जारी किया।
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