Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    लाठी का Marshal Art है बुंदेलों का बरेदी नृत्य, दीवाली के दूसरे दिन सिर चढ़कर बोलता है रोमांच

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Sun, 15 Nov 2020 11:36 AM (IST)

    बुंदेलखंड की परंपरा बरेदी (अहीरी) दिवारी नृत्य में बुंदेली लोक संस्कृति की झलक छिपी है दीपावली के बाद परेवा और भैया दूज को इस नृत्य की अनोखी छटा बिखर ...और पढ़ें

    Hero Image
    बुंदेलखंड में दिवारी नृत्य की छटा बिखेरते कलाकार। फाइल फोटो

    चित्रकूट, हेमराज कश्यप। मार्शल आर्ट यूरोपीय देशों की ऐसी कला है, जो दूसरे के प्रहार करने पर खुद कोशरीर की रक्षा करने में सक्षम बनाती है। कुछ वैसे ही, बुंदेलखंड के बरेदी (अहीरी) दिवारी नृत्य में लाठी का इस्तेमाल भी 'मार्शल आर्ट' से कम नहीं है। इसका रोमांच दीपावली के बाद परेवा व भैया दूज को प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में दिखता है। लोक संस्कृति को सहेजे बघेलखंडी व बुंदेलखंडी कलाकार अपने करतब से स्तब्ध कर देते हैं। अमावस्या पर पांच दिवसीय दीपदान मेला क्षेत्र में यूपी बुंदेलखंड के चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर और महोबा, मध्यप्रदेश के जबलपुर, दमोह, सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, रीवां और सतना से आने वाले कलाकारों की टोलियां आकर्षक परिधान में अलग-अलग स्थान पर सबका मन मोह लेती हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शान का प्रतीक 'लांग' बिखेरती आकर्षण

    चित्रकूट मेला क्षेत्र में दीपावली बरेदी नृत्य करने वाले कलाकार घुंघरुओं से मढ़ा नेकर पहनते हैं, जिसे लांग कहते हैं। लांग चढ़ाना शान समझा जाता है। इस दौरान कई जगहों पर हाथ में मयूर पंख लेकर मयूरी नृत्य की झलकियां भी दिखती हैं।

    जोशीले लाठी युद्ध का कौशल

    बरेदी दिवारी नृत्य अहीर ग्वाले करते हैं। ढोल-नगाड़े बजते ही पैरों में घुंघरू, कमर में पट्टा व हाथों में लाठियां संग इनका जोशीला अंदाज देखते बनता है। एक-दूसरे पर लाठी के तड़ातड़ वार से दिल दहल जाते हैं। हालांकि, लाठियों से किसी को तनिक भी चोट नहीं आती है।

    बुंदेलखंड परंपराओं का 'देश'

    लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन में जुटे समाजसेवी गोपाल भाई कहते हैं कि बुंदेलखंड की माटी परंपराओं से रची-बसी है। उसमें दिवारी नृत्य भी है, जिसे पाई डंडा नृत्य भी कहते हैं। ऐसा नृत्य पूरे देश में कहीं पर नहीं होता है। इनके संरक्षण की जरूरत है।

    कोरोना से मेला फीका

    कोरोना काल के दौरान दीपदान मेला की रंगत फीकी है। खाकी अखाड़ा के रामजानकी मंदिर के महंत रामजन्मदास बताते हैं कि पिछले साल 35 लाख श्रद्धालु आए थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। एहतियातन भी लोग कम पहुंच रहे हैं, फिर भी भैया दूज व परेवा पर संख्या बढऩे की उम्मीद है।

    नृत्य की खासियत

    • सबके पास मयूर पंख या लाठी।
    • नेकर में घुंघरू और कमर में पट्टा
    • आंखों के इशारों पर लाठी प्रहार
    • जिमनास्टिक व हैरतअंगेज करतब।